शुकदेव जी जब सोलह वर्ष के हुए तो वे घर को छोड़कर जाने लगे। पिता वेदव्यास जी ने उन्हें रोकने का प्रयास किया तो शुकदेव जी कहते हैं- "पिताजी ! मैं आपको एक कथा सुनाता हूँ। फिर यदि आपको उचित लगे तो मुझे रोक लीजिएगा। पिताजी ! किसी गाँव के पास एक ब्रह्मचारी रहता था। वह प्रातःकाल में उठकर संध्या-वंदन, आसन-प्राणायाम-ध्यान आदि करता था। ध्यान के बाद जब उसे भूख लगती तो अपना भिक्षापात्र लेकर वह गाँव में एक समय मधुकरी करता था। उसी गाँव में दुल्हन बनकर कोई कुलटा स्त्री आई थी जो अपने पति के साथ एक दुमंजिले मकान के ऊपरी भाग में रहती थी। ब्रह्मचारी जब गाँव में भिक्षा लेने निकला तो वह कुलटा स्त्री युवा ब्रह्मचारी पर अत्यंत कामातुर हो गई। उसका पति थोड़ी देर पहले ही कुछ कार्यवश बाहर गाँव जाने के लिए घर से निकल चुका था। अतः उसने ब्रह्मचारी को ऊपर बुलाते हुए कहाः "इधर आओ.... मैं तुम्हें भिक्षा देती हूँ।" वह ब्रह्मचारी सहज स्वभाव से भिक्षा हेतु ऊपर पहुँच गया तो उस कुलटा स्त्री ने दरवाजा बंद करके उसे भीतर घेर दिया और उसके साथ अनाधिकृत चेष्टा करने की कोशिश की। ब्रह्मचारी घबराया। उसने मन ही मन परमात्मा को पुकारा किः "प्रभु ! मेरी साधना अधूरी न रह जाए ! हे मेरे नाथ ! यहाँ एक तू ही मेरा रक्षक है" "उस ब्रह्मचारी की प्रार्थना अन्तर्यामी परमात्मा ने सुन ली। बाहर गाँव जाने के लिए निकला हुआ कुलटा का पति साधन न मिलने के कारण एवं एकाएक शौच जाने का दबाव आने के कारण वापस घर लौट आया और द्वार पर आकर दस्तक दी। पत्नी आवाज सुनकर घबराई कि युवक को कहाँ छुपाऊँ? घर में शौचालय था। उस शौचालय की मोरी (होद) में कुलटा ने उस युवक को धक्का देकर दबा दिया। उसके पति को शौच जाना था। वह शौचालय में गया और उसने उसी होद में विष्ठा, मलमूत्र त्यागा जिसमें ब्रह्मचारी को धकेला गया था। फिर वह आदमी उस कुलटा को भी साथ लेकर बाहर गाँव चला गया। पिताजी ! वहाँ से वह ब्रह्मचारी नवयुवक बेचारा, जैसे बालक गर्भावास में ओंधा होता है, ऐसा औंधा और बेहोश अवस्था में लुढ़कता-खिसकता हुआ एक दिन के बाद उस शौचालय की नाली में नीचे उतरा। जब सफाईवाले को उसमें सिर के बाल दिखे तो उसने उसे बाहर खींच लिया। वह सफाई वाला उस मूर्छित ब्रह्मचारी को अपने घर ले गया और उपचार किया तब कहीं ब्रह्मचारी को होश आया। होश आया तो वहाँ से भागकर अपनी पुरानी झोपड़ी में गया। अच्छी तरह रगड़-रगड़कर स्नान किया। फिर सन्ध्या पूजन आदि करके अपने आपको शुद्ध व स्वस्थ किया। उसे फिर से भूख लगी। दो चार दिन बाद उसे पुनः उसी गाँव में भिक्षा माँगने आना ही पड़ा। तब तक वह कुलटा स्त्री भी अपने घर पहुँच गई थी। अब वह ब्रह्मचारी उस मोहल्ले से तो गुजरता भी नहीं था लेकिन पिताजी ! अनजाने में वह उस मोहल्ले से गुजरे और वह कुलटा स्त्री उसे पूड़ी पकवान आदि खिलाने के लिए आमंत्रित करे तो वह जाएगा क्या? कई प्रलोभनों के बावजूद भी वह ब्रह्मचारी उस कुलटा के पास नहीं जाएगा क्योंकि उसे एक बार मोरी से गुजरने का अनुभव याद है.... उस नाली से पसार होने की उसको स्मृति है। पिताजी ! एक बार नाली से गुजरा हुआ ब्रह्मचारी दोबारा हजार-हजार प्रलोभनों पर भी वापस नहीं जाता तो मैं तो हजारों नालियों से घूमता घूमता आया हूँ। हजारों माताओं की नालियों से पसार होता होता आया हूँ। पिता जी! अब मुझे जाने दीजिए। संसार की झंझटों से मुझे बचने दीजिये।