दिव्य गुणसम्पन्न देवर्षि नारदजी। एक समय महीसागर संगम तीर्थ में भगवान श्रीकृष्ण ने देवर्षि नारदजी की पूजा-अर्चना की । वहाँ महाराज उग्रसेन ने पूछा : ‘‘जगदीश्वर श्रीकृष्ण ! आपके प्रति देवर्षि नारदजी का अत्यंत प्रेम कैसे है ? भगवान श्रीकृष्ण ने कहा : ‘‘राजन् ! मैं देवराज इंद्र द्वारा किये गये स्तोत्रपाठ से दिव्यदृष्टि-सम्पन्न श्री नारदजी की सदा स्तुति करता हूँ । आप भी वह स्तुति सुनिये : जो ब्रह्माजी की गोद से प्रकट हुए हैं, जिनके मन में अहंकार नहीं है, जिनका विश्वविख्यात चरित्र किसीसे छिपा नहीं है, जिनमें अरति (उद्वेग), क्रोध, चपलता व भय का सर्वथा अभाव है, जो धीर होते हुए भी दीर्घसूत्री (किसी कार्य में अधिक विलम्ब करनेवाले) नहीं हैं, जो कामना या लोभवश झूठी बात मुँह से नहीं निकालते, जो अध्यात्म गति के तत्त्व को जाननेवाले, ज्ञानशक्ति-सम्पन्न तथा जितेन्द्रिय हैं, जिनमें सरलता भरी है और जो यथार्थ बात कहनेवाले हैं उन नारदजी को मैं प्रणाम करता हूँ । जो तेज, यश, बुद्धि, विनय, जन्म तथा तपस्या - इन सभी दृष्टियों से बडे हैं, जिनका स्वभाव सुखमय, वेश सुंदर तथा भोजन उत्तम है, जो प्रकाशमान, शुभदृष्टि-सम्पन्न तथा सुंदर वचन बोलनेवाले हैं, जो उत्साहपूर्वक सबका कल्याण करते हैं, जिनमें पाप का लेशमात्र भी नहीं है, जो परोपकार करने से कभी अघाते नहीं, जो सदा वेद, स्मृति व पुराणों में बताये हुए धर्म का आश्रय लेते हैं तथा प्रिय-अप्रिय से रहित हैं, जो खान-पान आदि भोगों में कभी लिप्त नहीं होते, जो आलस्यरहित तथा बहुश्रुत ब्राह्मण हैं, जिनके मुख से अद्भुत बातें-विचित्र कथाएँ सुनने को मिलती हैं, जिन्हें धन के लोभ, काम या क्रोध के कारण भी पहले कभी भ्रम नहीं हुआ है, जिन्होंने इन तीनों दोषों का नाश कर दिया है, जिनके अंतःकरण से सम्मोहनरूप दोष दूर हो गया है, जो कल्याणमय भगवान व भागवत धर्म में दृढ भक्ति रखते हैं, जिनकी नीति बहुत उत्तम है तथा जो संकोची स्वभाव के हैं, जो समस्त संगों से अनासक्त हैं, जिनके मन में किसी संशय के लिए स्थान नहीं है, जो बडे अच्छे वक्ता हैं, जो किसी भी शास्त्र में दोषदृष्टि नहीं करते तथा तपस्या का अनुष्ठान ही जिनका जीवन है, जिनका समय भगवत्-चिंतन के बिना कभी व्यर्थ नहीं जाता और जो अपने मन को सदा वश में रखते हैं उन श्री नारदजी को मैं प्रणाम करता हूँ । जिन्होंने तप के लिए श्रम किया, जिनकी बुद्धि पवित्र एवं वश में है, जो समाधि से कभी तृप्त नहीं होते, अपने प्रयत्न में सदा सावधान रहते हैं, जो अर्थलाभ होने से हर्ष नहीं मानते व हानि से क्लेश का अनुभव नहीं करते, जो सर्वगुणसम्पन्न,दक्ष, पवित्र, कातरतारहित, कालज्ञ व नीतिज्ञ हैं उन देवर्षि नारदजी को मैं भजता हूँ । इस स्तुति के कारण वे मुनिश्रेष्ठ मुझ पर अधिक प्रेम रखते हैं । दूसरा कोई भी व्यक्ति यदि पवित्र होकर प्रतिदिन इस स्तुति का पाठ करता है तो देवर्षि नारदजी बहुत शीघ्र उस पर अतिशय कृपा करते हैं । देवर्षि नारदजी की इस स्तुति के द्वारा भगवान भक्तों के आदर्श गुणों को प्रकट करते हैं । भक्त की इतनी महिमा है कि स्वयं भगवान भी उनकी स्तुति करते हैं । भगवद्भक्तों के गुणों का स्मरण करनेवाला उनका प्रीतिभाजन होता है और उसमें भी वे गुण आते हैं । भक्त की स्मृति तथा उनके गुणों का स्मरण, चर्चा करने से अंतःकरण पवित्र होता है और जगत का मंगल होता है । प्राणिमात्र के कल्याण की भावना रखनेवाले नारदजी ईश्वरीय मार्ग पर अग्रसर होने की इच्छा रखनेवाले प्राणियों को सहयोग देते रहते हैं । उन्होंने कितने प्राणियों को किस प्रकार भगवान के पावन चरणों में पहुँचा दिया, इसकी गणना संभव नहीं है । वे सदा भक्तों, जिज्ञासुओं के मार्गदर्शन में लगे रहते हैं । जीवन्मुक्ति की इच्छा रखनेवाले साधु पुरुषों के हित के लिए वे सतत प्रयत्नशील रहते हैं । उनके चरणों में हमारे कोटि-कोटि प्रणाम हैं ! (ऋषि प्रसाद, अप्रैल २००९)