परमात्मा से तार जोड़े सच्चा संगीत।
एक
संत-महापुरुष बहुत अच्छे संगीतज्ञ भी थे । जिस राज्य में वे रहते थे, उसके
राजा को उनका संगीत सुनने की इच्छा हुई । उसने संत को बुलाने के लिए सिपाही भेजे
परंतु उन्होंने मना कर दिया । राजा क्रोध से भड़क उठा, बोला
: ‘‘भिखमंगे की इतनी हिम्मत !..."
बुद्धिमान
मंत्री ने राजा को शांत करते हुए कहा : ‘‘राजन्
! आप क्रोधित न हों । वे साधु अवश्य हैं किंतु
भिखमंगे कदापि नहीं । यदि उन्हें भीख की चाह होती तो वे आपके दरबार में भागे हुए न
चले आते ? आपको यदि संगीत सुनना है तो उनके पास
जाना होगा । फिलहाल मैं आपके मनोरंजन के लिए प्रसिद्ध गायक व सितार-वादक बुलवा
चुका हूँ ।”
इतने
में संगीतज्ञ आ पहुँचे । राजा ने संगीतज्ञ को भी उन संत की बात बतायी । संगीतज्ञ
बोला : ‘‘राजन् ! वे संत तो सचमुच क्या गीत गाते
हैं ! आहाहा...”
राजा
: ‘‘मंत्रीजी ! हम संगीतज्ञ के साथ उन साधु का
संगीत सुनने जाना चाहते हैं । घोड़े मँगवाओ !”
संगीतज्ञ
बोल उठा : ‘‘यदि आपको सच्चा संगीत सुनना है तो आपको
भूल जाना होगा कि आप राजा हैं । आपको विनम्र श्रोता बनकर ही उनके पास जाना होगा ।
और न केवल पैदल बल्कि इन राजसी वस्त्रों को उतारकर भी ।”
राजा
के पुण्य जागृत हुए थे, जिससे उसे संत-दर्शन व सच्चा संगीत
सुनने की तीव्र त‹डप जाग उठी । अतः वह संगीतज्ञ के साथ
साधारण कप‹डों में पैदल ही चल प‹डा
। संत की कुटिया तक पहुँचते-पहुँचते उन्हें रात हो गयी । पूनम के शीतल चन्द्रमा की
चाँदनी ने उनकी दिनभर की थकान हर ली ।
राजा
: ‘‘संगीतज्ञ ! कोई ऐसी युक्ति सोचो, जिससे
हम महाराजजी का संगीत सुन सकें ।”
‘‘राजन्
! मैंने युक्ति सोच ली है ।” और उसने वीणा की झंकार के साथ जानबूझकर
गलत ढंग से राग आलापना शुरू कर दिया ।
वीणा
की झंकार और राग का गलत आलाप सुन के संत कुटिया से बाहर निकले । उन्होंने उससे
वीणा ले ली और राग आलापने की सही तरकीब बताने लगे ।
संगीतज्ञ
: ‘‘महाराजजी ! इस राग को आप ही गा दें तो बड़ी
कृपा हो ।” महात्माजी ने उसकी प्रार्थना पर राग
छेड़ दिया । उस सात्त्विक वातावरण तथा चन्द्रमा की चाँदनी में उन महापुरुष की
आत्मानंद-वर्षा में सभी डूब गये । इतना ही नहीं, उनका
बैठे-बैठे ध्यान लग गया । उन्हें यह भी पता न चला कि चन्द्रमा सूरज के रूप में बदल
चुका है । महात्माजी के आत्मविश्रांति के प्रसाद से दोनों पावन हो चुके थे ।
सुबह
पक्षियों की किलोल से ध्यान टूटा । राजा बोला : ‘‘महाराजजी
! मुझे पूरे जीवन में ऐसा आनंद कभी नहीं मिला !”
फिर
संगीतज्ञ ने सारी बात महात्माजी को कह सुनायी । महात्माजी हँसकर बोले : ‘‘राजन्
! आपके सेवक कह रहे थे कि ‘राजा को आपका संगीत पसंद आया तो वह
आपको धन से लाद देगा ।’ अब तुम मुझे क्या दे रहे हो ?”
‘‘महाराजजी!
आपके शाश्वत सुख के खजाने के आगे मेरे नश्वर खजाने की क्या कीमत ! मैं आपको क्या
दे सकता हूँ !” राजा की आँखें भर आयीं और वह महात्माजी
के चरणों में पड़ गया ।
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