राजा भोज के दरबार में एक धुरन्धर विद्वान आया। वह हर भाषा इतनी सफाई से बोल सकता था मानों वह उसकी मातृभाषा ही हो। उसकी असल मातृभाषा कौन-सी है यह बता पाना कठिन था। उसने राजदरबार में चुनौतीपूर्ण घोषणा कर दी कि जो विद्वान मेरी मातृभाषा बता देगा उसे मैं लाख स्वर्ण मुद्राऐँ पुरुस्कार दूँगा, अन्यथा प्रतिदिन राज्य की ओर से मुझे लाख स्वर्णमुद्राऐँ मिलते रहें। राजा भोज विद्वानों का सम्मान करते थे। उस विद्वान की चुनौती मान ली गई। लेकिन दरबार का कोई विद्वान तय नहीं कर पाया कि उसकी मातृभाषा कौन-सी है। राजदरबार हार गया। वह विद्वान लाख स्वर्णमुद्राऐँ लेकर चलता गया। दूसरे तीसरे और चौथे दिन भी यही हुआ। राज्य का धन तो जा रहा था, साथ में राजदरबार की प्रतिष्ठा भंग हो रही थी। आखिर कालिदास के पास बात पहुँची। वे बोलेः अच्छा ! मैं उसकी मातृभाषा का पता लगा दूँगा।" उस दिन भी वह विद्वान लाख स्वर्णमुद्राऐँ जीतकर दरबार से जाने लगा तो बाहर सीढियाँ उतरते समय कालिदास ने उसके घुटनों पर प्रहार किया। वह लड़खड़ाकर गिर पड़ा। आगबबूला होकर गिरते-गिरते अपनी मातृभाषा में चिल्लाया, बड़बड़ाया। कालिदास उसके पास बैठ गये। उसके घुटने दबाते हुए बोलेः ''क्षमा करना, आपकी मातृभाषा फलानी है। और कोई उपाय न था यह जानने का। इसलिए यह धृष्टता की है। क्षमा करना, मैं आपके पैर को चंपी कर देता हूँ।" आपके अचेतन मन में क्या छुपा है, उसका पता चल जाता है। जब एकदम कोई परेशानी आती है तब 'हाय....!' निकलती है कि 'हरि....' निकलता है यह देखना जरा। ठोकर लगती है, चोट लगती है तब बैद्य याद आता है कि अपना सच्चिदानन्दस्वरूप याद आता है? 'ठोकर भी मैं हूँ, ठोकर खाने वाला भी मैं हूँ और ठोकर को देखने वाला भी मैं हूँ.... शिवोऽहम्... ऐसा निकलता है कि और कोई कचरा निकलता है? यदि कचरा निकलता है जल्दी से नदी में डाल देना, बहा देना। आकार में निराकार दिखता है कि निराकार में आकार दिखता है? आकृति में सत्यता दिखती है कि आकृति में विकृति दिखती है यह जरा अपने भीतर निहारना। गहरा चिन्तन करना। आप गायत्री मंत्र का जप करते हैं तो कोई सासांरिक वस्तुऐँ माँगते हैं कि बुद्धि पवित्र हो ऐसी प्रार्थना करते हैं? पवित्र बुद्धि में ही आत्म-साक्षात्कार की क्षमता आती है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ