स्वामी विवेकानद जी का एक प्रख्यात प्रवचन !!!! एक गडरिये को जंगल में शेर का नवजात बच्चा मिला, जिसकी आंख भी नहीं खुली थी ! मां संभवतः किसी शिकारी के हाथों मारी गई थी ! गडरिया दया करके उस बच्चे को अपने साथ ले आया तथा बकरियों का दूध पिलाकर उसे पालने लगा ! बच्चा बड़ा हुआ ! बह स्वयं को बकरी ही समझने लगा ! उनके साथ धक्के खाता हुआ झुण्ड में चलता ! बाड़े के बाहर कुत्तों से डरता तथा गडरिये को अपना मालिक समझता तथा उसकी लाठी से भयभीत होता ! एक दिन जंगल के शेर ने उसकी यह हालत देखी तो उसे बहुत अचम्भा हुआ ! उसने उसे पकड़ने का प्रयत्न किया किन्तु स्वयं को बकरी समझने बाला यह शेर बचने को भागा ! जैसे तैसे जंगल के शेर ने उसे पकड़ा और कहा कि तू कैसा शेर है जो बकरी बना हुआ है ! उसने जबाब दिया कि हे जंगल के राजा आपसे किसी ने झूठ शिकायत कर दी है, मैं कोई शेर बेर नहीं हूँ ! मैं तो गरीब बकरी ही हूँ ! तब शेर कान पकड़कर उसे एक कुए के पास ले गया वा उसके निर्मल जल में परछाईं दिखाई ! कि देख यह मैं हूँ और यह तू है ! हम दोनों एक जैसे हैं अथवा नहीं ? यदि मैं शेर हूँ तो तू भी तो शेर है ! ज़रा गर्जना तो कर के देख ! अभी तुझे समझ आ जाएगा! और जैसे ही आत्म विस्मृत शेर ने दहाड़ लगाई, उसे तो उसे सारी कायनात को मालूम हो गया कि जंगल में एक नया शेर आ गया है ! जो बकरियां अब तक उसे धकिया देती थी, वे उसके सामने से गायब हो गईं और जिन कुत्तों के भोंकने से बह थर थर कांपने लगता था वे कुत्ते उसके सामने से दुम दबाकर भाग छूटे ! आज आत्म विस्मृत हिन्दू समाज की भी यही स्थिति है ...