जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है, उसे एक ही जन्म में हजारों वर्षों का कम कर लेना होगा। उसे इस युग की रफ़्तार से बहुत आगे निकलना होगा। जैसे स्वप्न में मान-अपमान, मेरा-तेरा, अच्छा-बुरा दिखता है और जागने के बाद उसकी सत्यता नहीं रहती वैसे ही इस जाग्रत जगत में भी अनुभव करना होगा। बस…हो गया हजारों वर्षों का काम पूरा। ज्ञान की यह बात हृदय में ठीक से जमा देनेवाले कोई महापुरुष मिल जायें तो हजारों वर्षों के संस्कार, मेरे-तेरे के भ्रम को दो पल में ही निवृत कर दें और कार्य पूरा हो जाये। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ यदि हमारा मन ईर्ष्या-द्वेष से रहित बिल्कुल शुद्ध हो तो जगत की कोई वस्तु हमें नुक्सान नहीं पहुँचा सकती। आनंद और शांति से भरपूर ऐसे महात्माओं के पास क्रोध की मूर्ति जैसा मनुष्य भी पानी के समान तरल हो जाता है। ऐसे महात्माओं को देख कर जंगल के सिंह और भेड़ भी प्रेमविह्वल हो जाते हैं। सांप-बिच्छू भी अपना दुष्ट स्वभाव भूल जाते हैं। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ चिंता करोगे तो भटक जाओगे चिंतन करोगे तो भटके हुए को रास्ता दिखाओगे। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ बिना लक्ष्य के जीवन बिना पता लिखे लिफाफे के समान है जो कही नही पहुच सकता। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ हमे मिटा सके ये जमाने में दम नही, हमसे जमाना है जमाने से हम नही ! क्योकि हम आत्मा है और परमात्मा के है। हम भी चैतन्य है और परमात्मा भी चैतन्य है , हम परमात्मा की जात के है। मान-बड़ाई बढ़े -घटे इसकी ऐसी तैसी , मान की इच्छा मत करो तो मान पीछे-पीछे फिरेगा और मान पकड़कर बैठोगे तो अपमान से मारे जाओगे। यश के गुलाम हुए तो अपयश तुमको दबोच देगा। अरे ! भगवान ने भी तुमको अपना गुलाम बनाने के लिए पैदा नही किया भैया , अपना मित्र बनाने के लिए पैदा किया है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ रास्ते चलते जब किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को देखो,चाहे वह इंग्लैंड़ का सर्वाधीश हो,चाहे अमेरिका का ‘प्रेसिडेंट’ हो, रूस का सर्वेसर्वा हो, चाहे चीन का‘ड़िक्टेटर’हो- तब अपने मन में किसी प्रकार की ईर्ष्याया भय के विचार मत आने दो। उनकी शाही नज़र को अपनी ही नज़र समझकर मज़ा लूटो कि‘मैं ही वह हूँ।’ जब आप ऐसा अनुभव करने की चेष्टा करेंगे तब आपका अनुभव ही सिद्ध कर देगा कि सब एक ही है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ सुख चाहते हो, दूसरों को सुख दो। मान चाहते हो, औरोँ को मान प्रदान करो। हित चाहते हो तो हित करो और बुराई चाहते हो तो बुराई करो। जैसा बीज बोओगे वैसा ही फल पाओगे। यह समझ लो कि मीठी और हितभरी वाणी दूसरों को आनंद, शान्ति और प्रेम का दान करती है और स्वयं आनंद, शान्ति और प्रेम को खींचकर बुलाती है। मीठी और हितभरी वाणी से सदगुणों का पोषण होता है, मन को पवित्र शक्ति प्राप्त होती है और बुद्धि निर्मल बनती है। वैसी वाणी में भगवान का आशीर्वाद उतरता है और उससे अपना, दूसरों का, सबका कल्याण होता है। उससे सत्य की रक्षा होती है और उसीमें सत्य की शोभा है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ परमात्मा से मिलने की तड़प हो तो परमात्मा का मिलना असंभव नहीं है। इसके लिए पुरानी आदतों से लड़ना पड़ेगा, ऐहिक संसार के आकर्षणों से बचना पड़ेगा। फिर तो रिद्धि-सिद्धि और वाक्‌सिद्धि की प्राप्ति होगी, मनोकामनाएँ पूर्ण होंगी। घटनाओं का पूर्वाभास होने लगेगा, दुर्लभ वस्तुएँ सुलभ होने लगेंगे, धन-सम्पत्ति, मान-सम्मान आदि मिलने लगेंगे। ये सब सिद्धियाँ इन्द्रदेव के प्रलोभन हैं। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ अगर जीवन को दिव्य बनाना है, परम तेजस्वी बनाना है, सब दुःखों से सदा के लिए दूर होकर परम सुख-स्वरूप आत्मा का साक्षात्कार करना है तो सूक्ष्म शक्तियों की जरूरत पड़ती है। सूक्ष्म शक्तियाँ इन्द्रियों के संयम से विकसित होती हैं, सुरक्षित रहती हैं। इन्द्रियों का असंयम करने से सूक्ष्म शक्तियाँ क्षीण हो जाती हैं। रोजी-रोटी के लिए तड़फने वाले मजदूर में और योगी पुरुष में इतना ही फर्क है। सामान्य आदमी ने अपनी सूक्ष्म शक्तियों का जतन नहीं किया जबकि योगी पुरुष शक्तियों का संयम करके सामर्थ्यवान बन जाते हैं। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ धीर परिणाम में मंगल पर, अपने स्वरूप पर दृष्टि रखता है, कष्ट-तपश्चर्या-श्रम पर नजर नहीं रखता। कर्तृत्व पर नजर नहीं, कर्ता के अधिष्ठान पर नजर रखता है। मन्दबुद्धि तत्काल लाभ को देखता है, तुच्छ क्षणिक लाभ से प्रभावित होकर परम लाभ खो बैठता है। मन्द की वृत्ति दूसरे की चर्चा में, भूत-भैरव, मकान-दुकान, बहू-बेटी-बेटा, नाती-पोती, मतलब कि बहिरंग चर्चा में उलझी जाती रहती है। फलतः मन्द अपना भाव भी मन्द कर देता है। धीर परम लाभ पर दृष्टि रखते हुए तुच्छ लाभों की लापरवाही कर देता है। सत्य प्रादेशिक या तात्कालिक नहीं होता, अनादि अनन्त होता है। सत्य पाने के लिए संयम और सजगता रूपी तप किया जाता है, व्यक्तित्व का होम किया जाता है। व्यक्तित्व बाधित होना आवश्यक होता है। जो अपने छोटे-से-छोटे सुख का, ऐन्द्रिक तृप्ति का त्याग न कर सके वह मन्द है। खाने-पीने-पहनने-रहने की चिन्ता उन्हीं को सताती है जो मन्द हैं। अतः साधक मन्द व्यक्तियों के साथ अपनी तुलना न करे। धीयं रति इति धीरः । जो बुद्धि को अपने पास रखता है, मनोवृत्ति के प्रवाह में बह नहीं जाता वह धीर है। शाबाश धीर ! शाबाश...!! ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ बैल किसान की बात मानता है। घोड़ा घुड़सवार की बात मानता है । कुत्ता या गधा भी अपने मालिक की बात मानता है । परंतु जो मनुष्य किन्हीं ब्रह्मवेत्ता को अपने सदगुरु के रूप में तो मानता है, लेकिन उनकी बात नहीं मानता वह तो इन प्राणियों से भी गया-बीता है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ मनुष्य जब दुःख का सदुपयोग करना सीख लेता है तो दुःख का कोई मूल्य नहीं रहता। जब सुख का सदुपयोग करने लगता है तब सुख का कोई मूल्य नहीं रहता। सदुपयोग करने से सुख-दुःख का प्रभाव क्षीण होने लगता है और सदुपयोग करने वाला उनसे बड़ा हो जाता है। उपयोग करने वाले का मूल्य बढ़ जाता है और उपयोग में आने वाली जड़ चीज का मूल्य कम हो जाता है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ