लठमार होली आज भी पुराने
और पारंपरिक ढंग से ही खेली जाती है।
हिन्दू
धर्म के सबसे रंगीन और ख़ूबसूरत पर्व को और अधिक खूबसूरत बनाती है बरसाना की लठमार
होली। जैसा की नाम से ज्ञात होता है कि इस होली में रंगों के साथ-साथ लाठियों का
भी जमकर प्रयोग होता है। अपने इस होली विशेष लेख में हम आपको कृष्ण की नगरी में
खेली जाने वाली इस ख़ास होली की कुछ बेहद ख़ास बातें बताने जा रहे हैं।
इस
वर्ष होलिका दहन 09 मार्च 2020, सोमवार को किया जायेगा, और
इसके अगले दिन 10 मार्च 2020, मंगलवार को देशभर में होली का त्यौहार
मनाया जायेगा। वैसे तो देश में अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग ढंग से होली खेली जाती
है लेकिन, जिस हर्षोल्लास के साथ बरसाना में लठमार होली का आयोजन किया जाता है
वो अतुलनीय है।
बरसाना
की लठमार होली में हज़ारों की तादाद में विदेशी सैलानी हिस्सा लेने पहुँचते हैं।
लठमार होली के बारे में कहा जाता है कि इस तरीके से होली खेलने की परंपरा प्रभु
श्रीकृष्ण की नगरी में सबसे पुरानी परंपराओं में से एक है। इस होली को जो बात सबसे
अलग बनाती है वो यह कि लठमार होली आज भी पुरानी और पारंपरिक ढंग से ही खेली जाती
है।
क्या होती है लठमार होली
हर
साल फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को लठमार होली खेली जाती है। मथुरा
में इस त्यौहार की अलग ही धूम देखने को मिलती है। इस मौके पर महिलाएं पुरुषों को
लठ से मज़ाकिया अंदाज़ में पीटती हैं और पुरुष इस मार से बचने के लिए ढ़ाल का उपयोग
करते हैं।
लठमार होली विशेषता
लठमार
होली की शुरुआत भगवान कृष्ण और राधा रानी के समय से मानी जाती है। लठमार होली के
इतिहास के बारे में बताया जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण अपने दोस्तों के साथ राधा
रानी और उनकी सखियों पर रंग डालते थे तब, राधा रानी और
उनकी सखियाँ, कृष्ण और उनके दोस्तों पर लाठियां बरसाया करती थीं और तब से ही इस
त्यौहार को मनाये जाने की परंपरा की शुरुआत हो गयी।
इसी
परंपरा को बेहद खूबसूरती से आगे बढ़ाते हुए अब नंदगांव, यानि
कि वो स्थान जहाँ प्रभु श्रीकृष्ण का लालन-पालन हुआ है वहाँ के पुरुष बरसाना, यानि
कि राधारानी के गांव में लाडली जी के मंदिर में ध्वज फ़हराने की कोशिश करते हैं। इस
दौरान महिलाएं खूबसूरत वस्त्र-परिधानों में सजकर और नटखट और मज़ाकिया अंदाज़ में
पुरुषों पर लाठी से वार कर के उन्हें ऐसा करने से रोकने का प्रयास करती हैं।
हालाँकि
इस दौरान पुरुष महिलाओं को ऐसा करने से मना नहीं कर सकते हैं लेकिन, महिलाओं
का ध्यान भटकाने के लिए और मंदिर तक पहुँचने और वहाँ ध्वज फ़हराने के लिए वो उनपर
अबीर-ग़ुलाल डालते हैं। अगर कोई पुरुष, महिलाओं से बचकर
मंदिर तक पहुँचने में कामयाब हो जाता है तो वो तो ध्वज फहरा देता लेकिन जिन
पुरुषों को महिलाएं पकड़ने में कामयाब हो जाती हैं उन्हें महिलाओं के वस्त्र पहनकर
सभी के सामने नृत्य पेश करना होता है।
ये देखने में बहुत ही खूबसूरत प्रतीत
होता है।
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