जीव और शिव का भेद कैसे मिटे? पूज्य बापू ने एक छोटा-सा किन्तु सचोट उदाहरण देकर सरलता से जवाब देते हुए कहाः सच्चे अर्थों में जीवात्मा और परमात्मा दोनों अलग हैं। जब जीवभाव की अज्ञानता निकल जायेगी और माया की तरफ दृष्टि नहीं डालोगे तब ये दोनों एक ही दिखेंगे। जिस प्रकार थोड़े से गेहूँ एक डिब्बे में हैं और थोड़े से गेहूँ एक टोकरी में हैं और तुम बाद में डिब्बे के गेहूँ और टोकरी के गेहूँ' इस प्रकार अलग-अलग नाम देते हो परन्तु यदि तुम 'डिब्बा' और 'टोकरी' ये नाम निकाल दो तो बाकी जो रहेगा वह गेहूँ ही रहेगा।" दूसरा एक सरल दृष्टांत देते हुए पूज्यश्री ने कहाः एक गुरु के शिष्य ने कहाः 'बेटा !गंगाजल ले आ।' शिष्य तुरन्त ही गंगा नदी में से एक लोटा पानी भरकर ले आया और गुरुजी को दिया। गुरुजी ने शिष्य से कहाः 'बेटा ! यह गंगाजल कहाँ है? गंगा के पानी में तो नावें चलती हैं। इसमें नाव कहाँ है? गंगा में तो लोग स्नान करते हैं। इस पानी में लोग स्नान करते हुए क्यों नहीं दिखते?' शिष्य घबरा गया और बोलाः 'गुरुजी ! मैं तो गंगा नदी में से ही यह जल लेकर आया हूँ।' शिष्य को घबराया हुआ देखकर गुरुजी ने धीरे से कहाः 'बेटा ! घबरा मत। इस पानी और गंगा के पानी में जरा भी भेद नहीं है। केवल मन की कल्पना के कारण ही भिन्नता भासती है। वास्तव में दोनों पानी एक ही हैं और इस पानी को फिर से गंगा में डालेगा तो यह गंगा का पानी हो जायेगा और रत्ती भर भी भेद नहीं लगेगा। इसी प्रकार आत्मा और परमात्मा भ्रान्ति के कारण अलग-अलग दिखते हैं, परन्तु दोनों एक ही हैं।' जिस प्रकार एक कमरे के बाहर की और अन्दर की जमीन अलग-अलग दिखती है लेकिन जो दीवार उस जमीन को अलग करती है वह दीवार पाताल तक तो नहीं गयी है। वास्तव में जमीन में कोई भेद नहीं है। दोनों जमीन तो एक ही हैं परन्तु दीवार की भ्रान्ति के कारण अलग-अलग नाम से जानी जाती हैं।