संयुक्त परिवार आधुनिक समय में ; एक दृष्टि :- हिंदू सनातन धर्म 'संयुक्त परिवार' को श्रेष्ठ शिक्षण संस्थान मानता है। धर्मशास्त्र कहते हैं कि जो घर संयुक्त परिवार का पोषक नहीं है उसकी शांति और समृद्धि सिर्फ एक भ्रम है। संयुक्त परिवार की रक्षा होती है सम्मान, संयम और सहयोग से। संयुक्त परिवार से संयुक्त उर्जा का जन्म होता है और संयुक्त उर्जा दुखों को खत्म करती है, ग्रंथियों को खोलती है। इसके विपरीत कलह से कुल का नाश होता है। संयुक्त हिंदू परिवार का आधार है- कुल, कुल की परंपरा, कुल देवता, कुल देवी, कुल धर्म और कुल स्थान। वर्तमान में हिन्दू परिवार में 'अहंकार और ईर्ष्या' का स्तर बढ़ गया है जिससे परिवारों का निरंतर पतन स्वाभाविक ही है। अब ज्यादातर परिवार एकल परिवार हो गए हैं अथवा इस दिशा में तेजी से बढ़ रहे हैं। पहले हिन्दुओं में एक कुटुंब व्यवस्था थी, परन्तु ईर्ष्या और पश्चमी सभ्यता की सेंध के कारण हिन्दुओं का ध्यान न्यूक्लियर फेमिली की ओर हो गया है, जोकि अनुचित है। संयुक्त परिवार में ही बच्चे का ठीक-ठीक मानसिक विकास होता है। एकल परिवार में बच्चे के मस्तिष्क की संरचना अलग होती है, जो कई बार सामाजिक तालमेल में अक्षम सिद्ध होती है । संयुक्त परिवार में जहां बच्चों का लालन-पालन और मानसिक विकास अच्छे से होता है वहीं वृद्धजन का अंतिम समय भी शांति और खुशी से गुजरता है। वह अपनी सभी इच्छाओं की पूर्ति कर सकते हैं। हमारे बच्चे संयुक्त परिवार में दादा-दादी, काका-काकी, बुआ आदि के प्यार की छांव में खेलते-कूदते और संस्कारों को सीखते हुए बड़े हो। संयुक्त परिवार से ही संस्कारों का जन्म होता है। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं जिसमें सबसे बड़ा कारण है गृह कलह, सास-बहु, पति-पत्नी के झगड़े, गरीबी और आत्मकेंद्रित महत्वकांक्षा। इस सबके चलते जहां एकल परिवार बनते जा रहे हैं वहीं सबसे बड़ा सवाल सामने आ रहा है- तलाक। इसका हल निकालने में 'धर्म' महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकता है, क्योंकि दो इंसानों की सोच एक नहीं हो सकती है इस सोच को एक करने के लिए किसी माध्यम की भूमिका की जरूरत होती है और वह निश्चित रूप से धर्म ही है। धर्म को समझने वाले में विनम्रता आती है तथा स्त्री का सम्मान बढ़ता है। धर्म को जानने वाला जहां सभी के विचारों का सम्मान करना जानता है वहीं वह अपने रूठों को मनाना भी जान जाता है। धर्म से जुड़े रहने से संयुक्त परिवार में प्रेम पनपता है। इसके अतिरिक्त संयुक्त परिवार से सम्बंधित अनेक सिद्धांत हैं, जो मानव-मात्र के लिए आवश्यक हैं, जैसे- यदि आप घर के सदस्यों से प्रेम नहीं करते हैं तो आपसे धर्म, देश और समाज से प्रेम या सम्मान की अपेक्षा नहीं की जा सकती।सभी खून के रिश्तें होते हैं। यदि यह सारी बातें हमें समझ आ जाएँ तो संयुक्त परिवार धरती का स्वर्ग बन जाता है। संयुक्त परिवार में जिम्मेवारियों का निर्वहन एक और कारक है, जिससे हमारे परिवार को मजबूती अथवा कमजोरी मिलती है, अतः माता-पिता, भाई-बहन, बेटी-बेटा और पत्नी के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझे। इसके साथ अपने परिवार की समस्याओं में परिवार के बाहरी लोगों के हस्तक्षेप को आमंत्रित नहीं करना चाहिए, भले ही वह आपके रिश्तेदार ही क्यों न हों। जहाँ तक हो सके नजदीकी रिश्तेदारों से लेन-देन से यथासंभव बचना चाहिए, क्योंकि इससे रिश्तों में खटास उत्पन्न हो जाती है, जो बाद में आपके पूरे संयुक्त परिवार पर असर डालती है।