क्यों बजायी जाती है
मंदिर में घंटी? जानिए धार्मिक और
वैज्ञानिक कारण।
प्रत्येक हिन्दू
मंदिर में आपने घंटी अवश्य देखी होगी। लेकिन क्या आपके ज़ेहन में यह सवाल आया है
कि आखिर मंदिरों में घंटियाँ क्यों होती है? क्यों बजायी
जाती है हिन्दू मंदिर में घंटी? निश्चित ही यह प्रश्न हिन्दू धर्म की
आस्था से जुड़ा है जिसके पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होगा। अतीत में नज़र डालें तो
वैदिक काल से ही हिन्दू मंदिर में घंटी बजाने की परंपरा चली आ रही है जिसका
धार्मिक और वैज्ञानिक कारण दोनों है। धार्मिक दृष्टिकोण से हिन्दू धर्म के अनुयायी
इसकी अपने-अपने रूप में व्याख्या करते हैं। कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि मंदिर
में घंटी बजाने से ईश्वर के दरबार में उनकी हाज़िरी लग जाती है। वहीं किसी को इससे
आत्मिक शांति का अनुभव प्राप्त होता है।
मंदिर में घंटी बजाने का
धार्मिक कारण
मंदिर पूजा करने
का पवित्र स्थान होता है जहाँ पर मूर्तियों या अन्य प्रतीक चिन्हों के रूप में
देवी/देवताओं का वास होता है। स्कंद पुराण के अनुसार घंटी से जो ध्वनि गुंजायमान
होती है वह ‘ॐ’ की ध्वनि के समान होती है। अर्थात घंटी बजाने वाले भक्त को ‘ॐ’
उच्चारण के समान पुण्य प्राप्त होता है और व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है।
धार्मिक मान्यता
है कि इन मूर्तियों में चेतना जागृत करने के लिए मंदिरों में घंटी बजाई जाती है।
कहते हैं जो भक्त मंदिर में घंटी बजाता है, उस पर ईश्वर की
दृष्टि पड़ जाती है। इसके अतिरिक्त घंटी बजाने से भक्तों की पूजा का प्रभाव बढ़
जाता है और शीघ्र ही उनकी मुरादें पूरी होती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से
मंदिर में घंटी बजाने का महत्व
हिन्दू पूजा
पद्धति ऋषि मुनियों की परंपरा है जो धार्मिक दृष्टिकोण के साथ-साथ वैज्ञानिक रूप
से भी शत् प्रतिशत खरी बैठती हैं। शोध के मुताबिक मंदिर की घंटी की आवाज़ से विशेष
प्रकार की तरंगे निकली हैं जो आसपास के वातावरण में कंपन पैदा करती हैं। यह कंपन
वायुमंडल में स्थित हानिकारक सूक्ष्म जीवों और विषाणुओं को नष्ट करता है।
इसके साथ ही
मंदिर की घंटी की आवाज़ वातावरण से नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करती है। चिकित्सा
विज्ञान का मानना है कि घंटी की ध्वनि व्यक्ति के मन, मस्तिष्क
और शरीर को ऊर्जा प्रदान करती है। इस ऊर्जा से बुद्धि प्रखर होती है।
मंदिर में घंटी बजाने का
पौराणिक इतिहास
भारतीय संस्कृति
में मंदिर के द्वार और विशेष स्थानों पर घंटी या घंटे लगाने का प्रचलन प्राचीन काल
से चला आ रहा है। पुराणों में ऐसा वर्णन है कि जब सृष्टि का सृजन हुआ तब जो आवाज
गूंजी थी वह आवाज घंटी बजाने पर भी आती है। घंटी उसी नाद का प्रतीक है।
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