प्रश्न:- मन शांत होने में और समाधि में क्या अंतर है ??? उत्तर :- जहाँ मन मनन से रहित है और वृतियाँ अपने उद्गम में लीन हैं - समाधि है। मन का जो साक्षी है उसमे स्थित होना सम्यक समाधि है और मन की निर्विकल्प अवस्था ही मन की शांत अवस्था है । पर सत्य तो यह है । मन मिथ्या है। फिर उसकी अवस्थाओ की सत्यता कैसी। जब ठुठा है चोर नही है फिर चोर कुरूप था या सुरूप्। प्रश्न ही नही उठता । तुम मन नही । तुममे मन नही। तुम मन में नही। संकल्प मिथ्या है। सब संवेदन में भासित हो रहा है। अपने शुद्ध स्वरूप को पहचानने भर की देर है फिर खुली आँख समाधी। एक और दो के भेद से रहित। पा सको तो पा लो।