नींव का पत्थर। (लाल बहादुर शास्त्री जयंती : २ अक्टूबर ) लाल बहादुर शास्त्री जब लाला लाजपतराय के लोकसेवा मंडल (प्रयाग शाखा) के सदस्य बने तब की यह घटना है : सादा जीवन, सादी वेशभूषा, मितभाषिता, प्रसन्न वदन, तत्परता और निःस्वार्थ सेवाभावना आदि गुणों के कारण लाल बहादुर शास्त्री शीघ्र ही सबके प्रिय हो गये । धीरे-धीरे उनकी ख्याति फैलने लगी । यश किसे पसंद नहीं है ? कौन नहीं चाहता कि उसका नाम हो किंतु इसके विपरीत शास्त्रीजी संकोच का अनुभव करने लगे । वे बराबर इसी प्रयत्न में रहते कि समाचार पत्रों में उनका नाम और उनकी सेवाओं का विवरण न छपे । एक दिन मित्रों ने शास्त्रीजी को घेरकर पूछ ही लिया कि ‘‘आखिर आपको समाचार पत्रों में अपना नाम छपने से इतना परहेज क्यों है ? शास्त्रीजी ने कुछ देर तक विचार करके कहा : ‘‘लोकसेवा मंडल के कार्य की जिम्मेदारी सौंपते हुए लाला लाजपतरायजी ने जो शब्द मुझसे कहे थे, वही मैं अपने साथियों को सुनाना चाहता हूँ । इससे आपको आपके प्रश्न का जवाब स्वयं ही मिल जायेगा । लाजपतरायजी ने कहा था : ‘लाल बहादुर ! आगरा के ताजमहल में दो प्रकार के पत्थर लगे हैं । बढिया संगमरमर के पत्थरों से मेहराब और गुंबद बने हैं । उनमें से ही बडी सुंदर जालियाँ काटी गयी हैं । मीनाकारी और पच्चीकारी की गयी है । उन्हींमें से रंगबिरंगे बेल-बूटे बनाये गये हैं । दुनिया इन सबको देखती है, मुग्ध हो जाती है और प्रशंसा करती है । दूसरे पत्थर हैं टेढे-मेढे और बेढंगे । वे सब बुनियाद में पडे हैं । उनकी किस्मत में केवल अंधकार और बुनियाद की घुटन ही है । उनकी कोई प्रशंसा नहीं करता लेकिन उन्हीं नींव के पत्थरों के सिर पर ताजमहल की विशाल इमारत अपना सिर उठाये आकाश को छू रही है । मैं चाहता हूँ लोकसेवा मंडल के सदस्य नींव के पत्थर बनें । वे सस्ती इश्तिहारबाजी से अपने को बचाये रखें और ठोस कार्य की ओर अधिक ध्यान दें । मित्रो ! पूज्य लालाजी के ये शब्द मेरे कानों में सदा गूँजते रहते हैं और आज भी रह-रहकर मुझे कर्तव्य-पथ पर चलने की प्रेरणा देते रहते हैं । बस, मेरी एकमात्र इच्छा यही है कि मैं सारी आयु नींव का पत्थर बनकर ही रहूँ । लाल बहादुर शास्त्रीजी ने पूरी उम्र लाला लाजपतराय के इस आदेश का पालन किया । भारत के प्रधानमंत्री पद जैसे महत्त्वपूर्ण पद पर पहुँचकर भी वे बडे विनम्र, सेवाभावी और दीन-दुःखियों का दर्द सुननेवाले बने रहे । आलीशान सरकारी कोठरी में रहते हुए भी उनका जीवन सादगी से परिपूर्ण रहा । धन्य है लाला लाजपतराय की दृष्टि और धन्य है लाल बहादुर शास्त्री का त्याग एवं संयम ! काश ! ऐसे नररत्न राजनीति में आते रहें जिससे राजनीतिज्ञ भी उनसे प्रेरणा पायें । भगवान करें ऐसे नररत्नों की संख्या राजनीति में बढे । इससे देश और मानवता का मंगल होगा । (ऋषि प्रसाद : सितम्बर २००३) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ