द्वारका (गुजरात)। पश्चिम भारत के महत्वपूर्ण तीर्थस्थल और चार धामों में
से एक द्वारकाधीश मंदिर पर ७ सितंबर, १९६५ को पाकिस्तान की नेवी ने जमकर
बम बरसाए थे। मंदिर पर १५६ बम फेंके गए थे, लेकिन फिर भी ये बम मंदिर का
बाल-बांका न कर सके।
मंदिर पर १५६ बम फेंके जाने की बात खुद पाकिस्तान के रेडियो में प्रसारित
की गई थी। रेडियो में पाक नेवी के सैनिकों ने हर्षोल्लास के साथ कहा था..
'मिशन द्वारका कामयाब, हमने द्वारका का नाश कर दिया। हमने कुछ ही मिनटों
के अंदर मंदिर पर १५६ बम फेंककर मंदिर को नष्ट कर दिया'।
हालांकि, यह पाक नैवी का भ्रम मात्र था। दरअसल, जब नेवी ने सब-मरीन से
मंदिर पर बम बरसाने शुरू किए, उस समय समुद्र किनारे विशाल पत्थरों की ओट
थी। जिसके चलते कई बम मंदिर तक पहुँच ही नहीं सके और पानी में डिफ्यूज हो
गए थे। मंदिर का कुछ हिस्सा जरूर खंडित हो गया था, जिसका बाद में
पुनरुद्धार कर दिया गया।

बंटवारे के बाद सन् १९६५ में भारत-पाक के बीच हुआ यह दूसरा युद्ध था। इस
जंग में पाकिस्तान ने तीनों मोर्चों पर जंग लड़ी थी, जिसमें तीनों जगह
उसे मुंह की खानी पड़ी थी। द्वारका मंदिर पर हमला कमोडोर एस एम अनवर के
नेतृत्व में पाकिस्तानी नेवी के एक बेड़े ने किया था। यह मामला संसद में
भी गूंजा और इस वजह से रक्षा बजट ३५ करोड़ रुपए से बढ़ाकर ११५ करोड़ कर
दिया गया था।
इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने भारतीय एयरबेस पर घुसपैठ और इन्हें तबाह
करने के लिए कई गोपनीय ऑपरेशन भी चलाए थे। सात सितंबर १९६५ को स्पेशल
सर्विसेज ग्रुप के कमांडो पैराशूट के जरिए भारतीय इलाकों में भी घुस आए
थे। पाकिस्तानी आर्मी के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ जनरल मुहम्मद मुसा के
मुताबिक करीब १३५ कमांडो भारत के तीन एयरबेस (हलवारा, पठानकोट और आदमपुर)
पर उतारे गए। हालांकि, पाकिस्तानी सेना को इस दुस्साहस की भारी कीमत
चुकानी पड़ी थी और उसके केवल २२ कमांडो ही अपने देश लौट सके थे। ९३
पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बना लिया गया। इनमें एक ऑपरेशन के कमांडर
मेजर खालिद बट्ट भी शामिल थे। पाकिस्तानी सेना की इस नाकामी की वजह
तैयारियों में कमी को बताया जाता है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ