हाथ मिलाना क्यों उचित नहीं?
                    पुरातन समय में हाथ जोड़कर तथा साष्टांग प्रणाम कर अभिवादन करने की परंपरा हमारे समाज में थी जबकि वर्तमान समय में अभिवादन का प्रचलित स्वरूप हाथ मिलाना है जो कि पाश्चात्य संस्कृति की देन है। हाथ जोड़कर तथा साष्टांग प्रणाम कर अभिवादन करने से पीछे हमारे मनीषियों का तर्क था कि यथासंभव अपने शरीर का दूसरे के शरीर से स्पर्श किए बिना ही अभिवादन की प्रक्रिया पूरी हो जाए। नमस्कार करते समय दायां हाथ बाएं हाथ से जुड़ता है। शरीर में दाईं ओर झड़ा और बांईं ओर पिंगला नाड़ी होती है तथा मस्तिष्क पर त्रिकुटि के स्थान पर शुष्मना का होना पाया जाता है। अत: नमस्कार करते समय झड़ा, पिंगला के पास पहुंचती है तथा सिर श्रृद्धा से झुका हुआ होता है। इससे शरीर में आध्यात्मिकता का विकास होता है। जबकि हाथ मिलाने से हम अपने शरीर की ऊर्जा के परिमंडल में अनावश्यक रूप से दूसरे को घुसपैठ करने का अवसर प्रदान करते हैं। हाथ मिलाने से दो शरीरों की ऊर्जा आपस टकराती है जिसका विपरीत प्रभाव न सिर्फ शरीर बल्कि मस्तिष्क पर भी पड़ता है। भारतीय समाज में स्त्रियों से हाथ मिलाकर अभिवादन करना वर्जित है। इसके पीछे और कोई कारण हो न हो पर शरीर की विद्युतीय तरंगता का प्रभाव निश्चित रूप से कार्य करता है।
अत: स्पर्श से बचते हुए नमस्कार करना ही अभिवादन का उचित माध्यम है।