जैसे प्रकाश के बिना पदार्थ का ज्ञान नहीं होता, उसी प्रकार पुरुषार्थ के बिना कोई सिद्धि नहीं होती। जिस पुरुष ने अपना पुरुषार्थ त्याग दिया है और दैव के आश्रय होकर समझता है कि "दैव हमारा कल्याण करेगा" वह कभी सिद्ध नहीं होगा। ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ जीवन की हर परिस्थिति का सदुपयोग करो । जो भी परिस्थिति आये – मान आये, सुख आये तो चिन्तन करो कि ‘‘प्रभु मुझे उत्साहित करने के लिए मान दे रहे हैं, सफलता और सुविधा दे रहे हैं । हे प्रभु ! तेरी असीम कृपा को धन्यवाद है !’’ ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ जीवन में जब अपमान हो, दु:ख आये, असफलता आये, विरोध हो, विपत्ति आये तब चिन्तन करो : “हे दयालु प्रभु ! तू मुझे विपरीत परिस्थितियाँ देकर मेरी आसक्ति व ममता छुड़ा रहा है । मेरी परीक्षा लेकर मेरा साहस व सामर्थ्य बढ़ा रहा है । हे प्रभु ! तेरी कृपा की सदा जय हो !’’ ऐसी समझ यदि हमने विकसित कर ली तो फिर कोई भी परिस्थिति हमें हिला नहीं सकेगी और हम निर्मल मन से आत्मदेव में स्थित होने का सामर्थ्य पायेंगे। ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ जिनका जीवन आज भी किसी संत या महापुरुष के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सान्निध्य में है, उनके जीवन में निश्चिन्तता, निर्विकारिता, निर्भयता, प्रसन्नता, सरलता, समता व दयालुता के दैवी गुण साधारण मानवों की अपेक्षा अधिक ही होते हैं तथा देर-सवेर वे भी महान हो जाते हैं और जो लोग महापुरुषों का, धर्म का सामीप्य व मार्गदर्शन पाने से कतराते हैं, वे प्रायः अशांत, उद्विग्न व दुःखी देखे जाते हैं व भटकते रहते हैं। इनमें से कई लोग आसुरी वृत्तियों से युक्त होकर संतों के निन्दक बनकर अपना सर्वनाश कर लेते हैं। ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ वेदान्त का यह अनुभव है कि नीच, नराधम, पिशाच, शत्रु कोई है ही नहीं। पवित्र स्वरूप ही सर्व रूपों में हर समय शोभायमान है। अपने-आपका कोई अनिष्ट नहीं करता। मेरे सिवा और कुछ है ही नहीं तो मेरा अनिष्ट करने वाला कौन है? मुझे अपने-आपसे भय कैसा? ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ इस कलियुग में आत्म-साक्षात्कारी सदगुरू की भक्ति के द्वारा ही ईश्वर-साक्षात्कार करना है।सत्यस्वरूप ईश्वर का साक्षात्कार किये हुए गुरू कलियुग में तारणहार हैं। गुरू से दीक्षा प्राप्त हो जाय, यह बड़े भाग्य की बात है। मंत्रचैतन्य याने मंत्र की गूढ़ शक्ति गुरू की दीक्षा के द्वारा ही जागृत होती है। आध्यात्मिकता की खान के समान गुरू की सहाय के बिना आध्यात्मिक प्रगति संभव नहीं है। गुरू साधकों के आगे से माया का आवरण एवं अन्य विक्षेप दूर करते हैं और उनके मार्ग में प्रकाश करते हैं। ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ साधक भी यदि पूर्ण उत्साह के साथ अपनी पूरी चेतना आत्मस्वरूप के पहचानने में लगा दे तो जिसमें हजारों संत उत्पन्न होकर विलीन हो गये उस परमात्मा का साक्षात्कार कर सकता है। ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ अंतःकरण की अशुद्धि दो कारणों से होती हैः एक कारण है सुख की लालसा और दूसरा कारण है दुःख का भय। सुख की लालसा और दुःख का भय हमारा अंतःकरण मलिन कर देता है। अंतःकरण मलिन होने से हम तत्त्वतः देव से निकट होते हुए भी अपने को देव से दूर महसूस करते हैं। संसार की उलझनों में उलझ जाते हैं। अतः अंतःकरण में जो सुख की लालच है उसको मिटाने के लिए सुख देना सीख ले, दूसरे के काम आना सीख ले। अपने दुःख में रोने वाले ! तू मुस्कुराना सीख ले। जो अपने दुःख को पकड़कर रोते रहते हैं उनको मुस्कुराकर अपने दुःख को पचा लेना चाहिए और सुख बाँटना चाहिए। इससे अंतःकरण की मलिनता दूर हो जायगी। अंतःकरण की मलिनता दूर होते ही वह तेज आने लगेगा। ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ सत्संग से वंचित रहना अपने पतन को आमंत्रण देना है। इसलिए अपने नेत्र, कर्ण, त्वचा आदि सभी को सत्संगरूपी गंगा में स्नान कराते रहो जिससे काम विकार तुम पर हावी न हो सके। ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ चाहे समुद्र के गहरे तल में जाना पड़े, साक्षात मृत्यु का मुकाबला करना पड़े, अपने आत्मप्राप्ति के उद्देश्य की पूर्ति के लिये अडिग रहो। उठो, साहसी बनो, शक्तिमान बनो। आपको जो बल व सहायता चाहिये वह आपके भीतर ही है। ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ भूल जाओ कि तुम मनुष्य हो, अमुक जाति हो, अमुक उम्र हो, अमुक ड़िग्रीवाले हो, अमुक धन्धेवाले हो। तुम निर्गुण, निराकार, साक्षीरूप हो ऐसा दृढ़ निश्चय करो। इसीमें तमाम प्रकार की साधनाएँ, क्रियाएँ, योगादि समाविष्ट हो जाते हैं। आप सर्वव्यापक अखण्ड चैतन्य हो। सारे ज्ञान का यह मूल है। ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ जो गुरूभक्तिमार्ग से विमुख बना है वह मृत्यु, अन्धकार और अज्ञान के भँवर में घूमता रहता है। गुरूभक्तियोग अमरत्व, परम सुख, मुक्ति, सम्पूर्णता, शाश्वत आनन्द और चिरंतन शान्ति प्रदान करता है। गुरूभक्तियोग का अभ्यास सांसारिक पदार्थों के प्रति निःस्पृहता और वैराग्य प्रेरित करता है तथा तृष्णा का छेदन करता है एवं कैवल्य मोक्ष देता है। गुरूभक्तियोग का अभ्यास भावनाओं एवं तृष्णाओं पर विजय पाने में शिष्य को सहायरूप बनता है, प्रलोभनों के साथ टक्कर लेने में तथा मन को क्षुब्ध करने वाले तत्त्वों का नाश करने में सहाय करता है। अन्धकार को पार करके प्रकाश की ओर ले जाने वाली गुरूकृपा करने के लिए शिष्य को योग्य बनाता है। गुरूभक्तियोग का अभ्यास आपको भय, अज्ञान, निराशा, संशय, रोग, चिन्ता आदि से मुक्त होने के लिए शक्तिमान बनाता है और मोक्ष, परम शान्ति और शाश्वत आनन्द प्रदान करता है। ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ बीते हुए समय को याद न करना, भविष्य की चिन्ता न करना और वर्त्तमान में प्राप्त सुख-दुःखादि में सम रहना ये जीवनमुक्त पुरुष के लक्षण हैं। ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ अपने स्वरूप में लीन होने मात्र से आप संसार के सम्राट बन जायेंगे। यह सम्राटपद केवल इस संसार का ही नहीं, समस्त लोक-परलोक का सम्राटपद होगा। ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ आजादी के इस पैगाम को सुननेवालों ! आप वास्तव में आजाद ही हो किन्तु आपके दुर्बल विचार, दुर्बल वासनाएँ एवं दुर्बल बनानेवाले संस्कार ही आपको बाँधे हुए हैं । अतः दूर कर दो इन दुर्बल विचार एवं वासनाओं को और प्रार्थना करो कि : ‘हे गीतानायक श्रीकृष्ण ! हे आत्मवेत्ता संतों ! आपकी सच्ची आजादी दिलानेवाली ब्रह्मज्ञान की दिव्य वाणी हमारे दिल में उतर जाये- ऐसी कृपा करना... संसार के विकारी आकर्षणों से संभलकर हम निर्विकारी नारायणस्वरूप में प्रतिष्ठित हो जाएँ- ऐसा हमारा सौभाग्य बना देना ।' हे भारतवासियों ! उठो, जागो एवं अपनी असली आजादी की ओर कदम आगे बढाओ । विषय-विकारों के आगे दीन-हीन बनने के लिए आपका मनुष्य-जन्म नहीं हुआ है वरन् विषय-विकारों के सिर पर पैर रखकर परब्रह्म परमात्मा के परम सुख को पाने के लिए, जन्म-मरण के चक्र से आजाद होने के लिए आपने मानव-जन्म पाया है । अंग्रेजों के शासन से तो आप मुक्त हो गये हो लेकिन अब आपको जन्म-मरण के चक्र से आजाद होना है । हे मेरे देशवासियों ! अपनी महिमा को जानो। अपने गौरव को पहचानो । बार-बार माता के गर्भ की यातना में मत गिरो । जिस दिन आप इस जन्म-मरण की बेडी से छूटकर अपने नित्य मुक्त स्वभाव का अनुभव कर लोगे, उसी दिन सच्ची आजादी भी पा लोगे । ॐ आनंद... ॐ निर्भयता... ॐ शांति... ૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐૐ