जिसके सम्मुख संसार का साम्राज्य तो क्या, इन्द्र का वैभव भी कुछ नहीं...
रंग अवधूत महाराज पुण्यतिथि।


मुक्त स्वभावयुक्त महापुरुषों का चिंतन अथवा उनकी चर्चा करने से, उनकी
स्नेहमयी चेष्टाओं का, वार्ताओं का बयान करने अथवा अहोभाव करने से चित्त
पावन हो जाता है और उनमें अहोभाव करने से हृदय भक्तिभाव व पवित्रता से भर
जाता है । निर्वासनिक चित्त में से भोग की लिप्सा चली जायेगी और खायेगा,
पियेगा तो औषधवत्... परंतु उससे जुडेगा नहीं ।
एक बार रंग अवधूत महाराज (नारेश्वरवाले) के पास बलसाड (गुज.) के कुछ भक्त
'केसर आम ले गये और आम की भारी प्रशंसा करने लगे । ऐसी प्रशंसा की मानों
उसके आगे स्वर्ग का अमृत भी कुछ नहीं । वे बोले : ''बापू ! यह प्रथम
दर्जे का मीठा आम है ।
अवधूत कहते हैं : ''तुम श्रद्धा-भक्ति से देते तो शायद एकाध टुकडा मैं खा
लेता लेकिन तुमने इसकी इतनी बडाई की, फिर भी मेरे मुँह में अभी पानी नहीं
आया । अगर पानी आ जायेगा तो जरूर खाऊँगा, अन्यथा नहीं ।
हम किसीके हाथ में नींबू देखते हैं तो मुँह में पानी आ जाता है, कहीं
हलवा बन रहा है तो पानी आ जाता है । ये आदतें बाहर की तुच्छ चीजों में
ऐसे रस टपका देती हैं कि अंदर का रस कितना है इसका पता ही नहीं चलता ।
एक सामान्य योगी होता है जो ध्यान, समाधि आदि करके शांति व आनंद का अनुभव
करता है । दूसरे होते हैं अभ्यासी योगी । ये आनंद का अनुभव करते हुए ऊपर
आते हैं तो इनका हृदयकमल खिलता है । कभी भी गोता मारते हैं और शांत हो
जाते हैं लेकिन जो सुख-दुःख के समय भी विचलित न हो, अपने आत्मा-परमात्मा
में टिका रहे वह 'गीता के मत में परम योगी है । उसका चित्त सुख-दुःख के
आकर्षण में प्रवाहित न होकर सम रहता है । ऐसे योगी नित्य अपने
प्रेमस्वरूप परमात्मा को, इष्ट को, गुरु को स्नेह करते हैं और उन्हें वह
नया रस प्राप्त होता है जिसके सम्मुख संसार का साम्राज्य तो क्या, इन्द्र
का वैभव भी कुछ नहीं ।
अतः आप भी मन में गाँठ बाँध लें । सुख-दुःख में सम रहते हुए, सांसारिक
आकर्षणों में प्रवाहित होते लोगों की दौड में सम्मिलित न होकर 'मुझे तो
सत्यस्वरूप ईश्वरीय आत्मसमता में रहना है इस हेतु नित्य प्रातः
ब्रह्ममुहूर्त में उठकर, सूर्योदय से पहले स्नानादि करके शुद्ध होकर शांत
बैठो । अपनी त्रुटियों और कमजोरियों को याद करके 'हरि ॐ की गदा मारकर
उन्हें भगाकर सोऽहम्... शिवोऽहम् स्वरूप में स्वयं को प्रतिष्ठित करो ।
(संत श्री आशारामजी आश्रम से प्रकाशित 'शीघ्र ईश्वर प्राप्तिङ्क पुस्तक से)