प्रश्नभूत-प्रेत किन लोगों के पास नहीं आते?

                 उत्तरभूत-प्रेतोंका बल उन्हीं मनुष्योंपर चलता है,जिनके साथ पूर्वजन्मका कोई लेन-देनका सम्बन्ध रहा है अथवा जिनका प्रारब्ध खराब आ गया है अथवा जो भगवान्‌के (पारमार्थिक) मार्गमें नहीं लगे हैं अथवा जिनका खान-पान अशुद्ध है और जो शौच-खान आदिमें शुद्धि नहीं रखते अथवा जिसके आचरण खराब हैं । जो भगवान्‌के परायण हैं, भगवन्नामका जप-कीर्तन करते हैं,भगवत्कथा सुनते हैं,खान-पान,शौच-खान आदिमें शुद्धि रखते हैं,जिनके आचरण शुद्ध हैं,उनके पास भूत-प्रेत प्रायः नहीं आ सकते । जो नित्यप्रति श्रद्धासे गीता,भागवत,रामायण आदि सद्‌ग्रन्थोका पाठ करते हैं,उनके पास भी भूत-प्रेत नहीं जाते ।परन्तु कई भूत-प्रेत ऐसे होते हैं,जो स्वयं गीता,रामायण आदिका पाठ करते हैं । ऐसे भूत-प्रेत पाठ करनेवालोंके पास जा सकते हैं,पर उनको दुःख नहीं दे सकते । अगर ऐसे भूत-प्रेत गीता आदिका पाठ करनेवालोंके पास आ जायँ तो उनका निरादर नहीं करना चाहिये;क्योंकि निरादर करनेसे वे चिढ़ जाते हैं । जो रोज गंगाजलका चरणामृत लेता है,उसके पास भी भूत-प्रेत नहीं आते । हनुमानचालीसा अथवा विष्णुसहस्र-नामका पाठ करनेवालेके पास भी भूत-प्रेत नहीं आते ।एक बार दो सज्जन बैलगाड़ीपर बैठकर दूसरे गाँव जा रहे थे । रास्तेमें गाड़ीके पीछे एक पिशाच (प्रेत) लग गया । उसको देखकर वे दोनों सज्जन डर गये । उनमेंसे एक सज्जनने विष्णुसहस्रनामका पाठ शुरू कर दिया । जबतक दूसरे गाँवकी सीमा नहीं आयी,तबतक वह पिशाच गाड़ीके पीछे-पीछे ही चलता रहा । सीमा आते ही वह अदृश्य हो गया । इस तरह विष्णुसहस्रनामके प्रभावसे वह गाडीपर आक्रमण नहीं कर सका। जिसके गले में तुलसी,रुद्राक्ष अथवा बद्ध पारद की माला होती है,उसका भूत-प्रेत स्पर्श नहीं कर सकते। एक सज्जन प्रातः लगभग चार बजे घोड़ेपर बैठकर किसी आवश्यक कामके लिये दूसरे गाँव जा रहे थे । ठण्डीके दिन थे । सूर्योदय होनेमें लगभग डेढ़ घण्टेकी देरी थी । जाते-जाते वे ऐसे स्थानपर पहुँचे,जो इस बातके लिये प्रसिद्ध था कि वहाँ भूत-प्रेत रहते हैं । वहाँ पहुँचते ही उनके सामने अचानक एक प्रेत पेड़-जैसा लम्बा रूप धारण करके रास्तेमें खड़ा हो गया । घोड़ा बिचक जानेसे वे सज्जन घोडेसे गिर पड़े । उनके दोनों हाथोंमें मोच आ गयी । पर वे सज्जन बड़े निर्भय थे,अतः पिशाचसे डरे नहीं । जबतक सूर्योदय नहीं हुआ,तबतक वह पिशाच उनके सामने ही खड़ा रहा,पर उसने उनपर आक्रमण नहीं किया,उनका स्पर्श नहीं किया;क्योंकि उनके गलेमें तुलसीकी माला थी । सूर्योदय होनेपर पिशाच अदृश्य हो गया और वे सज्जन पुनः घोड़ेपर बैठकर अपने घर वापस आ गये । सूर्यास्तसे लेकर आधीराततक तथामध्याह्नके समय भूत-प्रेतोंमें ज्यादा बल रहता है,उनका ज्यादा जोर चलता है । यह सबके अनुभवमें भी आता है कि रात्रि और मध्याह्नके समय श्मशान आदि स्थानोंमें जानेसे जितना भय लगता है,उतना भय सबेरे और संध्याके समय नहीं लगता ।अगर रात्रि अथवा मध्याह्नके समय किसी एकान्त,निर्जन स्थानपर जाना पड़े और वहाँ पीछेसे कोई (प्रेत) पुकारे अथवा मैं आ जाऊँ’‒ऐसा कहे तो उत्तरमें कुछ नहीं बोलना चाहिये,प्रत्युत चलते-चलते भगवन्नाम-जप,कीर्तन,विष्णुसहस्रनाम,हनुमानचालीसा,गीता आदिका पाठ शुरू कर देना चाहिये ।उत्तर न मिलनेसे वह प्रेत वहींपर रह जायगा । अगर हम उत्तर देंगे,‘हाँ, आ जा’‒ऐसा कहेंगे तो वह प्रेत हमारे पीछे लग जायगा । जहाँ प्रेत रहते हैं,वहाँ पेशाब आदि करनेसे भी वे पकड़ लेते हैं;क्योंकि उनके स्थानपर पेशाब करना उनके प्रति अपराध है ।अतः मनुष्यको जहाँ-कहीं भी पेशाब नहीं करना चाहिये । हमें दुर्गतिमें,प्रेतयोनिमें न जाना पड़ेइस बातकी सावधानीके लिये और गयाश्राद्ध करके,पिण्ड-पानी देकर प्रेतात्माओंके उद्धारकी प्रेरणा करनेके लिये ही यहाँ प्रेतविषयक चर्चा की गयी है । सांसारिक भोग और ऐश्वर्यकी कामनावाले मनुष्य अपने-अपने इष्टके पूजन आदिमें तत्परतासे लगे रहते हैं और इष्टकी प्रसन्नताके लिये सब काम करते हैं;परन्तु भगवान्‌के भजन-ध्यानमें लगनेवाले जिस तत्त्वको प्राप्त होते हैं,उसको प्राप्त न होकर वे बार-बार सांसारिक तुच्छ भोगोंको और नरकों तथा चौरासी लाख योनियोंको प्राप्त होते रहते हैं । इस तरहजो मनुष्य-जन्म पाकर भगवान्‌के साथ प्रेमका सम्बन्ध जोड़कर उनको भी आनन्द देनेवाले हो सकते थे,वे सांसारिक तुच्छ कामनाओंमें फँसकर और तुच्छ देवता,पितर आदिके फेरेमें पड़कर कितनी अनर्थ-परम्पराको प्राप्त होते हैं । इसलिये मनुष्यको बड़ी सावधानी से केवल भगवान मेँ ही लग जाना चाहिये। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ