जहां मुस्लिम महिलाएं आज भी तीन तलाक को हटाने के लिए जूझ रही है वहीं सनातन काल में भारतीय नारियां युद्ध तक जीत जाती थी!

                          सनातन धर्म और भारत का संबंध आत्मा और देह का है। भारत पुण्य भूमी है और इस भूमी में, सानतन धर्म में हम जन्में हैं यह हमारा सौभाग्य है। सनातन धर्म सत्य है, सुन्दर है और नित्य है। सनातन यानी जिसका अंत नहीं है, जो नित्य नूतन है। सनातन कहता है ‘जियो और जीने दो’। सानतन पुरुष, महिला, जीव जंतु या पेड़ पौदों में कॊई अंतर नहीं रखता। पृथ्वी के कंकर में भी शंकर को ढूढ़ता है सनातन धर्म।

                          सनातन धर्म महिला की तुलना प्रकृति से करता हुआ कहता है की नारी जग जननी है। नारी का सम्मान करते हुए सनातन धर्म ने कहा है “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवताः”। जहां नारी का सम्मान होता हो, जहां नारी की पूजा होती हो, वहां स्वयं ईश्वर का निवास होता है। बेवकूफ ही होगी वह औरत जो अपने मातृ धर्म को त्याग कर किसी अन्य धर्म के लड़के के प्यार में अंधी हो कर अपना धर्म परिवरतन करती है। जो नारी अपने मातृ धर्म का सम्मान नहीं कर सकती उसका सम्मान कठ्ठर पंथी धर्म में हो सकता है भला? मूर्खता की पराकाष्ठा है यह।

                          किसी हिन्दू के घर में बिटिया पैदा होती है तो कहते हैं ‘घर में लक्ष्मी आयी’। बिटिया साक्षात लक्ष्मी का रूप होती है। हिन्दुओं को सनातन धर्म के बारे में जानकारी ही नहीं है कि वेद के काल से ही नारियां कितनी बुद्दिवान और शक्तिशाली होती थी। पुरुष की ही तरह वे भी वेद, विज्ञान, अस्त्र- शस्त्र का प्रयॊग सहित युद्द कला में भी निपुण थी। त्रेतायुग में भरत की मां कैकई ने युद्द में दशरथ महाराज का साथ दिया था यह तो सभी जानते हैं। वेद काल से ही नारी युद्द कला में निपुण थी। नारी को रसॊई की बेड़ियों में नहीं अपितु रण की भूमी में प्रशिक्षित किया जाता था।

                          पार्वती ने काली का रूप लेकर असुरॊं का संहार सतयुग में किया था यह इस बात का निदर्शन है की काल भैरव के ही समान माँ काली भी असीम बलवान थी। माँ दुर्गा शक्ति स्वरूपिणी है। त्रिदेव को जनम देनेवाली माँ आदि शक्ति ही है। भारत में महिलाओं की दुर्दशा का प्रारंभ मुघल काल से प्रारंभ हुआ। अत्याचारी आक्रमण कारियों के हवस के चलते हमारे माँ और बेहनों के साथ अन्याय हॊता रहा। जहां सनातन धर्म नारी को पूजनीय बताती है वहां इसके विपरीत इस्लाम नारी को भॊग का वस्तु मानती है। नारी को पैरों की जूती की भांती रखना और नारी सम्मान का अपमान करना मुघलों का ही संस्कार है।

                          सदियों तक मुघलों और अंग्रेज़ों की गुलामी करते हुए, स्वार्थी राजनैतिक पार्टी और दोगले सेक्यूलरों की झूठ को ही सच मानते हुए हम यह भूल गये कि सनातन एक मात्र धर्म है जो नारी के सम्मान के लिए रक्त की नदिया बहा सकता है। रामयण में सीता के सम्मान के लिए और महाभारत में द्रौपदी के गरिमा के लिए प्रभु श्री राम और भगवान श्री कृष्ण ने अधर्मियों पर शस्त्र की लड़ियाँ बहाई थी। भारत महानायिकाओं का देश है। सानतन काल से लेकर आज तक भारतीय नारियों ने अपने मान-सम्मान और मातृभूमी के लिए अनेकों बलिदान दिये हैं।

                          वेद में नारी को अधिक सम्मान दिया गया है। वेद काल में जिस प्रकार ऋषि-मुनि हुआ करते थे उसी प्रकार ऋषिकाएं भी होती थी। गौतमी, यामी, मैत्रेयी, गार्गि, अदिति, दाक्षायिणि, इन्द्राणी, अपाला, घोषा, सरस्वती, सर्पराज्ञी, सूर्या, सावित्री, लोपामुद्रा, विश्ववारा, आत्रेयी आदि उन ऋषिकाओं का नाम है जिन्होने वेद मंत्रों की द्रष्टा की है। अर्थात ऋषियों के जैसे ही इन ऋषिकाओं ने भी मंत्र और श्लोक की रचनाएं की है। पुरुष के समक्षम बैठ कर ऋषिकाएं राज्य सभा में वाद-विवाद भी किया करती थी। वेदों में स्त्री यज्ञीय है अर्थात् यज्ञ समान पूजनीय है, उस पर किसी भी तरह का प्रतिबंध नहीं किया गया है।

                          सनातन काल में ‘वर की क्षमता’ की परीक्षा होती थी और नारी अपना वर स्वंय चुनने को स्वतंत्र थी। केवल इतना ही नहीं, वेद काल में स्वयंवर रचा जाता था जहां वधु ही वर का चयन करती थी। गांदर्व विवाह कर अपने पति के साथ जीवन यापन करने के लिए वह स्वतंत्र थी। सत युग से लेकर कलियुग तक नारियों ने अपने अदम्य साहस और पराक्रम का निदर्शन दिया है। माँ काली से लेकर झांसी की रानी लक्ष्मी बाई तक अनादी काल से ही सनातन नारियों ने रण भूमी में शेरनी की तरह दहाड़ कर शत्रु का संहार किया है। इसीलिए नारी को ‘रण चंडी’ की उपाधी प्राप्त है। यानी शत्रु के शीष को रण भूमी में गेंद की भांती उछाल ने वाली महा काली है नारी।

                          ऋग्वेद कहता है कि माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धिमत्ता और विद्याबल उपहार में दें माता- पिता को चाहिए कि वे अपनी कन्या को ज्ञान का दहेज़ साथ में दें। पुत्रों की ही भांति पुत्री भी अपने पिता की संपत्ति में समान रूप से उत्तराधिकारी है। अथर्ववेद में कन्याओं को भी ब्रह्मचर्य और विद्या ग्रहण करने के बाद ही विवाह करने के लिए कहा गया है लड़कों के समान ही कन्याओं की शिक्षा को भी विशेष महत्त्व देता है कि सभा और समिति में जा कर स्त्रियां भाग लें और अपने विचार प्रकट करें यजुर्वेद कहता है कि स्त्री और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का समान अधिकार है और स्त्रियों की भी सेना हो स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें शासकों की स्त्रियां अन्य स्त्रियों को राजनीति की शिक्षा दें जैसे राजा, लोगों का न्याय करते हैं वैसे ही रानी भी न्याय करने वाली हों

                          स्त्रियों को नालायक बताकर परदे में बिठाना सनातन धर्म का संस्कार नहीं है और ना ही भारत कभी यह मानता है कि नारी पुरुष से कम है। भारत का संविधान भी कहता है की पुरूष और नारी एक समान हैं। किसी धर्म की आड़  में अपने स्वार्थ के लिए पुरुष नारी को अपने से कम मानकर उसे एक भॊग की वस्तु की तरह देख रहे हैं। जो व्यक्ति सनातन धर्म में विश्वास रखता हो ,जो  व्यक्ति भारत के संविधान में विश्वास रखता हो वह महिला के सम्मान के प्रति उठाए गये किसी भी निर्णय के लिए प्रतिरॊध व्यक्त नहीं कर सकता। जब नारी का सशक्तीकरण होगा तब अपने आप देश सशक्त बनेगा। नारी का सम्मान करॊ और उसे जीने दो क्यों की वह श्रृष्टि का अविभाज्य अंग है। भगवान ने नारी और पुरुष में भेद भाव नहीं किया है तो नारी को अपने अधिकारों से वंचित रखनेवाले यह पाखंडी धर्म गुरू और स्वार्थी राजनेता कौन होते हैं?

                          नारी के सम्मान का अर्थ है स्वयं भगवान का सम्मान करना। सनातन धर्म ही सत्य है और नित्य है। धर्मनिरपेक्षता का चशमा उतारो और अपने वेद और उपनिषद को पढ़कर देखो।