‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ का भाव रखनेवाले संतों के प्रति दुर्भावना क्यों ? भारत के साधु – संत सनातन सत्य के अमृत का पान ही नहीं करते वरन इसे बाँटते भी है। यह क्रम हजारों वर्षो से बना हुआ है। वर्तमान समय में भी ‘सबका मंगल, सबका भला’ इस भाव से ओतप्रोत रहनेवाले हमारे ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष पूज्य बापूजी मानवमात्र का अपने सत्संग के माध्यम से सनातन सत्य का ज्ञानामृत बाँटते रहे है और वैदिक ज्ञान की सनातन धारा की निनिरंतरता बनाये हुए हैँ। पर हर काल में धर्मविरोधी भी धरती पर आते रहे हैँ। धर्मविरोधी शक्तियाँ आज भी सक्रिय है और धर्म व संस्कृति की सेवा में लगे हमारे साधु – संत इनके निशाने पर हैं। शंकराचार्य श्री जयेंद्र सरस्वतीजी, साध्वी प्रज्ञा सिंह तथा और भी कई साधु – संत दिया गया। अब इनके निशाने पर है राष्ट्रीय संत श्री आशारामजी बापू। एक ऐसे संत जो विगत ५० वर्षो से अपने सत्संग से समाज में अलख जगा रहे हैं। लाखों नहीं, करोड़ों लोगों ने जिनसे दीक्षा लेकर अपने जीवन का सनातन धर्म के ज्ञान से सँवारा है, ऐसे शिव-संत यानी कल्याणकारी संत आज जेल में है ! संतो की भूमि भारत में ही संतो के साथ अन्याय कब तक होता रहेगा ? शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वतीजी को जो जेल आदि का कष्ट दिया गया, जो बदनामी की गयी, क्या उसकी क्षतिपूर्ति हो सकती है ? ऐसा ही संत आशारामजी के साथ हो रहा है। उनके विरुद्ध झूठे दुष्प्रचार से अनेक लोगों की आस्था को ठेस पहुँची है, करोड़ों लोगों का ह्रदय आक्रंद कर रहा है। कल जब वे निर्दोष बाहर आयेंगे तो कौन करेगा इसकी क्षतिपूर्ति ? हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि पूज्य संत श्री आशारामजी बापू पुन: लाखों लोगों के बीच सजे हुए पंडाल में सनातन सत्य का ज्ञानामृत लुटाते नजर आयें। ध्यान माखीजा, संयोजक, राष्ट्रोत्थान मंडल, हरिद्वार स्रोत- लोक कल्याण सेतु, मई २०१५ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ