भगवान ने आपको जो काम दिया है उसे इमानदारी से बिना किसी शिकायत के पूरा करते चलें, आपको भगवान खुद ब खुद मिल जाएगा।
यह कथा कर्तव्य और परमात्मा के संबंध को बताती है।
बहुत पुरानी बात है, एक राज्य में जोरदार बारिश के कारण नदी में बाढ़ आ गई।
सारा नगर बाढ़ की चपेट में आ गया।
लोग जान बचाकर ऊंचे स्थानों की ओर भागे।
बहुत से लोगों की जान गई।
राज्य का राजा परेशान हो उठा।
एक पहाड़ी से उसने नगर का नजारा देखा।
सारा नगर पानी में डूब चुका था।
राजा ने अपने मंत्रियों से बचाव-कार्य पर चर्चा की।
पंडितोंको बुलाया गया।
किसी भी तरह से बाढ़ का पानी नगर से निकाला जाए, बस सबको यही चिंता थी।
राजा ने सिद्ध संतों से पूछा क्या कोई ऐसी विधि है जो नदी को उल्टा बहा सके, जिससे बाढ़ का पानी निकल जाए।
पंडितों ने कहा ऐसी कोई विधि नहीं है।
तभी वहां एक वेश्या आई, उसने राजा से कहा वह नदी को उल्टी बहा सकती है।
राजा को हंसी आ गई।
मंत्रियों और ब्राह्मणों ने उसे दुत्कार दिया, जहां बड़े-बड़े सिद्ध पुरुष हार मान गए, वहां तू क्या है।
पापिनी, तू तो अपवित्र है, समाज पर कलंक है।
वेश्या ने राजा से कहा मुझे एक बार अवसर तो दें।
राजा ने सोचा जहां इतने लोग कोशिशें कर रहे हैं, यह भी कर तो बुराई ही क्या है।
राजा ने उसे आज्ञा देदी।
वेश्या ने आंखें बंद कर थोड़ी देर कुछ बुदबुदाया।
वह ध्यान की स्थिति में ही बैठी रही, तभी अचानक चमत्कार हो गया।
नदी का बहाव उलटी दिशा में लौटने लगा और देखते ही देखते, सारा पानी बह गया, संकट टल गया।
राजा ने उस वेश्या के पैर पकड़ लिए।
उससे पूछा ऐसी सिद्धि तुझमें कहां से आई?
वेश्या ने कहा यह मेरी गुरु की शिक्षा का असर है।
जिस महिला ने मुझे इस निंदित कार्य में धकेला था, उसने मुझे एक शिक्षा दी थी कि शायद भगवान ने तुझे इसी कार्य के लिए बनाया है।
तू कभी अपनी किस्मत को मत कोसना,जो भी जिम्मेदारी हो उसे हमेशा पूरे मन से निभाना।
और मैंने यही किया।
मैंने कभी भगवान से शिकायत नहीं की, न ही किस्मत को कोसा।
मेरा कर्तव्य ही मेरी तपस्या बन गया और मैंने आज भगवान से उस तपस्या का फल मांग लिया।
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