एकाग्रता का प्रभाव। (स्वामी विवेकानंद) एक बार स्वामी विवेकानंदजी मेरठ आये। उनको पढ़ने का खूब शौक था। इसलिए वे अपने शिष्य अखंडानंद द्वारा पुस्तकालय में से पुस्तकें पढ़ने के लिए मँगवाते थे। केवल एक ही दिन में पुस्तक पढ़कर दूसरे दिन वापस करने के कारण ग्रन्थपाल क्रोधित हो गया। उसने कहा कि रोज-रोज पुस्तकें बदलने में मुझे बहुत तकलीफ होती है। आप ये पुस्तकें पढ़ते हैं कि केवल पन्ने ही बदलते हैं? अखंडानंद ने यह बात स्वामी विवेकानंद जी को बताई तो वे स्वयं पुस्तकालय में गये और ग्रंथपाल से कहाः ये सब पुस्तकें मैंने मँगवाई थीं, ये सब पुस्तकें मैंने पढ़ीं हैं। आप मुझसे इन पुस्तकों में के कोई भी प्रश्न पूछ सकते हैं। ग्रंथपाल को शंका थी कि पुस्तकें पढ़ने के लिए, समझने के लिए तो समय चाहिए, इसलिए अपनी शंका के समाधान के लिए स्वामी विवेकानंद जी से बहुत सारे प्रश्न पूछे। विवेकानंद जी ने प्रत्येक प्रश्न का जवाब तो ठीक दिया ही, पर ये प्रश्न पुस्तक के कौन से पन्ने पर हैं, वह भी तुरन्त बता दिया। तब विवेकानंदजी की मेधावी स्मरणशक्ति देखकर ग्रंथपाल आश्चर्यचकित हो गया और ऐसी स्मरणशक्ति का रहस्य पूछा। स्वामी विवेकानंद ने कहाः पढ़ने के लिए ज़रुरी है एकाग्रता और एकाग्रता के लिए ज़रूरी है ध्यान, इन्द्रियों का संयम। बच्चों को किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए रोज ध्यान और त्राटक का अभ्यास करना चाहिये। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ