अंग्रेजों की व्यक्तिगत मान्यताओं का पुलिन्दा......। दिनांकः 11 फरवरी 1871 के राजपत्र में प्रकाशित गृहमंत्रालय के संकल्पानुसार अंग्रेजी सरकार ने भारत के इतिहास संबंधी खोजों के विषय में अपनी रूचि दिखाते हुए पुरातत्वीय एवं अन्य ध्वंसावशेषों के एक शास्त्रीय, रीतिबद्ध अभिलेख एवं वर्णानात्मक विवरण की आवश्यकता पर बल दिया था। इस पुरातत्व सर्वेक्षण का प्रमुख जनरल कनिंघम को बनाया गया। यद्यपि ब्रिटिश राजशाही की इच्छा यह थी कि इस सर्वेक्षण में जहां तक संभव हो बुद्धिमान भारतीयों को रखा जाय ताकि शिलालेखों की पढ़ाई तथा अन्य उत्खनन संबंधी कार्य कुशलता से किया जा सके। फिर भी जनरल कनिंघम ने अपने साथ अंग्रेजों को ही रखा। जनरल कनिंघम की इस योजना के पीछे छिपे एक खतरनाक षडयन्त्र को हम उसके एक पत्र द्वारा प्रगट करना चाहते हैं। कनिंघम ने 15 सितम्बर 1842 के लंदन निवासी तथा ईस्ट इण्डिया कम्पनी के तत्कालीन डायरेक्टर कर्नल साइक्स को एक सुझाव दिया था कि यदि भारतीय ऐतिहासिक इमारतों का पुरातत्वीय सर्वेक्षण कराया जाय तो ब्रिटिश शासन एवं जनता को बड़ा लाभ होगा। इसी गुप्त षडयन्त्र के तहत लगभग 1860 में सेना के मेजर जनरल पद से मुक्त हुए कनिंघम को पुरातत्व सर्वेक्षण का मुख्य बनाया गया। जनरल कनिंघम के इस सर्वेक्षण को ही पत्थर की लकीर मानकर आज तक भारतीय छात्रों का पढ़ाया जा रहा है। प्रिय पाठको ! जनरल कनिंघम की रगों में उन्हीं कपटियों का रक्त बह रहा था, जिन्होंने समस्त हिन्दू जनता को आर्य एवं द्रविड़ नामक दो खण्डों में बाँटकर अलगाव पैदा किया। उन्होंने आर्य जाति को बाहर से आये बर्बर आक्रमणकारी कहा, जिन्होंने भारत की धरा को अपने तपो-तेज एवं रक्त से हरा-भरा किया है। जिन अंग्रेजों के रक्त में ही भारतीय संस्कृति को विनष्ट करने के सस्कार भरे पड़े थे, ऐसे व्यक्तियों की तथ्यविहीन एवं सिद्धान्तहीन मान्यताओं को स्वतन्त्रता के बाद भी भारतीय इतिहास के रूप में पढ़ाया जाता है। जिसने भारतीय जनजीवन को कभी निकट से देखा नहीं था, जो भारत के प्राचीन इतिहास के बारे में तथा वास्तु एवं शिल्प के बारे में गूँगा-बहरा था ऐसे व्यक्ति की व्यक्तिगत मान्यताओं का पुलिन्दा भारतीय छात्रों को इतिहास के नाम पर पढ़ाया जा रहा है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ॐॐॐॐॐॐ