संकल्पशक्ति का प्रतीक : रक्षाबंधन
* रक्षाबंधन : २९ अगस्त *
(पूज्य बापूजी के सत्संग-अमृत से)
* सब कुछ देकर त्रिभुवनपति को अपना द्वारपाल बनानेवाले बलि को लक्ष्मीजी
ने राखी बाँधी थी । राखी बाँधनेवाली बहन अथवा हितैषी व्यक्ति के आगे
कृतज्ञता का भाव व्यक्त होता है । राजा बलि ने पूछा : ''तुम क्या चाहती
हो ? लक्ष्मीजी ने कहा : ''वे जो तुम्हारे नन्हे-मुन्ने द्वारपाल हैं,
उनको आप छोड दो । भक्त के प्रेम से वश होकर जो द्वारपाल की सेवा करते
हैं, ऐसे भगवान नारायण को द्वारपाल के पद से छुडाने के लिए लक्ष्मीजी ने
भी रक्षाबंधन-महोत्सव का उपयोग किया ।
(ऋषि प्रसाद : अगस्त २०१०)
* भारतीय संस्कृति का रक्षाबंधन-महोत्सव, जो श्रावणी पूनम के दिन मनाया
जाता है, आत्मनिर्माण, आत्मविकास का पर्व है । अपने हृदय को भी
प्रेमाभक्ति से, सदाचार-संयम से पूर्ण करने के लिए प्रोत्साहित करनेवाला
यह पर्व है ।
* रक्षाबंधन के पर्व पर एक-दूसरे को आयु, आरोग्य और पुष्टि की वृद्धि की
भावना से राखी बाँधते हैं ।
(ऋषि प्रसाद : अगस्त २०१०)
* रक्षाबंधन का उत्सव श्रावणी पूनम को ही क्यों रखा गया ? भारतीय
संस्कृति में संकल्पशक्ति के सदुपयोग की सुंदर व्यवस्था है । ब्राह्मण
कोई शुभ कार्य कराते हैं तो कलावा (रक्षासूत्र) बाँधते हैं ताकि आपके
शरीर में छुपे दोष या कोई रोग, जो आपके शरीर को अस्वस्थ कर रहे हों, उनके
कारण आपका मन और बुद्धि भी निर्णय लेने में थोडे अस्वस्थ न रह जायें ।
सावन के महीने में सूर्य की किरणें धरती पर कम पडती हैं, किस्म-किस्म के
जीवाणु बढ जाते हैं, जिससे किसीको दस्त, किसीको उलटियाँ, किसीको अजीर्ण,
किसीको बुखार हो जाता है तो किसीका शरीर टूटने लगता है । इसलिए रक्षाबंधन
के दिन एक-दूसरे को रक्षासूत्र बाँधकर तन-मन-मति की स्वास्थ्य-रक्षाका
संकल्प किया जाता है । रक्षासूत्र में कितना मनोविज्ञान है, कितना रहस्य
है !
अपना शुभ संकल्प और शरीर के ढाँचे की व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए यह
श्रावणी पूनम का रक्षाबंधन महोत्सव है ।
(ऋषि प्रसाद : अगस्त २०१०)
* 'रक्षाबंधन के दिन रक्षासूत्र बाँधने से वर्ष भर रोगों से हमारी रक्षा
रहे, बुरे भावों से रक्षा रहे, बुरे कर्मों से रक्षा रहे- ऐसा एक-दूसरे
के प्रति सत्संकल्प करते हैं ।
(ऋषि प्रसाद : अगस्त २०१०)
* रक्षाबंधन के दिन बहन भैया के ललाट पर तिलक-अक्षत लगाकर संकल्प करती है
कि 'जैसे शिवजी त्रिलोचन हैं, ज्ञानस्वरूप हैं, वैसे ही मेरे भाई में भी
विवेक-वैराग्य बढे, मोक्ष का ज्ञान, मोक्षमय प्रेमस्वरूप ईश्वर का प्रकाश
आये ।
* रक्षाबंधन के दिन बहन भैया के ललाट पर तिलक-अक्षत लगाकर संकल्प करती है
कि 'मेरा भाई इस सपने जैसी दुनिया को सच्चा मानकर न उलझे, मेरा भैया
साधारण चर्मचक्षुवाला न हो, दूरद्रष्टा हो ।
(ऋषि प्रसाद : अगस्त २०१०)
* रक्षाबंधन के दिन बहन भैया के ललाट पर तिलक-अक्षत लगाकर संकल्प करती है
कि 'मेरे भैया की सूझबूझ, यश, कीर्ति और ओज-तेज अक्षुण्ण रहें ।
* रक्षाबंधन पर्व समाज के टूटे हुए मनों को जोडने का सुंदर अवसर है ।
इसके आगमन से कुटुम्ब में आपसी कलह समाप्त होने लगते हैं, दूरी मिटने
लगती है, सामूहिक संकल्पशक्ति साकार होने लगती है । (ऋषि प्रसाद : अगस्त
२०१०)
* बहनें रक्षाबंधन के दिन ऐसा संकल्प करके रक्षासूत्र बाँधें कि 'हमारे
भाई भगवत्प्रेमी बनें । और भाई सोचें कि 'हमारी बहन भी चरित्रप्रेमी,
भगवत्प्रेमी बने । अपनी सगी बहन व पडोस की बहन के लिए अथवा अपने सगे भाई
व पडोसी भाई के प्रति ऐसा सोचें । आप दूसरे के लिए भला सोचते हो तो आपका
भी भला हो जाता है । संकल्प में बडी शक्ति होती है । अतः आप ऐसा संकल्प
करें कि हमारा आत्मस्वभाव प्रकटे । (ऋषि प्रसाद : अगस्त २०१०)
* सर्वरोगोपशमनं सर्वाशुभविनाशनम् । सकृत्कृते नाब्दमेकं येन रक्षा कृता भवेत् ।।
'इस पर्व पर धारण किया हुआ रक्षासूत्र सम्पूर्ण रोगों तथा अशुभ कार्यों
का विनाशक है । इसे वर्ष में एक बार धारण करने से वर्ष भर मनुष्य रक्षित
हो जाता है । (भविष्य पुराण)
(ऋषि प्रसाद : अगस्त २०१०)
* येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः । तेन त्वां अभिबध्नामि रक्षे
मा चल मा चल ।।
जिस पतले रक्षासूत्र ने महाशक्तिशाली असुरराज बलि को बाँध दिया, उसीसे
मैं आपको बाँधती हूँ । आपकी रक्षा हो । यह धागा टूटे नहीं और आपकी रक्षा
सुरक्षित रहे । - यही संकल्प बहन भाई को राखी बाँधते समय करे । शिष्य
गुरु को रक्षासूत्र बाँधते समय 'अभिबध्नामि के स्थान पर 'रक्षबध्नामि कहे


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भद्राकाल के बाद ही राखी बाँधें शनि की बहन भद्रा का प्रभाव भी शनि की
तरह ही हानिकारक होता है । अतः भद्राकाल में रक्षासूत्र नहीं बाँधना
चाहिए । इस काल में कोई बहन अपने भाई को राखी न बाँधे । भद्राकाल की
कुदृष्टि से कुल में हानि होने की सम्भावना बढती है । वर्ष २०१५ में २९
अगस्त को दोपहर १-५३ तक भद्राकाल है, इसके बाद ही राखी बाँधें ।
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सावधान भद्राकाल में राखी नहीं बाँधना....!
हो सकती है अकाल मृत्यु या कुल का विनाश, धन हानी, पारिवारिक कलह, अशांति
और परेशानियाँ..........................।
हमारे पुराणों और शास्त्रों में रक्षाबंधन पर्व की बडी महीमा बतायी गयी
है । शुभ नक्षत्र और शुभ घडियों में राखी बाँधने का विशेष प्रभाव भी देखा
गया है ।
परंतु जैसे सूर्य को राहु ग्रसता है । तो वो ग्रहण काल होता है इस समय
में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए ऐसे ही रक्षा बंधन के दिन ही कुछ
घंटों का भद्राकाल आता है ।
कहा जाता है जैसे शनी की कुद्रष्टि नुकसान करती है, ऐसे ही शनि की बहन
भद्रा उसका भी प्रभाव बहुत नुकसान करता है । इस काल में यदि राखी बाँधी
जाये तो आपके कुल का विनाश और जिसके हाथों पर बाँधी जाती है उसकी अकाल
मृत्यु तक हो सकती है । अतः भद्राकाल में रक्षासूत्र नहीं बाँधना चाहिए ।
शास्त्रों में कहा गया है कि देव की प्रेरणा से रावण को शुर्पणखा ने इसी
भद्राकाल में राखी बाँधी थी, उसका परिणाम जो हूआ पुरे संसार ने देखा उसी
वर्ष वो कुल सहित नष्ट हो गया । शास्त्रों में कहा गया है कि इस काल में
कोई बहन अपने भाई को राखी न बाँधे । भद्राकाल की कुदृष्टी से कुल में
हानी की संभावना बढ जाती है । जो इन शास्त्रों की बातों को नहीं मानता और
अपने को अहंकार के कारण बडा समझता हो उसे गणेश चतुर्थी का चाँद देखने को
कहो फिर देखिये कैसे उसका अपयश होता है सुख समृद्धि सब कैसे नष्ट हो जाती
है ।
हमारे शास्त्रों में बतायी गयी सभी बातें आज वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं
और मान रहे हैं कि शास्त्रों में धर्म के अनुसार बतायी गयी बातें काफी
महत्वपूर्ण होती हैं । इन काल इन घडियों में (ग्रहण आदि में) विषाक्त
जिवाणुओं की मात्रा बढ जाती है । इसमें तुलसी अनुपम औषधी होती है और
दुर्वा जो इन विषाक्त जिवाणुओं को भोजन में आने से रोकती हैं । हमारे
धर्म शास्त्रों में तो दादी नानी बचपन से ही ग्रहण के समय खाने के सामान
में पहले से ही तुलसी और दुर्वा के पत्ते रख देते थे जिससे भोजन पर ग्रहण
का प्रभाव नहीं पडता । आज का विज्ञान इसे अपनी भाषा में मानता है ।
इस लिए अपने प्राचीन ऋषि-मुनियों के द्वारा रचित इस आध्यात्मिक धर्म
शास्त्रों का जितना आदर किया जाये उतना कम है ।
सावधान – भद्राकाल में कोई बहन अपने भाई को राखी ना बाँधे ।
ये भद्राकाल इस वर्ष २०१५ में २९ अगस्त को दोपहर १-५३ तक भद्राकाल है,
इसके बाद ही राखी बाँधें । ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ