दिखते छोटे पर करते जीवन-निर्माण
                 अनासक्ति, इन्द्रिय-संयम, स्वाद-लोलुपता का त्याग, धैर्य, माता-पिता व गुरुजनों का आदर - ये महान सद्गुण हैं । किसी भी व्यक्ति के महान बनने में ये सद्गुण नींव का काम करते हैं । सत्शास्त्रों ने इनकी बहुत महिमा गायी है । एक शिक्षक ने यह बात सत्शास्त्रों से जानी तो इन सद्गुणों का जीवन में कितना असर होता है इसका प्रयोगात्मक परिणाम देखने की उनको उत्सुकता हुई । इसके लिए शिक्षक ने एक युक्ति अपनायी ।
               एक दिन विद्यालय में वे शिक्षक बच्चों को अत्यंत प्रिय अनेक प्रकार की टॉफियाँ लेकर आये और बेंच पर रखते हुए छात्रों से कहा : ‘‘तुम्हारे लिए ही ये गोलियाँ मँगवायी हैं । मैं अभी पुस्तकालय जा रहा हूँ । मेरी इच्छा थी कि मैं अपने हाथों से ही तुम्हें गोलियाँ दूँ परंतु अचानक जाना पड रहा है । आधे घंटे बाद मैं आऊँगा, फिर भी जो चाहे वह इन मीठी गोलियों को स्वयं लेकर खा सकता है । कोई प्रतिबंध नहीं है ।
                     अध्यापक चले गये । कुछ छात्रों ने सोचा, ‘अच्छा मौका हैऔर टॉफी उठाकर खाना शुरू किया । परंतु कुछ छात्रों ने सोचा, ‘नहीं, आचार्यजी की अपने हाथों से हमें टॉफियाँ देने की इच्छा थी । अतः हमें प्रतीक्षा करनी चाहिए । आधे घंटे में क्या अंतर पडता है !उन्होंने टॉफियाँ नहीं खायीं ।
शिक्षक लौटकर आये, बोले : ‘‘अरे, अभी भी टॉफियाँ पडी हुई हैं, क्या तुम लोगों ने खायी नहीं ?”
जिन बच्चों ने खायी थी, उन्होंने कहा : ‘‘आचार्यजी ! हमने खा ली हैं ।
                    शिक्षक ने गोलियाँ खानेवाले तथा न खानेवाले सभी विद्यार्थियों का नाम अपनी स्मृति में अंकित कर लिया । बच्चों के विद्यालय छोडने के बाद भी वे उन बच्चों पर ध्यान रखते रहे । १० वर्षों बाद वे सभी छात्र अपने-अपने काम में लग गये ।
                       शिक्षक ने देखा कि जिन बच्चों ने संयम बरता, स्वाद-लोलुपता पर लगाम लगायी, वे सूझबूझ के धनी बने और ऊँचे पदों पर आसीन हुए और जो स्वाद-लोलुप थे, संयम और धैर्य जिनके जीवन में नहीं था वे सामान्य पदों पर पहुँचे ।
                    उन शिक्षक को शास्त्र की बात समझ में आ गयी कि इन्द्रिय-लोलुपता, धैर्यहीनता व्यक्ति को योग्यता से नीचे गिरा देते हैं । इन्द्रिय-संयम, धैर्य दिखते तो छोटे हैं परंतु ये जीवन-निर्माण की आधारशिला का कार्य करते हैं ।