किसी के मरते समय मुँह में तुलसी और गंगाजल क्योँ रखते हैं? इसका धार्मिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक महत्व क्या है? ==================== जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। लेकिन मृत्यु के बाद की यात्रा कैसी होगी इस बात को लेकर संसार भर में कई मान्यताएं हैं। इन्हीं मान्यताओं में मृत्यु के समय होने वाली कुछ क्रियाएँ भी सम्मलित हैं। उदाहरण के तौर पर हिन्दूओं में मृत्यु के समय मरने वाले व्यक्ति के मुंह में तुलसी और गंगाजल डाला जाता है। कुछ स्थानों पर मुँह में सोना भी रखते हैं। आइये जानें की इसके पीछे क्या कारण है। गंगाजल हिन्दू धर्म में जल को शुद्धि करने वाला माना गया है। इसलिए पूजा-पाठ हो या कोई भी अनुष्ठान सबसे पहले जल से पूजन सामग्री और पूजा करने वाले को शुद्ध किया जाता है। स्नान भी इसी का अंग है। लेकिन जल में गंगा नदी के जल को सबसे पवित्र माना जाता है। कारण यह है की गंगा को स्वर्ग की नदी कहा गया है। गंगा नदी के विषय में पुराणों में बताया गया है की यह भगवान विष्णु के चरण से निकली है और भगवान शिव की जटाओँ में इनका वास है। इसलिए मृत्यु के समय मुँह में गंगा जल रखने से शरीर से आत्मा निकलते समय अधिक कष्ट नहीं होता है। यह भी मान्यता है कि मुँह में गंगा जल होने से यमदूत नहीं सताते हैं और जीव के आगे की यात्री असान हो जाती है। व्यवहारिक तौर पर देखा जाए तो मृत्यु के समय मुँह में जल डालने का उद्देश्य यह भी है की शरीर छोड़कर जा रहा व्यक्ति प्यासा नही जाए। इसकी एक झलक आप सामान्य जीवन में देख सकते हैं की जब कोई व्यक्ति लंबी यात्रा पर जा रहा होता है तो बड़े बुजुर्ग उन्हें पानी अवश्य पिलाते हैं। ससुराल से कन्या की विदाई के समय भी उन्हें पानी पिलाया जाता है। यानी मरने वाले को जल पिलाने का धार्मिक ही नहीं व्यवहारिक कारण भी है। तुलसी पत्ता मृत्यु के समय गंगा जल के साथ एक और चीज मुँह में रखी जाती है वह है तुलसी पत्ता। धार्मिक दृष्टि से तुलसी का बड़ा ही महत्व है। कहते हैं तुलसी हमेशा भगवान श्री विष्णु के सिर पर सजती है। तुलसी धारण करने वाले को यमराज कष्ट‌ नहीं देते। मृत्यु के बाद परलोक में व्यक्ति को यमदंड का सामना नहीं करना पड़े इसलिए मरते समय मुँह में तुलसी का पत्ता रखा जाता है। धार्मिक दृष्टि के अलावा इसका वैज्ञानिक और व्यवहारिक कारण भी है। तुलसी एक औषधीय पौधा है जो कई रोगों को नष्ट करने मेँ सक्षम होता है। मृत्यु के समय तुलसी पत्ता मुँह में होने से प्राण त्यागने के समय होने वाले कष्ट से राहत मिलती है क्योंकी यह सात्विक भाव जगाता है। व्यवहारिक दृष्टि से बात करें तो तुलसी मुँह में रखने का उद्देश्य यह हो सकता है कि जाने वाला कुछ खाकर गया है। लोक मान्यता के अनुसार घर से कभी भी बिना खाए हुए यात्रा नहीं करनी चाहिए। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ