राज़ा सुकीर्ति के पास एक लौहश्रुन्घ नामक हाथी था। राजा ने कई युद्ध में उसपर चढ़ाई करके विजय पायी थी। बचपन से ही उसे इस प्रकार से तैयार किया गया था कि युद्ध में शत्रु सैनिको को देखकर वो उनपर इस तरह टूट पड़ता कि देखते ही देखते शत्रु के पाँव उखड जाते थे। पर जब वो हाथी बुढा हो गया ..तो वह हाथी शाला की शोभा बन कर रह गया। अब उसपर ध्यान नहीं देता था। भोजन में भी कमी कर दी गयी। एक बार वो प्यासा हो गया तो एक तालाब में पानी पिने गया पर वहा कीचड़ में उसका पैर फस गया और धीरे धीरे गर्दन तक कीचड़ में फँस गया। अब सबको लगा कि ये हाथी तो मर जाएगा। इसे हम बचा ही नहीं पायेंगे। राजा को जब पता चला तो वे बहुत दुखी हो गए। पूरा प्रयास किया गय पर सफलता ही नहीं मिल रही थी। आखिर में एक चतुर सैनिक की सलाह से युद्ध का माहौल बनाया गया ..वाद्ययंत्र मंगवाए गए ….नगाड़े बजवाये गए और ऐसा माहौल बनाया गया कि शत्रु सैनिक लौहश्रुन्घ की ओर बढ़ रहे है। और फिर तो लौहश्रुन्घ में एक जोश आ गया ..गले तक कीचड़ में धस जाने के बावजूद वह जोर से चिंघाड़ लगाकर सैनिको की ओर दौड़ने लगा। बड़ी मुश्किल से उसे संभाला गया। ये है एक मनोबल बढ़ जाने से मिलने वाली शक्ति का चमत्कार। जिसका मनोबल जाग जाता है वो असहाय और अशक्त होने के बाद भी असंभव कार्य कर जाता है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ