भगवान की आरती क्योँ की जाती है? आरतीः मानव जीवन को दिव्य बनाने की वैज्ञानिक परम्परा। हिन्दुओं के धार्मिक कार्यों में आरती का एक विशेष स्थान है। शास्त्रों में इसे 'आरात्रिक' अथवा 'निराजन' के नाम से भी पुकारा गया है। हमारे धर्मशास्त्रों के अनुसार इष्ट-आराध्य के पूजन में जो कुछ भी त्रुटि या कमी रह जाती है, उसकी पूर्ति आरती करने से हो जाती है। इसीलिए हिन्दुओं के संध्योपासना एवं किसी भी मांगलिक पूजन में आरती का समावेश किया गया है। "स्कन्दपुराण" में भगवान शंकर माँ पार्वती से कहते हैं- मंत्रहीनं क्रियाहीनं यत् कृतं पूजनं हरेः। सर्व सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे।। 'हे शिवे ! भगवान का मंत्ररहित एवं क्रिया (आवश्यक विधि विधान) रहित पूजन होने पर भी आरती कर लेने से उसमें सारी पूर्णता आ जाती है।' साधारणतया पाँच बत्तियोंवाले दीप से आरती की जाती है, जिसे पंचप्रदीप कहा जाता है। इसके अलावा एक, सात अथवा विषम संख्या के अधिक दीप जलाकर भी आरती करने का विधान है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ