2000 साल पुराना बम्लेश्वरी माता का वो अनोखा मंदिर जहाँ स्वंय भगवान ने की थी प्रेम की रक्षा।
                   राजनाद गांव से 35 व राजधानी रायपुर से लगभग 105 किलोमीटर दूर डोंगरगढ़ जिले में पहाड़ी पर स्थित मां बम्लेश्वरी का प्राचीन भव्य मंदिर आज दुनियाभर के लोगों के बीच श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। मान्यता अनुसार ये मंदिर आज से लगभग दो हजार साल पुराना बताया जाता है, जिसके निर्माण के पीछे माधवानल और कामकंदला की बेहद सुंदर प्रेम कहानी सुनने को मिलती है। इसी 2000 साल पुरानी प्रेम कहानी से ये मंदिर आज तक कामाख्या नगरी में महक रहा है।

कामकंदला और माधवानल की प्रचलित प्रेम-गाथा
                   डोंगरगढ़ जिले का इतिहास भी अपने आप में बेहद रोचक है। इसके पीछे की पौराणिक लोकप्रिय कहानी कामकंदला और माधवानल की प्रेम-गाथा आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है। उसी पौराणिक कहानी के अनुसार आज से लगभग दो हजार वर्ष पूर्व कामाख्या नगरी में राजा वीरसेन का शासन हुआ करता था। उन्हें कोई संतान नहीं थी जिसके चलते उन्होंने संतान की कामना के लिए भगवती दुर्गा और भगवान शिव जी की कठोर उपासना की। उस उपासना के फलस्वरूप ही उन्हें महज एक साल के अंदर ही बेहद सुंदर पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। राजा वीरसेन ने उस पुत्र का नाम मदनसेन रखा। माना जाता है कि मां भगवती और भगवान शिव के आशीर्वाद से प्राप्त संतान के जन्म के बाद भगवान के प्रति अपना आभार व्यक्त करने के लिए राजा वीरसेन ने ही मां बम्लेश्वरी के इस सुंदर मंदिर का निर्माण कराया था। बाद में मदनसेन के पुत्र कामसेन ने बड़े होकर पिता की राजगद्दी संभाली।

                   बताया जाता है कि राजा कामसेन उज्जैन के राजा विक्रमादित्य के समकालीन थे। उन दिनों कामाख्या नगरी कला, नृत्य और संगीत के लिए दूर-दूर तक विख्यात थी और उसी के साथ विख्यात था कामकंदला नाम की एक सुंदर राज नर्तकी का नाम।

कला से विख्यात हुआ करता थे ये स्थान
                   लोगों की माने तो पौराणिक काल में इस स्थान का नाम कामावती नगर से विख्यात था। जिसमें माधवानल जैसे बेहद गुणी संगीतकार थे। एक बार कला का प्रदर्शन करने के दौरान नर्तकी कामकंदला और संगीतकार माधवानल की कला से राजा इस कदर प्रसन्न हुए कि उन्होंने तुरंत माधवानल को अपने गले का हार उतार कर दे दिया। जिसके बाद माधवानल ने उस कला का पूरा श्रेय कामकंदला को देते हुए राजा द्वारा भेट किये गए हार को उसको पहना दिया।

                   संगीतकार माधवानल द्वारा किये गए इस कार्य से राजा ने खुद को अपमानित महसूस किया और वो बेहद क्रोधित हुए। क्रोध में आकर उन्होंने माधवानल को अपने राज्य से बाहर निकल जाने का आदेश सुना दिया। लेकिन बावजूद इसके कामकंदला और माधवानल राजदरबारियों की नज़रों से छिप- छिपकर मिलते रहे।

जब माधवानल मांगी उज्जैन के राजा विक्रमादित्य से मदद
                   एक बार माधवानल इस समस्या के निवारण के लिए उज्जैन के राजा विक्रमादित्य की शरण में पहुंचा, जिस दौरान उसने अपनी कला से राजा का दिल जीतकर उनसे पुरस्कार स्वरूप कामकंदला को राजा कामसेन से मुक्त कराने की बात कही। इस दौरान राजा विक्रमादित्य ने दोनों के प्रेम की परीक्षा लेनी चाही जिस पर दोनों को खरा पाकर कामकंदला की मुक्ति के लिए पहले राजा कामसेन के पास संदेश भिजवाया और जब राजा ने ऐसा करने से इंकार कर दिया तो दोनों के बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया।

                   युद्ध में जहाँ एक राजा महाकाल का भक्त था तो दूसरा विमला माता का भक्त निकला। युद्ध से पहले दोनों ही राजाओं ने अपने-अपने इष्टदेव का आह्वान किया, जिससे महाकाल और भगवती विमला मां अपने-अपने भक्तों की सहायता करने युद्धभूमि पहुंच गए। युद्ध के दुष्परिणामों को भांपते हुए महाकाल ने विमला माता से राजा कामसेन को क्षमा करने की प्रार्थना की जिसके बाद भगवान ने कामकंदला और माधवानल को मिलाया और स्वर्ग वापस लौट गए।