आचरण और सम्मान। देवमित्र राजपुरोहित था. वह बहुत विद्वान था. राजा उसका खूब आदर करता था, वह झुककर प्रणाम भी करता था. एक बार देवमित्र ने सोचा - मेरा यह सम्मान मेरे ज्ञान के कारण है या मेरे आचरण के कारण - इसकी परख करनी चाहिए. दूसरे दिन वह राजसभा से उठा, घर की ओर जा रहा था. मार्ग में राजभण्डार मिला. उसमें से दो मोहरें उठाई ओर चलता बना. भंडार का अधीक्षक कुछ नहीं बोल सका. उसने दूसरे दिन भी ऐसा ही किया. तीसरे दिन भी यही दोहराया. तब भंडार रक्षक ने यह बात राजा से कह दी. अगले दिन दरबार लगा. राजा ने पुरोहित से पूछा - क्या आपने भंडार से मोहरें चुराई है ? हाँ राजन् ! मैं तीन दिनों से यही कार्य कर रहा हूँ. राजा ने कहा - जानते हो, इसकी सजा मृत्युदंड है. तब पुरोहित बोला - राजन् ! दंड स्वीकार्य है, पर मेरी एक बात सुने. मैं जानना चाहता था कि मेरा सम्मान ज्ञान के कारण है या चरित्र के कारण ? यह जानने के लिए ही मैंने यह सब किया था ओर अब मुझे समाधान मिल गया है कि व्यक्ति का सम्मान उसके आचरण से है, ज्ञान से नहीं!