भगवान कहते हैं कि भय का सर्वथा अभाव कर दें। जीवन में भय न आवे। निर्भय रहें। निर्भय वही हो सकता है जो दूसरों को भयभीत न करें। निर्भय वही रह सकता है जो निष्पाप होने की तत्पर हो जाय। जो विलासरहित हो जायगा वह निर्भय हो जायगा। निर्भयता ऐसा तत्त्व है कि उससे परमात्म-तत्त्व में पहुँचने की शक्ति आती है। किसी को लगेगा कि बड़े-बड़े डाकू लोग, गुन्डा तत्त्व निर्भय होते हैं….’ नहीं नहीं….. पापी कभी निर्भय नहीं हो सकता। गुन्डे लोग तो कायरों के आगे रोब मारते हैं। जो लोग मुर्गियाँ खाकर महफिल करते हैं, दारू पीकर नशे में चूर होते हैं, नशे में आकर सीधे-सादे लोगों को डाँटते हैं तो ऐसी डाँट से लोग घबरा जाते हैं। लोगों की घबराहट का फायदा गुन्डे लोग उठाते हैं। वास्तव में चंबल की घाटी का हो चाहे उसका बाप हो लेकिन जिसमें सत्त्वगुण नहीं है अथवा जो आत्मज्ञानी नहीं है वह निर्भय नहीं हो सकता। निर्भय वही आदमी होगा जो सत्त्वगुणी हो। बाकी के निर्भय दिखते हुए लोग भयभीत होते हैं, पापी और पामर होते हैं। भयभीत आदमी दूसरे को भयभीत करता है। डरपोक ही दूसरे को डराता है। जो पूरा निर्भय होता है वह दूसरों को निर्भय नारायण तत्त्व में ले जाता है। जो डर रहा है वह डरपोक है। डरपोक और गुंडा स्वभाव का आदमी दूसरों का शोषण करता है। निर्भीक दूसरों का शोषण नहीं करता, पोषण करता है। अतः जीवन में निर्भयता लानी चाहिए। 


ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ