'राष्ट्रीय
शैक्षिक अनुसंधान एवं तुलनात्मक अध्ययन केंद्र के अध्यक्ष श्री.
नीरज अत्री' राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण
परिषदने इतिहास की पुस्तकों द्वारा किया इतिहास का
विकृतिकरण इस विषय के अभ्यासक हैं । उस संदर्भ
में लिखे गए लेख में उन्होंने राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान
एवं प्रशिक्षण परिषद के इतिहास की पुस्तकों में भारत का प्रस्तुत
किया गया विकृत इतिहास एवं उसकी वास्तविकता को उदाहरण देकर स्पष्ट
किया है ।
८
मार्च को महिला दिवस है, इस उपलक्ष्य में प्रस्तुत है यह
लेख... एनसीआरटी द्वारा भारतीय स्त्रियों की गौरवपूर्ण
गाथाओं का विकृतिकरण भारतीय स्त्रियोंका
सतीत्व आजकल कुछ टी.वी. चैनल कुख्यात आतंकवादी संगठन
इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया के
आतंकवादियों के उन दृश्यों का प्रसारण कर रहे हैं जिनमें इस संगठन
के (तथाकथित) शूरवीर (अपना मुंह छिपाकर), यजीदी महिलाओं
को सरेआम नीलाम करते देखे जा सकते हैं । ये दृश्य
यू-ट्यूब पर भी उपलब्ध हैं । जनसाधारण के लिए
इस अमानवीय व्यवहार पर विश्वास करना कठिन हो जाता है; किंतु
जो लोग गत चौदह सदियों के इतिहास से परिचित हैं, उनके लिए इस इस्लामिक
गतिविधि में कुछ नया नहीं है ।
१. कुटुंब में सभी की हत्या होने के
उपरांत स्त्री के पास स्वयं को प्रारब्ध पर
छोडने के अतिरिक्त अन्य कोई भी पर्याय न रहना और भारत की स्त्रियां
इसका अपवाद होना :कल्पना कीजिए एक ऐसी महिला की जो अपने घर में सुरक्षित
बैठी है, परंतु उसे यह सूचना मिल गई है कि उसके सभी
हितैषियों की, जिनमें उसका
पिता, भाई अथवा पति सम्मिलित हैं, उनकी हत्या कर
दी गई है और अब वे हत्यारे उसे बंदी बनाने के लिए बढ
रहे हैं । उसके पास स्वयं को भाग्य के
सहारे छोड देने के अतिरिक्त कोई और विकल्प नहीं है । मध्यकाल में, जब
अरबी और उनके बाद तुर्की जिहादी मध्य एशिया से चारों ओर इस्लाम के
विस्तार के लिए निकले, तो अफ्रीका, यूरोप, पूर्वी
एशिया तक, सभी स्थानों पर
महिलाओं के साथ आज की निःसहाय यजीदी महिलाओं जैसा ही व्यवहार किया
गया । केवल भारत की महिलाएं इस का अपवाद सिद्ध हुईं ।
२. तारीखे हिंद व सिंध इस पुस्तक में
भारतीय वीरांगनाआें द्वारा चरित्र की रक्षा के लिए
किए गए जौहर का वर्णन :भारत की वीरांगनाओं के चरित्र को समझने
के लिए आठवीं सदी में लिखी पुस्तक तारीखे हिन्द व सिंध से एक उदाहरण
लेते हैं । तेरहवीं सदी के मुहम्मद अली ने इस पुस्तक का मूल अरबी से
अनुवाद किया था । इसमें मुहम्मद बिंन कासिम नामक जिहादी के सिंध और पंजाब
पर आक्रमण का वर्णन है ।
अ. मुहम्मद बिन
कासिम किला जीतने के लिए आतुर था, ऐसे में राजा दाहिर की
बहन के कहे अनुसार शीलरक्षा के लिए सर्व स्त्रियों द्वारा आत्मदहन करना
:जब मुहम्मद कासिम की सेना किले को जीत रही थी, राजा दाहिर की
बहन ने सभी महिलाओं को एकत्र किया और उन्हें
संबोधित करते हुए कहा, जयसिंह हम से
बिछुड गए हैं और मुहम्मद कासिम यहां पहुंच गया है । भगवान न करे कि ये म्लेच्छ
गौमांस भक्षक हमारी स्वतंत्रता छीन लें ! हमारा सम्मान भी चला जाएगा
। बच निकलने का कोई मार्ग नहीं है; हम सब मिलकर
लकडियां, कपास और तेल एकत्र कर
लेते हैं, क्योंकि मेरा विचार है कि हमें आत्मदाह कर लेना चाहिए
जिससे कि हम अपने पतियों से पुनः मिल सकें । यदि कोई ऐसा नहीं करना चाहतीं
तो वे न करें । तत्पश्चात वे सभी एक घर में गईं और उसे जलाकर उसमें
आत्मदाह कर लिया । जो महिलाएं इस सामूहिक दाह में सम्मिलित नहीं हुईं, उनके
साथ क्या किया गया, यह भी इस पुस्तक में वर्णित है ।
आ. मुहम्मद
कासिम द्वारा किला जीतने पर दाहिर का सिर, लूट का माल और कैदी
खलीफा वालिद को भेजना, कुछ लडकियों को बेचना और कुछ को बांट
देना :जब मुहम्मद कासिम ने किला जीत लिया, कैदियों
में दाहिर की बहन की बेटी जैसिया और हिंदू
सेनापतियों की बेटियां भी थीं । हज्जाज ने दाहिर का सिर, लूट
का माल और कैदी, खलीफा वालिद को भेज दिए । उसने कुछ लडकियों को
बेच दिया और कुछ को पारितोषिक के तौर पर बांट दिया
। जब खलीफा ने जैसिया को देखा, तो वह उसकी
सुंदरता से इतना प्रभावित हुआ कि वह अपनी उंगलियां चबाने
लग गया । अब्दुल्ला बिन अब्बास उसे अपने लिए रखना चाहता था । खलीफा ने
उसे कहा, भतीजे ! मुझे ये लडकी बहुत दिलकश लग रही है और
मैं इसे अपने लिए रखना चाहता हूं, तो
भी इसे तू ले जा और अपने बच्चे पैदा कर । इससे लगभग
छः सौ वर्ष उपरांत जब मुहम्मद तुगलक ने काम्पिल्य के राजा के दुर्ग को
घेर रखा था, तो उसके विषय में इब्न बतूता नामक जिहादी लिखता
है।
इ. राजा के बताए
अनुसार उसकी पत्नी, बच्चे और अन्य स्त्रियों द्वारा आत्मदहन
करना, राजा एवं उसकी सेना द्वारा मरते क्षण तक सुलतान से युद्ध करना, अंत
में संपूर्ण नगर लूट लिया जाना :राजा ने दुर्ग में आग जलाकर अपना
सामान उसमें जलाना आरंभ कर दिया और अपनी पत्नी और बेटियों से बोला, मेरा
अंतिम समय आ गया है, तुम में से जो चाहे वो ऐसा कर ले । इसके बाद सभी
नारियों ने अपने शरीर पर चंदन का लेप लगाया, धरती को चूमा और
अग्नि में कूद गईं । राजा के सेनापतियों, अधिकारियों
और मंत्रियों की पत्नियों ने तथा अन्य
महिलाओं ने भी ऐसा ही किया । इसके पश्चात राजा और उसके अनुयायियों
ने स्नान किया, चंदन का लेप लगाया और अपने शस्त्र उठाकर सुल्तान
की सेना पर टूट पडे । वो तब तक लडते रहे जब तक कि सब के सब मारे नहीं
गए । नगर को लूट लिया गया और उसमें रहनेवालों को बंदी बना लिया गया ।
राजा के जो बेटे पकडे गए उन्हें मुसलमान बना दिया गया ।
३. बर्नियर नामक फ्रेंच इतिहासकार
द्वारा वर्णित राजस्थानके राजपूत वीरांगनाआें का
अद्भुत शौर्य एवं अस्मिता :राजस्थान की राजपूत क्षत्राणियों
की अद्भुत वीरता और आत्मसम्मान की झलक हमें बर्नियर नामक फ्रांसीसी
इतिहासकार से मिलती है । बर्नियर शाहजहां और औरंगजेब के समय भारत
में ही था और उसने उस समय जो देखा और सुना उसे अपनी पुस्तक में वर्णित
किया है । जिन दिनों औरंगजेब दक्षिण से उत्तर की ओर अपने पिता शाहजहां
और अपने भाई दारा शिकोह से युद्ध करने के लिए आगरा की ओर बढ रहा था, उस
समय दारा शिकोह के प्रति अधिकतम मुसलमानों के मन में रोष था कि वह सनातन
धर्म की ओर झुक गया था । इस्लाम और औरंगजेब के शब्दों में वो काफिर हो गया
था । दारा ने अपने दो सेनापतियों कासिम खान और राजा जसवंत सिंह को औरंगजेब
से युद्ध करने के लिए भेजा था । जब दोनों सेनाएं नर्मदा नदी के किनारे, उज्जैन
नगर से सौ किलोमीटर दूर टकराईं तो कासिम खान धोखा देकर भाग
गया । परिणामस्वरूप जसवंत सिंह और उसके आठ हजार राजपूतों को औरंगजेब के
सैनिकों ने घेर लिया । जसवंत सिंह अपने निष्ठावान क्षत्रियों और अपने शौर्य
के कारण बच गया; परंतु केवल पांच सौ राजपूत क्षत्रिय जीवित बच
सके । राजा जसवंत सिंह की पत्नी, राणा
प्रताप के घराने से थीं । राजा के लौटने पर जो हुआ
वो बर्नियर के शब्दों में इस प्रकार है -इस वीर राजा को लौटने
पर अपनी पत्नी द्वारा जो अपमानजनक व्यवहार सहन करना पडा, मैं
उसका वर्णन करता हूं । वह युद्ध क्षेत्र को
परिस्थितियों की विवशता से छोडकर आया था, न
कि कायरता के कारण । न ही इसमें उसका कोई अपमान हुआ था । जब ये घोषणा
हुई कि राजा अपने उन पांच सौ वीर राजपूतों के साथ लौट रहा है, जो आठ
सहस्र में शेष रह गए हैं तो उस वीर को जीवित लौट आने और उसे सांत्वना देने
के स्थान पर रानी ने बडे शुष्क भाव से राजा के लिए दुर्ग के द्वार बंद
करने का आदेश दे दिया । उसने कहा, राणा का कोई भी दामाद ऐसी दुरात्मा नहीं
हो सकता । मैं इसे अपना पति नहीं मानूंगी और न ही कभी इससे मिलूंगी ।
जो इस घराने से संबंधित हैं, उसे महान राणा के गुणों को आत्मसात
करना चाहिए । यदि वो विजयी नहीं हो सकता, तो
उसे वीरगति को प्राप्त हो जाना चाहिए । मेरे
लिए चिता सजाओ ताकि मैं अपने शरीर को अग्नि में समर्पित कर सकूं
। मेरे साथ छल हुआ है; मेरा पति जीवित नहीं हो सकता । इसके
पश्चात वो शोकग्रस्त हो गईं और आठ नौ दिन तक वह इसी
दशा में रहीं । उन्होंने अपने पति को मिलने से मना कर दिया ।
रानी की मां ने आकर उसके क्रोध को शांत किया और
उसे यह विश्वास दिलाया कि जैसे ही राजा सामर्थ्य जुटा लेगा, वह
औरंगजेब पर पुनः आक्रमण करके अपना सम्मान प्राप्त कर लेगा । ऐसे तो मध्ययुगीन
भारत का इतिहास हिंदू नारियों की वीरताओं से भरा पडा है किंतु इन
उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि इनके लिए, वीरता और आत्मसम्मान, जीवन से
अधिक मूल्यवान थे । कदाचित इन्हीं ऊंचे आदर्शों की देन है कि हम आज भी नारी
को शक्ति का प्रतीक मानते हैं । वर्ष १९४७ में जब देश का विभाजन हुआ, तब
वर्तमान पाकिस्तान में भी सैकडों हिंदू और सिक्ख महिलाओं ने मुसलमान
अथवा गुलाम बनने से मर जाना उचित समझा था और आत्मदाह कर लिया था ।-
श्री. नीरज अत्री, अध्यक्ष, राष्ट्रीय
इतिहास अनुसंधान एवं तुलनात्मक अध्ययन केंद्र।
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