ब्रह्मकुमारी वाले इसे भी नकार रहे हैँ - ****-- ईश्वर: वेद का प्रत्येक मंत्र ईश्वर का वर्णन कर रहा है। वेद का मुख्य विषय ,ईश्वर , ही है। मनुष्य जाति जब से वेद से अलग हुई है तब से द्रश्य को मानाने और अद्रश्य को न मानाने की आदी हो गयी है। आइये देखें वह इश्वर कैसा है, स हि सर्व वित् सर्व कर्ता (संख्य दर्शन ३/५६) वह परात्मा सर्वा न्तार्यामी और सब जगत का कर्ता है ............. तदन्त रस्य सर्व स्य तदू सर्व स्यास्य बाह्यतः ( यजुर्वेद अ. ४०) वह परात्मा सरे संसार को गति देता है किन्तु स्वयं गति शून्य है ,अचल है। वह दूर भी है और समीप भी है वही सरे संसार में अणु - परमाणु के अन्दर भी है और बहार भी है। भगवान: वर्त्तमान स्थिति में भारत के हर प्रान्त में अनेक भगवान पैदा हो चुके हैं। जिधर देखिये उधर भगवान ही भगवान नज़र आते हैं. पुराणों में इस कलयुग की २८ वीं चतुर्यगी में भगवान के दशावतार की चर्चा सुनते आये हैं। कहीं - कहीं दस से अधिक भी बताये गए हैं। किन्तु आज भगवानों की बाढ़ सी आयी हुई है "विधाता ये दुनियाँ में क्या हो रहा है। जिसे देखए वह खुदा हो रहा है.. यथा हम धन वाले को धनवान, विद्या वाले को विद्यावान कहते हैं उसी प्रकार भग वाले को भगवान कहा जाता है। प्रथम भग शब्द पर विचार करें। भग संस्कृत का शब्द है। एश्वर्यस्य समग्रस्य धर्मस्य यश स श्रियः। सम्पूर्ण एश्वर्य, धर्म , यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य इन छः का नाम भग है। इन सब लक्षणों से भी अनंत गुण जिसमें हैं वह इश्वर है.. उपरोक्त गुणों से युक्त हो कर मानव जाति को अज्ञान, अत्याचार, भय, शोषण से मुक्ति दिलाने वालों को भी भगवान माना गया है। जैसे भगवान राम , भगवान कृष्ण।