नौकरी व् विवाह तक लड़कों
का ब्रह्मचर्य व् मधुर स्वभावी ,गृह कार्य मैं दक्ष , अक्षत कौमार्य वाली लडकियां ही आज का भी आदर्श हैं –
प्रेम विवाह अपवाद ही रहने चाहिए
आज कल सब तरफ पाश्चात्य प्रोपगंडा होने
से अचानक भारतीय समाज मैं जो बदलाव आ रहे हैं वह लोक प्रिय तो हो रहे हैं पर
अवांछनीय हैं . धर्माचरण को दकियानूसी बता , वासनात्मक प्रेम
, कुंवारी माँ , भटके पति पत्नी आज हर सीरियल मैं दीख रहे हैं . कुछ फिल्म व् सीरियल तो विवाह को एक बोझ
दिखाने लगे हैं .लड़कियां मातृत्व व् घर के काम को हीन मान छोटी सी नौकरी को श्रेष्ठ मानने लगी हैं.
लड़कियों के लिए नौकरी स्वाबलंबन से अधिक
आत्मसम्मान का द्योतक हो गयी है . विवाह, माता पिता व् परिवार के प्रति पूर्ण समर्पण को पुराने
ख्याल बता कर हेय बनाया जा रहा है
.पश्चिमी प्रगति का इनसे कोई सम्बन्ध नहीं है . परन्तु इस झूठी चमक दमक मैं
वैलेंटाइन डे व् गई फॉक्स नाईट जैसे ऊट
पटांग दिनों को महत्व देना अंततः
हमारे स्वाभिमान व् संस्कृति मैं दीमक लगा देगा . हमारी हज़ारों साल से चली आ रही
संस्कृति एक स्थायी व् परीक्षित समाज
बनाती है . यह इसलिए नयी पीढी के लिए पुरानी
पाम्पराओं का महत्व जान कर उचित व्
सही मूल्यांकन आवश्यक है .
पहले लड़कों को लें . भारत मैं पहले
यज्ञोपवीत संस्कार तरुण होते लड़कों को ब्रह्मचर्य
की और प्रेरित करता था . हालाकि इस युग मैं इन्टरनेट पोर्न उस तरह के ब्रह्मचर्य को तो असंभव बना देता है परन्तु माँ बाप लड़कों
को पढ़ाई व् शारिरिक विकास पर पूरा ध्यान केन्द्रित करने को कहते थे. लड़कियों से
अन्तरंग मित्रता को प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है .लड़कों का आज भी नौकरी लगने तक
पूरी तरह पढ़ाई पर ध्यान देना उतना ही आवश्यक है जितना सैकड़ों साल पहले था . बल्कि
आज के कम्पटीशन के युग मैं तो यह और भी जरूरी है . जो लड़के आज भी स्कूल मैं पढ़ाई
छोड़ लड़कियों पर ध्यान लगते हैं वह अकसर अपवाद छोड़ , जीवन मैं
पूर्णतः असफल हो जाते हैं . यौवन मैं काम वेग इतना प्रबल होता है की यदि लड़के
लड़की ज्यादा साथ और पास आ जाते हैं तो उनमें आकर्षण स्वाभाविक हो जाता है . पूरे
पूर्व मैं भारत चीन व् मध्य एशिया मैं ऐसे मिलन को अच्छी निगाहों से नहीं देखा
जाता है . मानव शरीर की रचना ही ऐसी होती है की प्रेम मैं दिन रात प्रेमी का ही
ख्याल हावी रहता है . पश्चिम मैं इसके विपरीत स्कूलों मैं लड़के लड़की साथ रहते हैं
. चौदह या पंद्रह साल से डेटिंग शुरू हो
जाती है. अनेक डेट के बाद कुछ मैं सामजस्य बन जाता है और उनमें से कुछ की विवाह
मैं परिणिति हो जाती है . अंततः पश्चिम का समाज इन सब के बाद उन्नति तो कर ही रहा
है .भारत मैं भी को – एजुकेशन स्कूल के रिजल्ट भी बहुत खराब तो नहीं होते . लड़के
लड़कियां सिर्फ दोस्त भी होने लगे हैं . फिर इस ब्रहचर्य का क्या लाभ ?
इसका उत्तर है की परिवार व् सामाजिक
प्रथाओं के कारण आज भी लड़कियों से मित्रता
अधिकतर दूर की ही होती है और वह मन पर हावी नहीं होती . लडकियां भी समझदार होती
हैं और ब्रहचर्य भंग नहीं होता .अकेले मैं ज्यादा मिलने से इसकी संभावना अधिक होती
है . इसका एक व्यवहारिक पहलु भी है . यदि लड़के पढ़ लिख कर अच्छी नौकरी पा लेते हैं
या अपने व्यवसाय मैं सफल हो जाते हैं तो
तो विवाहों के तो अनेकों प्रस्ताव आ ही
जाते हैं . पहले स्वयम्वर मैं सुन्दर राज कुमारी पाने के लिए वीरता प्रमुख थी आज
बड़ी नौकरी प्रमुख है . इसलिए सफल लड़कों को सुन्दर गुणवती पत्नी प्राप्त होना बहुत
आसान होता है . इसके विपरीत प्रेम विवाह मैं लड़के फंस कर साधारण नौकरी व् साधारण
लड़की को पा कर ही अपने को धन्य मान लेते हैं . प्रेम विवाह अधिकांशतः लड़कों को
घाटे का सौदा ही होता है . इसलिए लड़कों के लिए आज भी सहज पके तो मीठा होय उतना ही
सत्य है जितना हज़ार साल पहले था . दूसरी मुख्य बात यह है की ब्रह्मचर्य के बाद
विवाह के बाद काम सुख विवाह को स्थायी बनाने मैं बहुत सहायक होता है . स्त्री
पुरुष मात्र साथ रहने से जो सुख पाते हैं वह अनेकों झगड़ों के बावजूद विवाह को
चिरस्थायी बनाता है . यदि लड़कों ने यह सुख अन्यत्र नहीं पाया हो तो पत्नी से सदा
आकर्षण बना रहता है और जीव्नोपरांत साथ रहने वाले दाम्पत्य का महत्व सिर्फ वह ही
जान पते हैं जो इसको खो देते हैं . पश्चिम के विवाह इस लिए कम सफल होते हैं .
लड़कियों के लिए तो आज भी पुराने
विचार पहले से कहीं ज्यादा उपयोगी हैं . इस पश्चिमी झूठ मैं फंसी कुंवारी
माँ ओं या परित्यक्ता लड़कियों का जीवन नरक हो जाता है .
अब पचास की उम्र पार करने के बाद , अभिनेत्री
नीना गुप्ता , जिसने यौवन के जोश मैं विवान रिचर्ड से बहादुरी समझ बिना विवाह के कन्या पा ली थी , आज
खुद पछताते हुए लड़कियों को इससे दूर रहने को कहती हैं . यह बुद्धि बहुत देर से आयी
. पचहत्तर साल की शीला दीक्षित ने लड़कियों
को जो भड़काऊ कपडे न पहनने की सलाह दी थी वह सच थी . कुछ मुर्ख औरतों की ठेकेदारों
ने उनको बदनाम किया परन्तु शीला दीक्षित समान सच कहने का साहस बहुत कम औरतों मैं
होता है .हमारे परिवारों मैं तो माँ तेरह
साल की लड़की की पहरे दार बन जाती हैं . उसके रहने , मिलने व् कपड़ों
से कामुकता प्रदर्शन होने ही नहीं देती . लडकियां उस उम्र मैं इसे
स्वतंत्रता मैं खलल मानती हैं पर तीस की उम्र के बाद माँ को धन्यवाद करती हैं
.परन्तु जो बात लड्कों के साथ है वही
लड़कियों पर भी लागू होती है . काम वेग मैं
उनका बहना तो और भी सरल होता है . यौवन मैं उन्मत्त लडकियां नहीं समझती की
तितलियों के रसास्वादन के लिए तो बहुत
भंवरे मिल जाते हैं पर वह शादी वह मा बाप द्वारा मानी गृह कार्य मैं दक्ष
सुशील कन्या से ही करते हैं . इसलिए तीस
की उम्र मैं तितलियाँ अपने को ठगा सा
महसूस करती हैं .जवानी मैं शालीन व् संतुलित व्यवहार से अपने ऊपर लड़कों को न ही मंडराने देने मैं
समझदारी है . शादी से पहले खाना बनाना सीख लेना भी आवश्यक है . जैसे बिना नौकरी के
लड़के की शादी बेमानी है इसी तरह लड़कियों का गृह कार्य सीख लेना फायदेमंद होता है .
फिर बात आती है कैरियर व् परिवार मैं
संतुलन की . पश्चिम मैं जनसंख्या की कमी
के कारण औरतों का काम करना आवश्यक है जो
भारत की स्थिति नहीं है . भारत मैं शादी से पहले व् बच्चे न होने तक नौकरी कर अपनी
इच्छा पूरी करने मैं कोई बुराई नहीं है . कुछ वर्ष की बाहर की नौकरी एक विस्तृत मानसिकता देती है. इससे
लड़की का आज के युग मैं आत्म सम्मान भी बढ़ता है . किन्तु बच्चे होने के बाद य
वृद्ध मा बाप की स्वास्थ्य सम्बन्धी विशेष परिस्थितियों को देखते हुए अकसर लड़कियों
को नौकरी छोड़ने के लिए ही प्रेरित करता है . नौकरी का खोया सुख उसे संतान सुख से
मिल जाता है . डॉक्टर इंजिनियर इत्यादि लड़कियों की बात अलग है. अत्यंत गुणवान
लड़कियों की प्रतिभा भी राष्ट्र की सम्पत्ती होती है .पर उसकी विपरीत परिस्थितियों मैं नौकरी की जिद
अकसर परिवार को तोड़ देती है . कभी कभी यदि घर मैं आया हो तो वृद्ध मा बाप पोते
पोतियों के साथ खुशी से रह लेते हैं . परन्तु उन पर लालच वश संतान पालने का पूरा
बोझ डालना उचित नहीं है. यदि हर कोई कुछ त्याग करे तो जीवन स्वर्ग बन जाता है और
स्वार्थ से नरक . इसी तरह आज की लड़कियों की पिता
की सम्पत्ती मैं भागीदारी की मांग भी व्यर्थ प्रतीत होती है . अधिकाँश
शादियाँ बराबरी के परिवारों मैं होती हैं . एक लडके व् एक लड़की के घर मैं मा बाप
लड़के के घर रहते हैं और मृत्यु के बाद उनकी सम्पत्ती उनके लड़के को मिल जाती हाँ .
इसी तरह लड़की के पति को उसके पिता की सम्पत्ती मिल जाती है . सामाजिक नियमों के
दायरे मैं रहने से मतभेद नहीं होते हैं
अन्यथा नियमों को न मानने से समाज मैं उच्छ्रिन्क्लता व्याप्त हो रही है .
अकसर पश्चिम मैं हमारे विवाह को प्रेम
विहीन समझा या बताया जाता है . यह वास्तविकता नहीं है . यह सच है की हमारे यहाँ
शादी की रात को पति पत्नी अजनबी होते हैं . परन्तु कठोर सामाजिक नियमों के कारण
हमारे विवाह फक्ट्रियों के माल की तरह हर जगह
फिट हो जाते हैं . यदि आप सामाजिक मान्यताओं व् नियमों के दायरे मैं चलें
तो समय के साथ प्रेम भी बढ़ता जाता है .
बच्चे विवाह की रेल मैं स्लीपर का काम करते हैं और रेल को भटकने नहीं देते .फिर
ब्रह्मचारी पति पत्नी तो शादी के सात दिन मैं प्रेम बंधन मैं मानव प्रकृति वश बाँध
जाते हैं . जो लड़की लड़की अन्यत्र
संबंधों के बाद विवाह करते हैं उनको विवाह से यह सुख प्राप्त नहीं होता और विवाह का इतना महत्व नहीं रहता . सामाजिक हित मैं गरीब देश मैं विवाह को धर्म
मानना ही श्रेष्ठ है . परन्तु भयंकर एड्स
की बीमारी से ग्रस्त अफ्रीका मैं किसी ने मुझ से यह सवाल किया की क्या आप जीवन भर
रोज़ बंदगोभी खा सकते हैं ? यदि नहीं तो एक औरत के साथ जीवन भर
कैसे रह सकते हैं ? मेरे पास इसका कोई जबाब नहीं था . मुझे तो एक ही औरत बहुत काफी लगती
थी और इससे ज्यादा का अनुभव भी नहीं था . परन्तु शायद व्याभाचारियों की कोई जानकारी
हो जो मुझे नहीं पता . मैं तो एक पत्नी वाले जीवन से बहुत संतुष्ट हूँ और इससे
ज्यादा की कामना भी नहीं करता .
मेरे अनुभव मैं जीवन के अंत तक साथ
रहने वाले वैवाहिक बंधन बहुत सुखद होते हैं और भारत मैं यह सद बुद्धि बनी रहे इसी की कामना करता हूँ . मैथिलि शरण गुप्त की
पंचवटी की यह पंक्तियाँ मेरे विचारों को पूरी तरह व्यक्त करती हैं .
परिवर्तन ही यदि उन्नति है, तो
हम बढ़ते जाते हैं,
किन्तु मुझे तो सीधे-सच्चे, पूर्व-भाव
ही भाते हैं॥
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