जिनासाईड यानि जाति का विनाश (आर्य जाति का विनाश, सनातन धर्मियोँ का विनाश)।


(यहाँ आर्य का अर्थ आर्य लिखने वालोँ से नही सम्पूर्ण भारत के लोगोँ से
जो सनातन धर्म को कई युगोँ से मानते आए हैँ जैसे भगवान राम भगवान कृष्ण
और सारे साधू संत जिनकी हम सब संतानेँ हैँ।)
मेरे सभी समूहों के मित्रों! मैं अभी गोवा में चलने वाले अखिल भारत
हिन्दू अधिवेशन में हूँ यहाँ एक विचार प्रकट हुआ जिनोसाइड यानि जाति का
विनाश। यह सम्भवत: सभी के लिये एक ऐसा नया विषय है जिसे अचेतन रूप से सभी
जानते हैं। किन्तु कोई भी गम्भीर नहीं है। आज यहाँ कश्यप भूमि कश्मीर के
हिन्दूओं के एक प्रतिनिधि द्वारा जब इस विषय पर विचार प्रकट किये गये तो
ये हतप्रभ करने वाला विषय था कि हम में से लगभग प्रत्येक व्यक्ति को यह
विषय ज्ञात है किन्तु फिर भी अनभिज्ञ हैं। अत: इस विषय से सभी हिन्दूवादी
शक्तियों को परिचित करवाना आवश्यक है।
विश्व में पूर्व में भी कई बार ऐसा हुआ है कि किसी जाति को षडयन्त्र
पूर्वक समाप्त किया गया हो। विशेष कर जहाँ रेाम व ग्रीस आदि प्राचीन
सभ्याएँ विकसित हुईं वहाँ बारम्बार कई जातियों को उद्भव एवं पराभव हुआ।
इस प्रकार से वहाँ जाति के विनाश की प्रक्रिया चलती रहीं। जब हम प्राचीन
ग्रीक व रोमन सभ्यताओं के इतिहास को पढ़ते हैं तो वहाँ के बारे में
जातिविनाश का इतिहास पढ़ने को प्राप्त होता है। हित्ती, सेमटाईटिक,
आर्मेनियाई, असीरियाई,यहुदी आदि कई जातियाँ वहाँ उत्पन्न हुईं एवं वे
पूरी विनाश को प्राप्त हुई अथवा कहा जाय कि एक कबीले द्वारा दूसरे पूरे
कबीले को समाप्त करने की प्रक्रिया हुई है।
इस पूरे प्रकरण में यहूदी एक जाति थी जो अपने समय में किसी हित्ती अथवा
सेमेटिक जाति की दास थी। एवं 2000 वर्षों की दासता के बाद उसे
स्वतन्त्रता प्राप्त हुई एवं उसने अपने साथ विकसित होने वाली कई जातियों
को अपना दास बनाया एवं कई जातियों को समाप्त भी किया। इसी प्रकार के एक
षडयन्त्र द्वारा यह यहूदी जाति भी पराभूत हुई एवं 1800 वर्षों के लिये
अपनी मातृभूमि से विच्छिन्न कर दी गई एवं पूरे विश्व में जहाँ यहूदियों
को स्थान प्राप्त हुआ वे वहाँ रहें एंव संघर्ष किया। 1800 वर्षों तक यह
पूरी यहूदी जाति जातिगत विनाश के राक्षस से युद्ध करती रही। एवं इसी जाति
के कुछ लोगों ने इसे समझा एंव एक ऐसा संगठन खड़ा किया जिसने पूरे विश्व
में उत्पात मचाया एवं अपनी भूमि प्राप्ती के 300 वर्षों के निर्णायक
संघर्ष से इस्राईल देश प्राप्त किया। किन्तु यही इस्राईल अब अन्य जातियों
केा समाप्त करने के प्रयास में प्रयत्नरत है। इसमें ये महान् आर्य जाति
को भी समाप्त करने के लिये प्रयासरत है।
हमें यहाँ यह ज्ञात होना आवश्यक है इस यहूदी जाति ने जब अपना 1800 वर्षों
का राष्ट्रहीन स्थिति का इतिहास लिखा तो भारत एवं महान् आर्य जाति की
प्रशंसा की है। किन्तु अद्यापि ये भारत के प्रति उतने निष्ठावान् नहीं
हैं जैसे कि इनको होना चाहिये।
हालिवुड का एक वृत्तचित्र (डाक्यूमेण्ट्री) बनी होटल रवाण्डा में स्पष्ट
रूप से बताया है कि एक कबीले को दूसरे कबीले द्वारा कैसे समाप्त किया
जाता है। दूसरा उदाहरण आप सोमालिया को देख सकते हैं। जहाँ एक मुस्लिम
कबीले द्वारा दूसरे कबीले के 3 लाख लोगों को भूख से मार दिया गया। इस
पूरे प्रकरण को आप एक हालीवुड का एक वृत्तचित्र है ब्लैकहॉक डॉन उसमें इस
तथ्य को दिखाया गया है।
ये तो हमारी भूमिका थी यह जानने के लिये कि अन्ततोगत्वा ये जाति विनाश
क्या है? एवं कहाँ कहाँ हुआ है? अब ये जानना है कि ये हमारे साथ हुआ है
एवं हो रहा है। यहाँ ये स्पष्ट है कि हमारे साथ ये अत्याचार पिछले 1500
वर्षो से हो रहा है। अब इस प्रक्रिया ने गति पकड़ी है। वर्तमान में हमारे
विरूद्ध जो गतिविधियाँ हो रही हैं। उसे हम हिन्दू विरोधी एवं
राष्ट्रविरोधी मान रहे हैं। किन्तु ये मात्र यही नहीं है। ये ईस्लाम एवं
ईयाईयत की सम्मिलित कुचेष्टा है कि हिन्दू जाति को ही समाप्त कर दिया
जाय। यह जाति का विनाश यानि जिनोसाईड का खेल है। हिन्दू जाति का विनाश
करने से तात्पर्य है कि आर्य जाति को समाप्त किया जाय। इसके लिये ही कई
हथकण्डे अपनाये गये। हमें झूठ बताया जा रहा हैजोकि इस प्रकार हैं—
1. आर्यों का मूलस्थान भारत नहीं है। जबकि भारत ही आर्यों का मूल स्थान है।
2. वेद प्राचीन नहीं हैं। इससे अधिक प्राचीन अन्य कई जातियाँ हुईं एवं
उनके ग्रन्थ हैं। जबकि वेद ही सर्वप्राचीन ग्रन्थ है।
3.सिन्धुघाटी सभ्यता वैदिक सभ्यता नहीं है। सिन्धुघाटी सभ्यता पूर्णत:
वैदिक सभ्यता है एवं वहाँ शिव गाय की उपासना व्यापकता के साथ होती थी।
इसके सहस्राधिक प्रमाण प्राप्त होते हैं।
4. सिन्धुघाटी सभ्यता की भाषा नहीं पढ़ी जा सकती जबकि उसे डॉ.फतेहसिंह जी
ने न केवल पढ़ा अपितु उसे समझा एवं वहाँ के चित्रों को वैदिक व्याख्यान
भी प्रस्तुत किया।
हमारे हिन्दू जाति के विनाश का एक षडयन्त्र चल रहा है हमें हमारे विरूद्ध
प्रत्येक गतिविधि को इसी रूप में जानना चाहिये। मुस्लिम एवं ईसाई दोनों
ही स्वयं परस्पर एक हैं। एवं उनमें किसी प्रकार को कोई वैर नहीं है। उनके
पैगम्बर परस्पर एक दूसरे का सम्मान करते हैं। उनकी जातियाँ एक दूसरे के
पैगम्बर को अपने लिये आदर्श मानती हैं।
यहाँ यह शंका हो सकती है कि यदि ऐसा है तो विश्व के अन्य देशों में भी
अव्यवस्था एवं आतंकवाद गृहयुद्ध चल रहा है। तो इसका समाधान है कि विश्व
की गोरी जाति जिसे काकेशियन जाति कहा गया है। वे मुख्य रूप से अफ्रिका की
जातियों एवं आर्य जाति को मूलोच्छेद करना चाहते हैं। ऐसे में कहीं विश्व
में यह बात उजागर न हो जाये इस भेद को छिपाने के लिये वे कहीं कहीं पर
काकेशियन ईसाईयों को भी मार रहे हैं जैसे आर्मेनिया में ईसाईयों को
समाप्त करने का कार्य चल रहा है।
यहाँ पुन: एक शंका होती है कि मंगोल जाति भी तो है क्या उसे समाप्त करने
का कोई प्रयास नहीं करता है। तो इसका समाधान है कि काकेशियनों के समक्ष
मंगोल जाति भी है। किन्तु मंगोल जाति की संख्या अभी इतनी है कि वे उनसे
अभी किसी प्रकार का विवाद नहीं लेना चाहते हैं।
अब यहाँ महान् भारत की सर्वश्रेश्ठ भारतीय आर्य जाति के सन्दर्भ में देखा
जाय तो हम इसे इतिहास के परिप्रेक्ष्य में तथ्यों के साथ इसे समझते हैं।
एवं इतिहास में अधिक पीछे नहीं जाय तो 1378 ईस्वी में म्लेच्छों ने ईरान
से इस जातिनाश के कुकर्म को प्रारम्भ किया गया। तथापि यहाँ एक सकारात्मक
पक्ष देखा जाय तो यद्यपि विंसं.758 (ईस्वी सन् 711) में प्रथम बार ईस्लाम
को भारत में विजय प्राप्त हुई। किन्तु ईरान को पूर्ण इस्लामिक राष्ट्र
बनने में 613 वर्ष लगे। यही नहीं 1971 तक वहाँ के राजा आर्यमिहिर की
उपाधि धारण करता रहा एवं अन्त में उसे ब्रिटेन में शरण लेनी पड़ी। इस
प्रकार इस्लाम की उत्पत्ति के उपरान्त लगभग 1400 वर्षों उपरान्त उन्होंने
एक हिन्दू राष्ट्र को हस्तगत किया।
उसके बाद अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बाँग्लादेश, बर्मा, श्रीलंका,
इण्डोनेशिया, मलेशिया, मारीशस, फिलीपिन्स आदि देश जो कि आर्य जाति के थे
आज वे काकेशियन जाति के हैं अथवा मंगोलियन हो गये हैं। वस्तुत: आर्य एक
विचारधारा है उसे जिसने ग्रहण किया वह आर्य हो जाता है। किन्तु जब इसे
समाप्त करने की प्रक्रिया प्रारम्भ होती है तब उनके आचार विचार बदल दिये
जाते हैं। एवं शनै: शनै: वे मनुष्य काकेशियन नामक पशुत्व रूप को प्राप्त
होने लगती है। यही कारण है कि महान् भारत में भी जो आर्यत्व से विमुख
होकर आचर व्यवहार से रहित हो जाता है उनके चेहरे आर्य तेज व वैभव से रहित
होते जा रहे हैं। यही कारण है कि भारत में अनार्यत्व को प्राप्त पशु
मनुष्यों को वर्तमान में देखते ही ज्ञात हो जाता है कि ये अनार्य हैं। यह
एक मेरा ही नहीं कईयों का अनुभव है। किसी जाति को नष्ट करने को एक यह
प्रकार भी है। इस प्रक्रिया के द्वारा वे व्यक्ति के शरीरस्थ सूक्ष्म
संरचना तन्त्र जिसे डी एन ए कहा जाता है उसे ही बदलना प्रारम्भ कर देते
हैं। इस जीवविज्ञान के विषय पर यहाँ अधिक चर्चा सम्भव नहीं है।
हमें यही समझना एव सोचना आवश्यक है कि हमारा युद्ध उनसे है जो हमारी आर्य
मानवीय स्वरूप को ही समाप्त करना चाहते हैंं।
आप समझे कि यह युद्ध वर्तमान में हमारी आर्यजाति के विरूद्ध है यह मात्र
भारत को खण्डित करने एवं हिन्दूओं का धर्मान्तरण करने उन्हें मुस्लिमा
अथवा ईसाई बनाने का युद्ध नहीं है। यह युद्ध पूरी आर्य जाति को समाप्त
करने के लिये चलाया जा रहा है। वह आर्य जाति जो कि दैवीय वंशोद्भवा है।
उसे समाप्त करने का एक षडयन्त्र है।
वर्तमान में हमारा देश जैसे जैसे सिकुड़ता जा रहा है वैसे वैसे आर्यजाति
का नाश होता जा रहा है। इस युद्ध का हर स्तर पर प्रतिकार करना होगा। इसके
लिये हमें हमारे आध्यात्मिक ज्ञान, शस्त्र एवं शास्त्र ज्ञान को बढ़ाना
होगा।