हमारे जीवन में वृक्षोँ का बहुत ही विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार एक दिन श्री कृष्ण ने यमुना नदी के तट पर खड़े वृंदावन में अपने ग्वाल मित्रों को संबोधित करते हुये कहा:- " इन उदार वक्षोँ की ओर देखो। वृक्ष का एक भी हिस्सा ऐसा नहीं है जो उपयोगी न हो। वे अपने पत्तों, ख़ुशबूदार फूलों, शीतल छाया, जड़ों, छालों, काठ, अंकुर, फलों से सेवा करते हैं जो भी पेड़ के पास जाता है बिना लाभ के वापस नहीं लौटता है। श्री कृष्ण ने अपने साथी ग्वालों से कहा कि वे अपने जीवन में वृक्ष के उदाहरण का अनुशरण करें। श्री कृष्ण के जीवन और उपदेशों में पेड़ का एक विशेष महत्व है। अपने आरंभिक जीवन में वह वस्तुत: पेड़ों से घिरे जंगल में रहते थे। कवि जयदेव उनका वर्णन करते हुये लिखते हैं कि वे यमुना के जल से शीतल हुई कोमल सुगंधित वायु से झूमते पेड़ों से भरे जंगल में रहते थे। एक सुगंधित रंगीन पुष्पमाल पहने श्री कृष्ण सम्मोहक लगते थे। श्री कृष्ण मनुष्य जीवन की तुलना एक वृक्ष से करते हैं। भगवद् गीता मे कठोपनिषद को प्रतिध्वनित करते हुये वे कहते हैं कि "मनुष्य-जीवन शाश्वत अश्वत्थ वृक्ष के समान है जिसकी जड़ें ऊपर की ओर बढ़ती हैं और शाखायें नीचे की ओर।" पुराण के अनुसार प्रलय के समय जब क्षुब्ध जल में सब कुछ डूब जाता है तब श्री कृष्ण एक शिशु का रूप धारण कर अश्वत्थ (पीपल) पेड़ के पत्ते पर सोते हैं। श्री कृष्ण को उनकी सारे जगत को सम्मोहित करनेवाली बांसुरी से पहचाना जाता है। पूर्णमासी के दिन नदी के घने वृंदावन से मंत्रमुग्ध होकर श्री कृष्ण ने अपनी वंशी बजाई। दैवी संगीत, मंत्रमुग्ध गोपियाँ सफेद रेत पर उनके साथ नृत्य करने भागी चलीं आईं। जब श्री कृष्ण को पता चला कि कालिया नाग की जहरीली फुंकारें यमुना तट की घास, बेलबूटे और पेड़ों को नष्ट कर रही हैं, तो वे चिंतित हो उठे। पर्यावरण को बचाने के लिये श्री कृष्ण ने उस विनाशक दैत्य से युद्ध किया और उसके फन पर नाचते हुये उस पर अधिकार कर लिया। श्री कृष्ण ने कालिया की पूंछ अपने हाथ में पकड़ उसे पराजित कर वहाँ से जाने को विवश कर दिया। इस संदर्भ में कंदब के वृक्ष का उल्लेख किया जाता है। ब्रजक्षेत्र में आज भी कंदब के पेड़ बड़ी संख्या में पाये जाते हैं। अभी हाल तक जिस क्षेत्र को क़स्बा खंडी के नाम से जाना जाता है, उसमें कदंब के बाग़ हुआ करते थे। यह पेड़ श्री कृष्ण को प्रिय था और इस पेड़ के साथ अनेक लीलायें जुड़ी हुईं हैं। कालिया को भगाने के लिये वह कदंब के पेड़ पर चढ़ कर यमुना में कूद पड़े थे। द्वारका की योजना बनाते समय श्री कृष्ण ने विभिन्न प्रकार के पेड़- पौधों के लिये एक इलाक़ा अलग तय कर दिया था। उन्हे दुर्लभ पौधों के लिये गहरा मोह था। पुराण के अनुसार केवल स्वर्ग के नंदनवन मे उगने वाले परिजात की पौध को धरती पर लाने के लिये श्री कृष्ण ने इन्द्र के साथ युद्ध किया था। श्री कृष्ण के पेड़-पौधों, लतामण्डपों और घनी लताओं के प्रेम को ब्रज के प्रेमोपासक संप्रदाय ने निकुंज लीला की संकल्पना में साकार किया। इसके अनुसार भक्तजन को आध्यात्मिक परमानन्द को प्राप्त करने के लिये दैवी युगल राधा-कृष्ण की निकुंज लीला पर ध्यान लगाना चाहिये। राधावल्लभ संप्रदाय के संस्थापक निकुंजलीला के बारे मेँ एक प्रेम गीत मे कहते हैं।” आज प्रात:काल निकुंज मे हर्षोन्माद की बरसात हुई जहां श्याम और श्वेत युगल अपने आप अपने को आनंदित कर रहे।