धनतेरस
का त्योहार।
धनतेरस का त्योहार दीपावली आने की
पूर्व सूचना देता है। हमारे देश में
सर्वाधिक धूमधाम से मनाए जाने वाले त्योहार दीपावली का प्रारंभ
धनतेरस से हो जाता है। इसी
दिन से घरों की लिपाई-पुताई प्रारम्भ कर देते हैं। दीपावली के लिए विविध वस्तुओं की ख़रीद
आज की जाती है। इस दिन से कोई किसी
को अपनी वस्तु उधार नहीं देता। इसके उपलक्ष्य में बाज़ारों से नए बर्तन, वस्त्र, दीपावली
पूजन हेतु लक्ष्मी- गणेश, खिलौने, खील-बताशे तथा सोने- चांदीके जेवर आदि भी ख़रीदे जाते
हैं। आज ही के दिन
आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता धन्वन्तरिवैद्य समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे, इसलिए
धनतेरस को धन्वन्तरि जयन्ती भी
कहते हैं। इसीलिए वैद्य-हकीम और ब्राह्मण समाज आज धन्वन्तरि भगवान का पूजन कर धन्वन्तरि जयन्ती मनाता है।
महत्त्व धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी इस
दिन का विशेष महत्त्व है। शास्त्रों
में इस बारे में कहा है कि जिन परिवारों में धनतेरस के दिन यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है, वहां
अकाल मृत्यु नहीं होती। घरों में दीपावली
की सजावट भी आज ही से प्रारम्भ हो जाती है। इस दिन घरों को स्वच्छ कर, लीप-पोतकर, चौक, रंगोली
बना सायंकाल के समय दीपक जलाकर लक्ष्मी
जी का आवाहन किया जाता है। इस दिन पुराने बर्तनों को बदलना व नए बर्तन ख़रीदना शुभ माना गया है। इस दिन
चांदी के बर्तन ख़रीदने से तो अत्यधिक
पुण्य लाभ होता है। इस दिन हल जुती मिट्टी को दूधमें भिगोकर उसमें सेमर की शाखा डालकर लगातार तीन
बार अपने शरीर पर फेरना तथा कुंकुम
लगाना चाहिए। कार्तिक स्नानकरके प्रदोष काल में घाट, गौशाला, कुआं, बावली, मंदिर आदि
स्थानों पर तीन दिन तक दीपक जलाना चाहिए। तुला राशि के सूर्य में चतुर्दशी व अमावस्या की सन्ध्या
को जलती लकड़ी की मशाल से पितरों
का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए।
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