उठो धरा के अमर सपूतों उठो, धरा के अमर सपूतों। पुन: नया निर्माण करो। जन-जन के जीवन में फिर से नव स्फूर्ति, नव प्राण भरो। नई प्रात है नई बात है नया किरन है, ज्योति नई। नई उमंगें, नई तरंगें नई आस है, साँस नई। युग-युग के मुरझे सुमनों में नई-नई मुस्कान भरो। उठो, धरा के अमर सपूतों। पुन: नया निर्माण करो।।1।। डाल-डाल पर बैठ विहग कुछ नए स्वरों में गाते हैं। गुन-गुन, गुन-गुन करते भौंरें मस्त उधर मँडराते हैं। नवयुग की नूतन वीणा में नया राग, नव गान भरो। उठो, धरा के अमर सपूतों। पुन: नया निर्माण करो।।2।। कली-कली खिल रही इधर वह फूल-फूल मुस्काया है। धरती माँ की आज हो रही नई सुनहरी काया है। नूतन मंगलमय ध्वनियों से गुँजित जग-उद्यान करो। उठो, धरा के अमर सपूतों। पुन: नया निर्माण करो।।3।। सरस्वती का पावन मंदिर शुभ संपत्ति तुम्हारी है। तुममें से हर बालक इसका रक्षक और पुजारी है। शत-शत दीपक जला ज्ञान के नवयुग का आह्वान करो। उठो, धरा के अमर सपूतों। पुन: नया निर्माण करो।।4।। -द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी