हिन्दू शब्द का वर्णन और अर्थ 

असत्य को अगर 100 बार दोहराओ तो सत्य जैसा हो जाता है। परंतु, किसी चीज़ के सत्य-जैसे होने में और सत्य होने में आकाश-पाताल का अंतर है। यही अंतर कभी-कभी कुत्सित कुंठा को जन्म देता है और कालांतर में आपको अपना गौरवशाली अस्तित्व भी लज्जाजनक लगने लगता है। उदाहरण के लिए हिन्दू धर्म को ले लीजिये। वामपंथी, इस्लामिक और अँग्रेजी इतिहासकारों ने बारंबार यह दोहराया की हिन्दू तो कोई धर्म ही नहीं है। इससे हमारी युवा पीढ़ी के मन में एक कुंठा बैठ गयी और उन्हें अपना अस्तित्व ही लज्जाजनक लगने लगा जबकि वो एक उत्कृष्टतम और सार्वभौमिक संस्कृति के संवाहक है। उनके मन-मस्तिष्क में जानबूझकर यह हीनता भरी गयी ताकि इस गौरवशाली संस्कृति को धूमिल किया जा सके। हिन्दू शब्द का वर्णन हमारे शास्त्रों में कई बार किया गया और आगे इस लेख के माध्यम से हम आपको शास्त्रों में वर्णित श्लोक अर्थ सहित बताने जा रहे है जो वर्षों से हमारी आखों पर पड़ी मिथ्यारूपी धूल को सदैव के लिए साफ कर देगा।

विवाद

हाल ही में इसका उदाहरण तब देखने को मिला जब “फैब इंडिया” नें दिवाली को दीपोत्सव की जगह “जश्न-ए-रिवाज” के रूप में प्रचारित कर दिवाली के इस्लामिकरण का कुत्सित प्रयास किया। सोशल मीडिया के माध्यम से राष्ट्रभक्तों के पुरजोर विरोध के बाद इसे हटा लिया लेकिन किसी गुमनाम सी मीडिया के अंजान से व्यक्ति ने हिन्दू शब्द को फारसी बताकर “फैब इंडिया” को जायज ठहराते हुए हिन्दुत्व को अपमानित और हिन्दुओ को कुंठित करने का कुत्सित प्रयास किया। इसके लिए बड़े ही दोयम दर्जे का तर्क दिया गया। कहा गया की फारसी “स” को “ह” उच्चरित करते है। अतः, सिंधु नदी के किनारे बसे लोग हिन्दू हो गए। आखिर, इतने विराट संस्कारों में पल्लवित लोग इतनी बचकानी बात कैसे कर सकते हैं? अगर फारसीयों के उच्चारण अबभ्रंश के कारण ‘सिंधु’ ‘हिन्दू’ हो गया तो पाकिस्तान का ‘सिंध’ ‘हिन्द’ क्यों नहीं हुआ? ‘संस्कृत’ ‘हंसकृत’ क्यों नहीं हुआ और ‘सौराष्ट्र’ बदलकर ‘हौराष्ट्र’ क्यों नहीं हुआ?

दरअसल, सनातन संस्कृति ही मानवता के सृजन की आधारशिला है। सभी इसी के कोख से निकले है और यही सभी के अस्तित्व की जड़ है चाहे वो कोई संस्कृति हो, परंपरा या फिर साधना पद्दती। सनातन संस्कृति की सार्वभौमिकता और प्राचीनता के वैज्ञानिक प्रमाण है जो न सिर्फ पन्नों पर बल्कि पत्थरों पर उकीर्ण है।

धर्मग्रंथों में हिन्दू शब्द का वर्णन अर्थ सहित 

पूरी दुनिया को जीत लेने वाले सिंकन्दर से लेकर अपने साम्राज्य प्रांगण में सूर्योदय और सूर्यास्त देखने वाले अंग्रेजों तक, हिन्दुत्व को झुकाना तो दूर हिलाने तक में नाकाम रहे। रही बात गाज़ियों और काज़ियों की, तो ना जाने कितने आए और गए पर भगवा को हिला नहीं पाये। अतः, उन्होंने वैचारिक युद्ध छेड़ा। आपकी शिक्षा पद्दती को तोड़ा। गुरुकुल परंपरा, धर्मग्रंथ और नालंदा तोड़ा, इसके लिए कभी छल-बल का सहारा लिया, तो कभी पाश्चात्य संस्कृति का।

हिन्दुत्व तो नहीं हारा पर उसके द्वारा परिष्कृत नरसिंह उसे अवश्य उसे भूल गए। उन्हें विश्वास दिला दिया गया कि हिन्दू नाम का कोई धर्म नहीं है और न ही ऐसी कोई संस्कृति है। हिन्दुत्व का विकृतिकरण करते हुए तथाकथित पाश्चात्य आधुनिकीकरण के नाम पर आपको “कूल डूड” बना दिया गया। परंतु, हम अपना कर्तव्य नहीं भूले। हम अपनी राष्ट्रवादी पत्रकारिता से आपके अंदर सोये हिन्दुत्व पल्लवित उस नरसिंह को जागा देंगे। हम आपको प्रमाण के आधार पर यह बताएँगे कि आपके धर्म का उल्लेख आपके धर्मग्रंथों में दिया हुआ है, बस आपने आधुनिकता की अंधी दौड़ में इसे पढ़ा नहीं है।

ॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय:

गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दूर्हिंसनदूषक:।

हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दूरितीरित:।

इसका अर्थ यह है कि ‘ॐकार’ जिसका मूल मंत्र है, पुनर्जन्म में जिसकी दृढ़ आस्था है, भारत ने जिसका प्रवर्तन किया है तथा हिंसा की जो निंदा करता है, वह हिन्दू है।

  • एक और श्लोक है इसमें

‘हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्।

तं देवनिर्मितं देशं हिन्दूस्थानं प्रचक्षते॥ ‘

अर्थात हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दूस्थान कहलाता है। इसके पुख्ता प्रमाण है कि ‘हिन्दू’ नाम तुर्क, फारसी, अरबों जैसे आक्रांताओं से पहले से ही चला आ रहा है। एक उदाहरण है हिन्दूकुश पर्वतमाला का इतिहास, जिससे पता चलता है कि ये नाम हमें विदेशियों ने नहीं दिया है। हिन्दू नाम पूर्णतया भारतीय है और हर भारतीय को इस पर गर्व होना चाहिए।

“हीनं च दूष्यतेव् हिन्दुरित्युच्च ते प्रिये “

इसका अर्थ यह है – जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते हैं

  • इससे मिलता जुलता लगभग यही यही श्लोक कल्पद्रुम में भी दोहराया गया है

“हीनं दुष्यति इति हिन्दू ” का अर्थ यह है जो अज्ञानता और हीनता का त्याग करे उसे हिन्दू कहते है

  • पारिजात हरण में हिन्दू को कुछ इस प्रकार कहा गया है।

“हिनस्ति तपसा पापां दैहिकां दुष्टं । हेतिभिः श्त्रुवर्गं च स हिन्दुर्भिधियते”, इसका अर्थ यह है – जो अपने तप से शत्रुओं का, दुष्टों का और पाप का नाश कर देता है, वही हिन्दू है।

  • माधव दिग्विजय में भी हिन्दू शब्द को कुछ इस प्रकार उल्लेखित किया गया है।

“ओंकारमन्त्रमूलाढ्य पुनर्जन्म द्रढ़ाश्य:। गौभक्तो भारतगरुर्हिन्दुर्हिंसन दूषकः“, अर्थात वो जो ओमकार को ईश्वरीय धुन माने, कर्मों पर विश्वास करे, सदैव गौपालक रहे तथा बुराईयों को दूर रखे, वो हिन्दू है।

  • केवल इतना ही नहीं हमारे ऋगवेद ( ८:२:४१ ) में भी हिन्दू नाम के बहुत ही पराक्रमी और दानी राजा का वर्णन मिलता है । जिन्होंने 46000 गौमाताएं दान में दी थी और ऋग्वेद के मंडल में भी उनका वर्णन मिलता है ।
  • ऋग वेद में एक ऋषि का उल्लेख मिलता है जिनका नाम सैन्धव था। जो मध्यकाल में आगे चलकर “हैन्दव/हिन्दव” नाम से प्रचलित हुए।

हिन्दू’ शब्द का मूल निश्चित रूप से वेदादि प्राचीन ग्रंथों में विद्यमान है। उपनिषदों के काल के प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत मध्यकालीन साहित्य में ‘हिन्दू’ शब्द का वर्णन मिलता है। ‘हिन्दू’ शब्द प्राचीनकाल से सामान्यजनों की व्यावहारिक भाषा में प्रयुक्त होता रहा है। ब्राहिस्पत्य, कालिका पुराण, कवि कोश, राम कोश, कोश, मेदिनी कोश, शब्द कल्पद्रुम, मेरूतंत्र, पारिजात हरण नाटक, भविष्य पुराण, अग्निपुराण और वायु पुराणादि संस्कृत ग्रंथों में ‘हिन्दू’ शब्द जाति अर्थ में मिलता है।

यह भी पढ़े :  देश में देववाणी संस्कृत के प्रति क्यों कम हो रहा लगाव?

इन्दु से बना हिन्दू  

चीनी यात्री ह्वेनसांग के समय में ‘हिन्दू‘ शब्द प्रचलित था। यह माना जा सकता है कि ‘हिन्दू’ शब्द ‘इन्दु’ जो चन्द्रमा का पर्यायवाची है, से बना है। चीन में भी ‘इन्दु’ को ‘इंतु’ कहा जाता है। भारतीय ज्योतिष चन्द्रमा को बहुत महत्व देता है। राशि का निर्धारण चन्द्रमा के आधार पर ही होता है। चन्द्रमास के आधार पर तिथियों और पर्वों की गणना होती है। अत: चीन के लोग भारतीयों को ‘इंतु’ या ‘हिन्दू’ कहने लगे। मुस्लिम आक्रमण के पूर्व ही ‘हिन्दू’ शब्द के प्रचलित होने से यह स्पष्ट है कि यह नाम पारसियों या मुसलमानों की देन नहीं है।

श्लोक : ‘हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दु सरोवरम्। तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥’– (बृहस्पति आगम)

अर्थात : हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है।

जो लोग केवल एक किताब पर आश्रित है, वो हिन्दुत्व की संपन्नता और विराटता को कभी नहीं समझेंगे। स्वयं सोचिए, अगर धर्म विज्ञान है, तो क्या वो अलग-अलग हो सकता है? स्वयं सोचिए अगर आपके पृथक किसी चीज़ का अस्तित्व है ही नहीं, तो क्या आपको अपना नाम रखने की आवश्यकता पड़ेगी? यही हिन्दुत्व के साथ हुआ। यह धर्म इतना प्राचीन और सार्वभौमिक है कि इसे नामकरण की आवश्यकता ही नहीं पड़ी।

जिस प्रकार विज्ञान जैसे गुरुत्वाकर्षण का नियम सार्वभौमिक है, उसी प्रकार धर्म को विज्ञान मनाने वाले और सहिष्णुता का सिद्धान्त अपनाने वाली इस संस्कृति को कभी नामकरण की आवश्यकता ही नहीं पड़ी। आवश्यकता तब पड़ी जब धर्म के लिए युद्ध करनेवाली सनातन संस्कृति ने हमने धर्म के नाम पर युद्ध देखा। तब हमारे शास्त्रों ने हमे अपने अस्तित्व का भान दिया, हिन्दू नाम दिया जिसे आजकल के छद्म बुद्धिजीवी तोड़ना चाहते है। उम्मीद है आप अपने रुधिर में इन संस्कारों को सुरक्षित रखेंगे क्योंकि कोई इतना पतित नहीं हो सकता की इतनी पावन संस्कृति का त्याग कर दे। एक हिन्दू तो बिलकुल नहीं। यह लेख आपको हिन्दू होने और हिन्दू शब्द दोनों का अर्थ बताता है।

कविता के माध्यम से इस लेख का अंत करते है शायद वहीं आपके अंदर गौरव बोध भर दे-

इस्लामी आक्रमण, अंग्रेज़ी धर्मांतरण

गिरता सोमनाथ, टूटता विश्वनाथ

वीरांगनाओं के जौहर, वन की ठोकर

राणा लड़ते रहे, चेटक को खोकर l

 

शिवा, शमभा, बाजीराव, पेशवा

रक्त कटे, पर शेर लड़े बिना झुके

कितने आए, कितने गए

भगवा को पर, झुका ना सके

जानते हो क्यों?

 

भगवा संस्कार में जिंदा था

गुरूर और गुमान में ज़िंदा था

तुम्हारे मान- सम्मान

शान-स्वाभिमान में जिंदा था

 

माना तेरा तन परतंत्र था

पर, मन स्वतंत्र था

और इसी स्वतंत्र सोच में

बड़े शान से ज़िंदा था भगवा

 

अब वो इस मन को मार रहे है

हम भगवे को हार रहे है।

पर, हम इसे ज़िंदा रखेंगे

इस विश्वास के साथ

भले 17 बार गिरे सोमनाथ

पर, उठ खड़े हुए 18वीं बार…..