ताजमहल में भगवान शिव का पाँचवा रूप अग्रेश्वर महादेव नागनाथेश्वर विराजित है... श्री पुरुषोत्तम नागेश ओक ने अपने शोधमय इतिहास लेखन सेविश्व में हलचल मचादिया था। तर्कों एवं विभिन्न उपलब्ध प्रमाणों से उन्होंने सिद्ध कर दिया था कि वर्तमान ताजमहल प्रभु शिव का मंदिर था। उनकी विद्वता से प्रभावित होकर आजादी के बाद कांग्रेस की सरकार ने उन्हें Archaelogical Survey of India का अध्यक्ष बनाया था। यह देश का दुर्भाग्य था की स्वतंत्र भारत का प्रथम शिक्षा मंत्री एक मुस्लिम मौलाना अबुल कलाम आजाद था एवं ज्यों ही उनकी पुस्तक "Tajmahalis a Hindu Temple Palace" प्रकाशितहुई उन्हें उस पद से हटा दिया गया। उसका कहना था कि इस पुस्तक से और ओक साहब के इतिहास लेखन से मुस्लिमों की भावनाएं आहत होती हैं। ताजमहल के गुम्बद के भीतरअंकित''ॐ'' का चित्र है। प्रस्तुत है उक्त पुस्तक के प्रामाणिक अंश -- श्री पी.एन. ओक अपनी पुस्तक "Tajmahal is a Hindu Temple Palace" में 100 सेभी अधिक प्रमाण और तर्को का हवाला देकर दावा करते हैं कि ताजमहल वास्तव में शिवमंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है। श्री पी.एन. ओक साहब को उस इतिहास कार के रूप मे जाना जाता है तो भारत के विकृत इतिहासको पुर्नोत्थान और सही दिशा में ले जाने का किया है। मुगलो और अग्रेजो के समय मे जिस प्रकार भारत के इतिहास के साथ जिस प्रकार छेड़छाड की गई और आज वर्तमान तक मे की जा रही है,उसका विरोध और सही प्रस्तुतिकारण करने वाले प्रमुख इतिहासकारो में पुरूषोत्तम नागेश ओक साहब का नाम लिया जाता है। ओक साहब ने ताजमहल की भूमिका,इतिहास और पृष्ठभूमि से लेकर सभी का अध्ययनकिया और छायाचित्रों छाया चित्रो के द्वारा उसे प्रमाणित करने का सार्थक प्रयास किया। श्री ओक के इन तथ्यो पर आ सरकार और प्रमुख विश्वविद्यालय आदि मौन था जबकिइस विषय पर शोध किया जाना चाहिये था और सही इतिहास से हमे अवगत करनाचाहिये था। किन्तु दुःख की बात तो यह है कि आज तक उनकी किसी भी प्रकार से अधिकारिक जाँच नहीं हुई। यदि ताजमहल के शिव मंदिर होने में सच्चाई है तो भारतीयता के साथ बहुत बड़ा अन्याय है। आज भी विद्यार्थियों को झूठे इतिहास की शिक्षा देना स्वयं शिक्षा के लिये अपमान की बात है, क्योकि जिस इतिहास से हम सबक सीखने की बात कहते है यदि वह ही गलत हो, इससे बड़ा राष्ट्रीय शर्म और क्या हो सकता है ? श्री पी.एन. ओक का दावा है कि ताजमहल शिव मंदिर है जिसका असली नाम तेजोमहालय है। इस सम्बंध में उनके द्वारा दिये गये तर्कों का हिंदी रूपांतरण इस प्रकार हैं -सर्व प्रथम ताजमहन के नाम के सम्बन्ध में ओक साहब ने कहा कि नाम-(क्रम संख्या 1 से 8 तक) 1. शाहज़हां और यहां तक कि औरंगज़ेब के शासनकाल तक में भी कभी भी किसी शाही दस्तावेज एवं अखबार आदि में ताजमहल शब्द का उल्लेख नहीं आया है। ताजमहल को ताज-ए-महल समझना हास्यास्पद है। 2. शब्द ताजमहल के अंत में आये 'महल' मुस्लिमशब्द है ही नहीं,अफगानिस्तान सेलेकर अल्जीरिया तक किसी भी मुस्लिम देश में एक भी ऐसी इमारत नहीं है जिसे कि महल के नाम से पुकारा जाता हो। 3. साधारणतः समझा जाता है कि ताजमहल नाम मुमताज महल, जो कि वहां पर दफनाई गई थी, के कारण पड़ा है। यह बात कम से कम दो कारणों से तर्क सम्मत नहीं है - पहला यह कि शाहजहां के बेगम का नाम मुमताज महल था ही नहीं,उसका नाम मुमताज़-उल-ज़मा नी था और दूसरा यह कि किसी इमारत का नाम रखने के लिय मुमताज़ नामक औरत के नाम से "मुम" को हटा देने का कुछ मतलब नहीं निकलता। 4. चूँकि महिला का नाम मुमताज़ था जो कि ज़ अक्षर मे समाप्त होता है न कि ज में (अंग्रेजी का Z न कि J), भवन का नाम में भी ताज के स्थान पर ताज़ होना चाहिये था (अर्थात्य दि अंग्रेजी में लिखें तो Taj के स्थान पर Taz होना था)। 5. शाहज़हां के समय यूरोपीय देशों से आनेवाले कई लोगों ने भवन का उल्लेख'ताज-ए-महल' के नाम से किया है जो कि उसके शिव मंदिर वाले परंपरागत संस्कृत नाम तेजोमहालय से मेल खाता है। इसके विरुद्ध शाहज़हां और औरंगज़ेब ने बड़ी सावधानी के साथ संस्कृत से मेल खाते इस शब्द का कहीं पर भी प्रयोग न करते हुये उसके स्थान पर पवित्र मकबरा शब्द का ही प्रयोग किया है। 6. मकबरे को कब्रगाह ही समझना चाहिये,न कि महल। इस प्रकार से समझने से यह सत्य अपने आप समझ में आ जायेगा कि कि हुमायुँ, अकबर, मुमताज़, एदतमातुद्दौला और सफ़दरजंग जैसे सारे शाही और दरबारी लोगों को हिंदू महलों या मंदिरों में दफ़नाया गया है। 7. और यदि ताज का अर्थ कब्रिस्तान है तो उसके साथ महल शब्द जोड़ने का कोई तुक ही नहीं है। 8. चूँकि ताजमहल शब्द का प्रयोग मुग़ल दरबारों में कभी किया ही नहीं जाता था, ताजमहल के विषय में किसी प्रकार की मुग़लव्याख्या ढूंढना ही असंगत है। 'ताज' और 'महल' दोनों हीसंस्कृत मूल के शब्द हैं।