आरम्भ है प्रचंड…
आरम्भ है प्रचंड, बोले मस्तकों के झुंड, आज ज़ंग की घडी की तुम गुहार दो।
आरम्भ है प्रचंड, बोले मस्तकों के झुंड, आज ज़ंग की घडी की तुम गुहार दो।
आन बान शान, या
कि जान का हो दान, आज एक धनुष के बाण पे उतार दो।।
आरम्भ है प्रचंड, बोले
मस्तकों के झुंड। आज ज़ंग की घडी की तुम गुहार दो, आन
बान शान, या कि जान का हो दान। आज एक धनुष के बाण पे उतार दो! आरम्भ
है प्रचंड........
मन करे सो प्राण
दे, जो मन करे सो प्राण ले, वही तो एक
सर्वशक्तिमान है। - २
कृष्ण की पुकार
है, ये भागवत का सार है कि युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है।
कौरवों की भीड़
हो या पांडवों का नीड़ हो जो लड़ सका है वोही तो महान है!
जीत की हवस नहीं, किसी
पे कोई वश नहीं। क्या ज़िन्दगी
है, ठोकरों पे वार दो, मौत अंत है नहीं। तो मौत से भी क्यों डरें, ये
जा के आसमान में दहाड़ दो।।
आरम्भ है प्रचंड, बोले
मस्तकों के झुंड, आज ज़ंग की घडी की तुम गुहार दो। आन
बान शान, या कि जान का हो दान, आज
एक धनुष के बाण पे उतार दो।।
वो दया का भाव, या
कि शौर्य का चुनाव, या कि हार का ये घाव तुम ये सो चलो। - २
या कि पूरे भाल
पे जला रहे विजय का लाल, लाल यह गुलाल तुम ये सोचलो।
रंग केसरी हो या, मृदंग
केसरी हो या कि केसरी हो ताल तुम ये सोच लो।।
जिस कवि की
कल्पना में ज़िन्दगी हो प्रेमगीत। उस कवि को आज तुम नकार दो।।
भीगती मसों में
आज, फूलती रगों में आज, आग की लपट का तुम बघार दो!
आरम्भ है प्रचंड, बोले
मस्तकों के झुंड, आज ज़ंग की घडी की तुम गुहार दो, आन
बान शान, याकि जान का हो दान, आज
एक धनुष के बाण पे उतार दो! आरम्भ है प्रचंड… आरम्भ है प्रचंड… आरम्भ
है प्रचंड…
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