जिस गड्ढे में अपना दूध छलका रही थी गाय, वहीं से निकले गोरक्षनाथ: भभूत और गोबर से जुड़ी है गुरु गोरखनाथ के जन्म की रहस्यगाथा

गुरु गोरखनाथ या गोरक्षनाथ का जन्म वैशाख माह की पूर्णिमा के दिन हुआ था। अंग्रेजी माह के अनुसार इस बार 16 मई, 2022 को उनका जन्मदिन या प्रकटोत्सव मनाया जा रहा है। हालाँकि, जितना उनके जन्म के समय पर मतभेद है उतना ही उनके जन्म की कहानी पर भी। पुराणों के अनुसार जहाँ गोरखनाथ को भगवान शिव का अवतार बताया जाता है, वहीं उन्हें नाथ संप्रदाय को ऊँचाई पर पहुँचाने के साथ ही योग, प्राणायाम आदि का जनक भी बताया जाता है। बता दें कि शैव संप्रदाय के अंतर्गत ही शाक्त, नाथ और संत संप्रदाय आते हैं। उन्हीं में दसनामी और 12 गोरखपंथी व नाथ संप्रदाय भी शामिल हैं।

बाबा गोरखनाथ और उनके गुरु मत्स्येंद्रनाथ के समय के बारे में भारत में अनेक विद्वानों ने अनेक प्रकार की बातें कही हैं। समय का मतभेद तो विद्वानों में है ही यदि जन्म की प्रक्रिया पर आएँ तो वह कहानी भी कम रोचक नहीं है। आइए गुरु मत्स्येन्द्रनाथ के मानस पुत्र सिद्ध योगी गुरु गोरखनाथ के जन्म की कहानी पर बात कर लेते हैं।

गुरु गोरखनाथ का जन्म

मान्यता के अनुसार, कहा जाता है कि एक बार गुरु मत्स्येन्द्रनाथ भिक्षा माँगने एक गाँव गए। एक घर में भिक्षा देते हुए उन्हें एक उदास स्त्री दिखाई दी तो गुरु ने पूछा क्या समस्या है? स्त्री ने जवाब दिया कि मेरी कोई संतान नहीं है। उस स्त्री को परेशान देख गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ने उसे अभिमंत्रित कर एक चुटकी भभूत दी और पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद देकर चले गए।

कहते हैं कि लगभग 12 साल बाद गुरु मत्स्येन्द्रनाथ जब पुनः उसी गाँव में उस स्त्री के घर भिक्षा माँगने पहुँचे, तो दरवाजे के बाहर से ही आवाज लगाकर स्त्री को बुलाया कि अब तो तेरा बालक 12 साल का हो गया होगा।

पर वास्तिकता से अनजान वह स्त्री गुरु मत्स्येन्द्रनाथ की सिद्धियों से भी अनजान थी। इसलिए कहा जाता है कि उस महिला ने उस भभूत को खाने के बजाय गोबर में फेंक दिया था। लेकिन कहते हैं कि गुरु मत्स्येन्द्रनाथ की सिद्धि इतनी प्रबल थी भभूत बेकार नहीं जाती। वहीं स्त्री उनका तेज देखकर घबरा गई और डरते हुए सारी बात बता दी कि कहाँ गोबर में फेंक दिया है।

गुरु मत्स्येन्द्र नाथ ने कहा, दिखाओ जहाँ फेका है। गुरु जब वहाँ जाते हैं तो देखते हैं कि एक गाय गोबर से भरे गड्ढे के ऊपर खड़ी है और अपना दूध उस गड्ढे में छलका रही है। तब गुरु ने उस स्थान पर बालक को आवाज लगाई। कहा जाता है कि गुरु मत्स्येन्द्रनाथ की आवाज सुनते ही उस गोबर वाले गड्ढे से एक 12 साल का सुन्दर बालक बाहर आ जाता है। और हाथ जोड़कर गुरु के सामने खड़ा हो जाता है।

इस प्रकार कहा जाता है कि बाबा गोरखनाथ का जन्म स्त्री के गर्भ से नहीं बल्कि कुछ दूसरी प्रक्रिया से ही हुआ था। इसलिए उनका नाम गोरक्षनाथ पड़ा। साथ ही उनके जन्म की प्रक्रिया को अवतारों से भी जोड़ा जाता है। उन्हें भगवान शिव का अवतार माना जाता है। आगे कथा के अनुसार, इस 12 साल के बालक को गुरु मत्स्येन्द्रनाथ अपने साथ लेकर चले गए। और यही बालक आगे जाकर हठयोगी गुरु गोरखनाथ बना।

गोरख वाणी

बता दें कि गुरु गोरखनाथ ने ही नाथ योग, आसान, प्राणायाम, षट्कर्म, मुद्रा, नादानुसंधान, कुण्डलिनी आदि योग और प्राणायाम की परम्पपराएँ शुरू की थी। ये योग साधनाएँ गुरु गोरखनाथ की ही देन हैं। जहाँ गुरु गोरखनाथ ने नाथ सम्प्प्रदाय शुरू की थी, वहीं गोरखनाथ के हठयोग की परम्परा को आगे बढ़ाने वाले सिद्ध योगियों में प्रमुख हैं- चौरंगीनाथ, गोपीनाथ, चुणकरनाथ, भर्तृहरि, जालन्ध्रीपाव आदि। 13वीं सदी में इन्होंने गोरख वाणी का प्रचार-प्रसार किया था। यह एकेश्वरवाद पर बल देते थे, ब्रह्मवादी थे तथा ईश्वर के साकार रूप शिव के अलावा कुछ भी सत्य नहीं मानते थे।

1.लूहिपा, 2.लोल्लप, 3.विरूपा, 4.डोम्भीपा, 5.शबरीपा, 6.सरहपा, 7.कंकालीपा, 8.मीनपा, 9.गोरक्षपा, 10.चोरंगीपा, 11.वीणापा, 12.शांतिपा, 13.तंतिपा, 14.चमरिपा, 15.खंड्‍पा, 16.नागार्जुन, 17.कराहपा, 18.कर्णरिया, 19.थगनपा, 20.नारोपा, 21.शलिपा, 22.तिलोपा, 23.छत्रपा, 24.भद्रपा, 25.दोखंधिपा, 26.अजोगिपा, 27.कालपा, 28.घोम्भिपा, 29.कंकणपा, 30.कमरिपा, 31.डेंगिपा, 32.भदेपा, 33.तंघेपा, 34.कुकरिपा, 35.कुसूलिपा, 36.धर्मपा, 37.महीपा, 38.अचिंतिपा, 39.भलहपा, 40.नलिनपा, 41.भुसुकपा, 42.इंद्रभूति, 43.मेकोपा, 44.कुड़ालिया, 45.कमरिपा, 46.जालंधरपा, 47.राहुलपा, 48.धर्मरिया, 49.धोकरिया, 50.मेदिनीपा, 51.पंकजपा, 52.घटापा, 53.जोगीपा, 54.चेलुकपा, 55.गुंडरिया, 56.लुचिकपा, 57.निर्गुणपा, 58.जयानंत, 59.चर्पटीपा, 60.चंपकपा, 61.भिखनपा, 62.भलिपा, 63.कुमरिया, 64.जबरिया, 65.मणिभद्रा, 66.मेखला, 67.कनखलपा, 68.कलकलपा, 69.कंतलिया, 70.धहुलिपा, 71.उधलिपा, 72.कपालपा, 73.किलपा, 74.सागरपा, 75.सर्वभक्षपा, 76.नागोबोधिपा, 77.दारिकपा, 78.पुतलिपा, 79.पनहपा, 80.कोकालिपा, 81.अनंगपा, 82.लक्ष्मीकरा, 83.समुदपा और 84.भलिपा।

इन नामों के अंत में जो ‘पा’ प्रत्यय लगा है, वह संस्कृत शब्द ‘पाद’ का लघुरूप है। नवनाथ की परंपरा के इन सिद्धों की परंपरा के कारण ही मध्यकाल में हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म के अस्तित्व की रक्षा होती रही। इन सिद्धों के कारण ही अन्य धर्म के संतों की परंपरा भी शुरू हुई थी। इसलिए आज भी इन सिद्धों के इतिहास को संरक्षित किए जाने पर जोर दिया जाता है।

नाथ संप्रदाय

नाथ सम्प्रदाय गुरु गोरखनाथ से भी पुराना है। इसके प्रमाण स्वरुप में यह कहा जाता है कि भगवान शंकर को ‘भोलेनाथ’ और ‘आदिनाथ’ भी कहा जाता है। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम आदिश भी है। इस आदिश शब्द से ही आदेश शब्द बना है। जहाँ भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। वहीं भगवान शंकर के बाद इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय को आदिगुरु भी माना जाता है।

भगवान दत्तात्रेय के बाद सिद्ध संत गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ने ‘नाथ’ परंपरा को फिर से संगठित करके पुन: उसकी धारा को अबाध गति से आगे बढ़ाने का कार्य किया। वहीं गुरु मत्स्येन्द्रनाथ के बाद उनके शिष्य गुरु गोरखनाथ ने ‘नाथ’ परंपरा को एक नई बुलंदियों पपर पहुँचाया। कहा जाता है कि उनके लाखों शिष्यों में हजारों उनके जैसे ही उच्च कोटि के सिद्ध होते थे।

गोरखपंथ

गुरु गोरखनाथ के संप्रदाय की मुख्य 12 शाखाएँ हैं- 1. भुज के कंठरनाथ, 2. पागलनाथ, 3. रावल, 4. पंख या पंक, 5. वन, 6. गोपाल या राम, 7. चांदनाथ कपिलानी, 8. हेठनाथ, 9. आई पंथ, 10. वेराग पंथ, 11. जैपुर के पावनाथ और 12. घजनाथ।

गौरतलब है कि गुरु गोरखनाथ जी के नाम से ही नेपाल के गोरखाओं को गोरखा नाम मिला। नेपाल में एक जिला है गोरखा, उस जिले का नाम गोरखा भी गुरु गोरखनाथ के नाम पर ही पड़ा। ऐसी मान्यता है कि गुरु गोरखनाथ सबसे पहले यहीं दिखे थे। नेपाल के गोरखा जिला में एक गुफा है, जहाँ गोरखनाथ का पग चिन्ह है और उनकी एक मूर्ति भी है। यहाँ हर साल वैशाख पूर्णिमा को एक उत्सव मनाया जाता है जिसे ‘रोट महोत्सव’ कहते हैं और यहाँ मेला भी लगता है। गुरू गोरक्ष नाथ जी का एक स्थान उच्चे टीले गोगा मेड़ी, राजस्थान हनुमानगढ़ जिले में भी है। वहीं गोरखपुर में विशाल मठ और मंदिर तो है ही।