इस मंदिर में दो धर्मों
के लोग साथ करते हैं पूजा, माना जाता है दूसरा सबसे
पवित्र स्थल !
भारत में जितने
धर्म नहीं हैं उससे ज्यादा यहाँ मंदिरों की संख्या है। अमूमन ऐसा देखा जाता है की
किसी मंदिर मस्जिद में केवल उसी धर्म के लोग पूजा पाठ के लिए आते हैं। आज हम आपको
भारत के हिमाचल प्रदेश स्थित एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहाँ दो
अलग-अलग धर्म के लोग पूजा के लिए आते हैं। हिमाचल के लाहौल और स्पीति जिले के समीप
स्थित त्रिलोकीनाथ गावं में ये ख़ास मंदिर स्थित है। आइये जानते हैं कि क्या है इस
मंदिर से जुड़ी विशेषता और किन दो धर्मों के लोग इस मंदिर में पूजा अर्चना के लिए
आते हैं।
हिमाचल के इस मंदिर में
शिव के त्रिलोक रूप की होती है पूजा
आपकी जानकारी के
लिए बता दें कि हिमाचल प्रदेश के लाहौल और स्पीति जिले के समीप स्थित एक छोटे से
कस्बे उदयपुर में त्रिलोकीनाथ नाम के गावं में चंद्रभागा नदी के तट पर भगवान् शिव
के त्रिलोक रूप का त्रिलोकीनाथ मंदिर स्थित है। इस मंदिर की खासियत ये है कि यहाँ
दो धर्म समुदाय के लोग साथ में पूजा अर्चना के लिए आते हैं। आपको जानकर हैरानी
होगी की जहाँ एक तरफ हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग इस मंदिर में शिव जी की पूजा
अर्चना करते हैं वहीं दूसरी तरफ बौद्ध धर्म को मानने वाले उनकी पूजा बौद्ध आर्य
अवलोकीतीश्वर के रूप में करते हैं। माना जाता है की पूरी दुनिया में त्रिलोकीनाथ
मंदिर एक मात्र ऐसा मंदिर है जहाँ एक ही मूर्ती की पूजा दो अलग-अलग धर्म के लोग
अलग रूप में करते हैं।
ऐसा है त्रिलोकीनाथ
मंदिर का इतिहास
आपको बता दें कि
प्राचीन हिन्दू मान्यताओं के अनुसार हिमाचल स्थित शिव के इस मंदिर का निर्माण
महाभारत काल में पांडवों द्वारा करवाया गया था। वहीं दूसरी तरफ बौद्ध धर्म के
लोगों की ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण आठवीं शताब्दी में पद्संभव द्वारा
करवाई गयी थी। उन्होनें ही इस मंदिर का निर्माण कर पहली बार यहाँ पूजा पाठ किया
था। हालाँकि यहाँ के स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि इस मंदिर का निर्माण कुल्लू
के राजा ने करवाया था और वो अपने साथ मंदिर में स्थित मूर्ती भी लेकर आये थे। बाद
में किसी कारणवश जब वो कुल्लू छोड़कर जाने लगे तो उस मूर्ती को भी साथ ले जाने की
कोशिश की। उस वक़्त वो मूर्ती इतनी भाड़ी हो गयी की उसे ले जाना राजा के सामर्थ के
बाहर था। शिव जी के इस मंदिर को हिन्दू धर्म के लोग कैलाश मानसरोवर के बाद दूसरा
सबसे पवित्र स्थल मानते हैं।
भादो माह में यहाँ लगता
है श्रद्धुलों का ताँता
भादो माह की
शुरुआत होते ही त्रिलोकीनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या भी दिन बा दिन बढ़ती
जाती है। बता दें कि भादो मास में विशेष रूप से यहाँ तीन दिवसीय पोरी मेले का
आयोजन किया जाता है। इस दौरान यहाँ दूर-दूर से हिन्दू और बौद्ध दोनों धर्मों को
मानने वाले लोग मेले में शामिल होने और भगवान् के दर्शन के लिए आते हैं। तीन
दिवसीयइस त्यौहार में शामिल होने वाले दोनों धर्मों के लोगों को साथ में देखना
बेहद रमणीय लगता है। इस त्यौहार की शुरुआत ढोल नगाड़ों के साथ होती हैं और इस दिन
विशेष रूप से भगवान् त्रिलोक की मूर्ती का दूध और दही से अभिषेक किया जाता है।
स्थानीय लोगों का ऐसा मानना है कि इस दिन भगवान् शिव खुद घोड़े पर सवार होकर भक्त
जनों का हाल चाल जानने आते हैं।
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