रामजी की सेना से घबराया अकबर।
(संत तुलसीदासजी जयंती : २२ अगस्त)
            गोस्वामी संत तुलसीदासजी की भगवद्निष्ठा, अमृतमय वाणी तथा उनके सान्निध्य में होनेवाली चमत्कारिक घटनाओं की ख्याति सर्वत्र फैल गयी थी। एक बार अकबर ने अपने मंत्री से कहा : ‘‘सुना है तुलसीदासजी हिन्दुओं के खुदा श्रीरामजी से बातें करते हैं। उनके द्वारा हुए कई करिश्में सुनने में आये हैं। तुम किसी भी तरकीब से तुलसीदासजी को यहाँ ले आओ। उनके बारे में मैंने जो सुना है, वह अपनी आँखों से देखना चाहता हूँ। कुछ विद्वानों तथा सिपाहियों के साथ मंत्री तुलसीदासजी के पास पहुँचा। उसने गोस्वामीजी से कहा : ‘‘आप हिन्दुओं के खुदा श्रीराम के परम भक्त हैं। बादशाह अकबर आपके करिश्मों को सुनकर बहुत खुश हैं। वे आपसे मुलाकात करना चाहते हैं। आप बादशाह सलामत के शाही मेहमान बनिये। तुलसीदासजी ने सोचा, ‘अंधकार में भटक रहे लोगों को सही दिशा मिले इस हेतु लोकसंत विचरण करते हैं। दिल्ली जाकर मैं भी लोगों को भगवन्नाम की महिमा बताऊँगा। दिल्ली पहुँचने पर अकबर ने उन्हें ऊँचे qसहासन पर बैठाकर उनका पूजन-सत्कार किया। फिर कहा : ‘‘मैंने सुना है कि आप खुदा से मुलाकात करते हैं, बात करते हैं। आपने कई करिश्में भी किये हैं। संत तुलसीदासजी बोले : ‘‘मैं कोई करिश्मा करना नहीं जानता, सब प्रभु की लीला है। मैंने तो बस, खुद को प्रभुचरणों में समर्पित कर दिया है।
तुलसी-तुलसी क्या कहो, तुलसी बन की घास।
कृपा भई रघुनाथ की, हो गये तुलसीदास।।

              यह सुनकर अकबर उद्विग्न हो के बोला : ‘‘मुझे भी अपने खुदा के दीदार कराओ, नहीं तो यहाँ से जाने नहीं दिया जायेगा। फिर उसने सिपाहियों को हुक्म दिया : ‘‘इन्हें कैदखाने में डाल दो। इन पर कडी नजर रखो। जब तक ये कोई करिश्मा नहीं दिखाते, खुदा के दीदार नहीं कराते, तब तक मैं इन्हें असली फकीर नहीं मानूँगा। संत तुलसीदासजी को कैद कर लिया गया। वे शांतचित्त बैठकर श्री हनुमानजी का ध्यान करने लगे। सहसा बंदरों का एक झुंड आकर चारों तरफ उत्पात मचाने लगा। कोई पेड-पौधे उखाडकर इधर-उधर फेंकने लगा तो कोई वस्तुओं को बिखेरने लगा। कई बंदरों ने लोगों के नाक-कान काटने शुरू कर दिये लेकिन जो रामनाम जप रहे थे, उन्हें कुछ नहीं किया। भंडारगृह से अन्न लेकर उन्होंने गरीबों में बाँट दिया। फिर बंदरों का वह झुंड राजमहल के अंदर जहाँ बादशाह की रानियाँ थीं वहाँ गया। उन पर उन्होंने गंदा पानी फेंका। उनके गहने उतारकर गरीबों में बाँट दिये। सभी चीजें बिखेर डालीं। अकबर घबरा गया और तुलसीदासजी से क्षमा माँगते हुए बोला : ‘‘ऐ औलिया ! मेरी गुस्ताखी माफ कर। मुझे पता नहीं था कि मैं क्या कर रहा हूँ। मैंने आपको बहुत तकलीफ पहुँचायी, मैं शर्मिन्दा हूँ। तुलसीदासजी ने कहा : ‘‘श्रीरामजी के दर्शन करना चाहते थे न तुम ? जिस प्रकार सूर्योदय के समय सूर्य निकलने से पहले उसकी किरणें आती हैं बाद में सूर्य आता है, उसी प्रकार भगवान रामजी के आने से पहले उनकी सेना आ गयी, रामजी बाद में आयेंगे। तुम पर भगवान ने कृपा की है। अकबर तुलसीदासजी के चरणों में गिरकर बोला : ‘‘आपके खुदा की शक्ति का मुझे अंदाजा नहीं था। मुझे माफ करें, माफ करें। संत तुलसीदासजी के कारागार से निकलते ही बंदरों का वह समूह अदृश्य हो गया। तुलसीदासजी ने एक वर्ष तक वहीं रहकर दिल्लीवासियों को अपने सत्संग-अमृत का पान कराया। (लोक कल्याण सेतु : अगस्त २००७)