कार्तिक मास की क्या महिमा है? सूतजी ने महर्षियों से कहा : पापनाशक कार्तिक मास का बहुत ही दिव्य प्रभाव बतलाया गया है । यह कार्तिक मास भगवान विष्णु को सदा ही प्रिय तथा भोग और मोक्षरूपी फल प्रदान करनेवाला है । कार्तिक मास करने योग्य पाँच नियम हरिजागरणं प्रातःस्नानं तुलसिसेवनम् । उद्यापनं दीपदानं व्रतान्येतानि कार्तिके ।। ‘रात्रि में भगवान विष्णु के समीप जागरण, प्रातःकाल स्नान करना, तुलसी की सेवा में संलग्न रहना, उद्यापन करना और दीप-दान देना – ये कार्तिक मास के पाँच नियम हैं । (पद्म पुराण, उ.खंड : ११७.३) इन पाँचों नियमों का पालन करने से कार्तिक मास का व्रत करनेवाला पुरुष व्रत के पूर्ण फल का भागी होता है । वह फल भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाला बताया गया है । कार्तिक में त्यागने योग्य कर्म : महादेवजी ने कहा : बेटा कार्तिकेय ! कार्तिक मास में प्रातःस्नान पापनाशक है । इस मास में जो मनुष्य दूसरे के अन्न का त्याग कर देता है, वह प्रतिदिन कृच्छ्रव्रत१ का फल प्राप्त करता है । कार्तिक में शहद का सेवन, काँसे के बर्तन में भोजन और मैथुन का विशेषरूप से परित्याग करना चाहिए। कार्तिक में भूमि शयन का फल : चन्द्रमा और सूर्य के ग्रहणकाल में ब्राह्मणों को पृथ्वी-दान करने से जिस फल की प्राप्ति होती है, वह फल कार्तिक में भूमि पर शयन करनेवाले पुरुष को स्वतः प्राप्त हो जाता है । कार्तिक में दान : कार्तिक मास में ब्राह्मण दम्पति को भोजन कराकर उनका पूजन करें । अपनी क्षमता के अनुसार कम्बल, ओढना-बिछौना एवं नाना प्रकार के रत्न व वस्त्रों का दान करें । जूते और छाते का भी दान करने का विधान है । कार्तिक में पत्तल में भोजन करने का फल : कार्तिक मास में जो मनुष्य प्रतिदिन पत्तल में भोजन करता है, वह १४ इन्द्रों की आयुपर्यंत कभी दुर्गति में नहीं पडता । उसे समस्त तीर्थों का फल प्राप्त हो जाता है तथा उसकी सम्पूर्ण कामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं । (पद्म पुराण, उ.खंड : अध्याय १२०) कार्तिक में मोक्ष देनेवाला और पाप नाश करनेवाला नियम : कार्तिक में तिल-दान, नदी-स्नान, सदा साधु पुरुषों का सेवन और पलाश-पत्र से बनी पत्तल में भोजन मोक्ष देनेवाला है । कार्तिक मास में मौनव्रत का पालन, पलाश के पत्तों में भोजन, तिलमिश्रित जल से स्नान, निरंतर क्षमा का आश्रय और पृथ्वी पर शयन – इन नियमों का पालन करनेवाला पुरुष युग-युग के संचित पापों का नाश कर डालता है । कार्तिक में हरि भजन से पितरों का उद्धार : संसार में विशेषतः कलियुग में वे ही मनुष्य धन्य हैं, जो सदा पितरों के उद्धार के लिए भगवान श्रीहरि का सेवन करते हैं । वे हरिभजन के प्रभाव से अपने पितरों का नरक से उद्धार कर देते हैं । यदि पितरों के उद्देश्य से दूध आदि के द्वारा भगवान विष्णु को स्नान कराया जाय तो पितर स्वर्ग में पहुँचकर कोटि कल्पों तक देवताओं के साथ निवास करते हैं । कार्तिक में तुलसी पूजन का फल : जो मुख में, मस्तक पर तथा शरीर पर भगवान की प्रसादभूता तुलसी को प्रसन्नतापूर्वक धारण करता है, उसे कलियुग नहीं छूता । कार्तिक मास में तुलसी का पूजन महान पुण्यदायी है । प्रयाग में स्नान करने से, काशी में मृत्यु होने से और वेदों का स्वाध्याय करने से जो फल प्राप्त होता है, वह सब तुलसी के पूजन से मिल जाता है । कार्तिक में आँवले की छाया में भोजन का फल : जो द्वादशी को तुलसीदल व कार्तिक में आँवले का पत्ता तोडता है, वह अत्यंत नंदित नरकों में पडता है । जो कार्तिक में आँवले की छाया में बैठकर भोजन करता है, उसका वर्ष भर का अन्न-संसर्गजनित दोष (जूठा या अशुद्ध भोजन करने से लगनेवाला दोष) नष्ट हो जाता है । कार्तिक मास में दीप-दान का फल : ‘पुष्कर पुराणङ्क में आता है : ‘जो मनुष्य कार्तिक मास में संध्या के समय भगवान श्रीहरि के नाम से तिल के तेल का दीप जलाता है, वह अतुल लक्ष्मी, रूप, सौभाग्य एवं सम्पत्ति को प्राप्त करता है ।ङ्क कार्तिक मास के व्रत से चतुर्मास व्रत का फल : यदि चतुर्मास के चार महीनों तक चतुर्मास के शास्त्रोचित नियमों का पालन करना सम्भव न हो तो एक कार्तिक मास में ही सब नियमों का पालन करना चाहिए। जो ब्राह्मण सम्पूर्ण कार्तिक मास में काँस, मांस, क्षौर कर्म (हजामत), शहद, दुबारा भोजन और मैथुन छोड देता है, वह चतुर्मास के सभी नियमों के पालन का फल पाता है ।