ग्रीष्म
ऋतु में "गन्ने का रस"। ग्रीष्म ऋतु में शरीर का जलीय व स्निग्ध अंश कम
हो जाता है। गन्ने का रस शीघ्रता से इसकी पूर्ति कर देता है। यह जीवनीशक्ति व
नेत्रों की आर्द्ररता को कायम रखता है। इसके नियमित सेवन से शरीर का दुबलापन, पेट की गर्मी, हृदय की जलन व कमजोरी दूर
होती है। गन्ने को साफ करके चूसकर खाना चाहिए। सुबह नियमित रूप से गन्ना चूसने से
पथरी में लाभ होता है। अधिक गर्मी के कारण उलटी होने पर गन्ने के रस में शहद
मिलाकर पीने से शीघ्र राहत मिलती है। एक कप गन्ने के रस में आधा कप अनार का रस
मिलाकर पीने से खूनी दस्त मिट जाते हैं। थोड़ा सा नीँबू व अदरक मिलाकर बनाया गया
गन्ने का रस पेट व हृदय के लिए हितकारी है। सावधानीः मधुमेह (डायबिटीज), कफ व कृमि के रोगियों को
गन्ने का सेवन नहीं करना चाहिए। विशेष ध्यान देने योग्यः आजकल अधिकतर लोग मशीन, जूसर आदि से निकाला हुआ रस
पीते हैं। 'सुश्रुत
संहिता' के
अनुसार यंत्र से निकाला हुआ रस पचने में भारी, दाहकारी कब्जकारक होने के साथ संक्रामक कीटाणुओं से युक्त भी हो सकता
है। अतः फल चूसकर या चबाकर खाना स्वास्थ्यप्रद है।
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