विद्यार्थी-जीवन का आधारः संयम-ब्रह्मचर्य

                         ब्रह्मचर्य के बिना विद्यार्थी स्वस्थ, सुखी एवं सम्मानित जीवन प्राप्त नहीं कर सकता। ब्रह्मचर्य विद्यार्थी-जीवन का आधार है, आत्मस्थ जीवन का मूल है, जो योगियों, साधकों और योगाभ्यासियों की कामना का विषय है। काम, क्रोध, लोभ आदि आंतरिक शत्रुओं से युद्ध करने के लिए यह आवश्यक रक्षाकवच है। ब्रह्मचर्य का पालन न करने वाले, असंयमित जीवन जीने वाले विद्यार्थी क्रोध, ईर्ष्या, आलस्य, भय, तनाव आदि का शिकार बन जाते हैं। इसके ज्वलंत प्रमाण हैं ब्रिटेन के स्कूल और महाविद्यालय। ब्रिटेन में भले ही दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय हों लेकिन वहाँ के ज्यादातर विद्यार्थी प्रसन्न नहीं रह पाते। एक नये अध्ययन के मुताबिक ब्रिस्टल, एडिनबरा, इम्पीरियल कॉलेज-लंदन और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स के विद्यार्थी सबसे ज्यादा परेशान हैं। 125 विद्यालयों में किये गये अध्ययन से यह बात सामने आयी कि'इम्पीरियल कॉलेज-लंदन'परेशान विद्यार्थियों के मामले में तीसरे नंबर पर है। यहाँ 119 विद्यार्थियों में से 97 असंतुष्ट हैं। यही नहीं ऑस्ट्रेलिया के भी विद्यार्थी बड़ी संख्या में तनावग्रस्त पाये गये। इतने पर भी ब्रिटेन में अभी 5 से 16 वर्ष तक के बच्चों के पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा को अनिवार्य कर दिया गया है। यह शिक्षा बच्चों के भविष्य को किस दिशा में ले जायेगी, इसकी कल्पना हम स्वयं कर सकते हैं। ब्रिटेन की अपेक्षा अमेरिकी सरकार ज्यादा समझदार है।'द हेरिटेज सेंटर फॉर डाटा एनालिसिस'की एक रिपोर्ट के अनुसार सतत डिप्रेशन से पीड़ित लड़कियों में संयमी लड़कियं की अपेक्षा यौन-संबंध करने वाली लड़कियों की संख्या तीन गुनी से अधिक है। आत्महत्या करने वाली लड़कियों में संयमी लड़कियों की अपेक्षा यौन-संबंध करने वाली लड़कियों की संख्या तीन गुनी है। सतत डिप्रेशन से पीड़ित लड़कों में संयमी लड़कों की अपेक्षा यौन-व्यवहार करने वाले लड़कों की संख्या दुगने से अधिक है। इस कारण अमेरिका की सरकार ने 33 प्रतिशत स्कूलों में यौन शिक्षा के अंतर्गत केवल संयम की शिक्षा देने के लिए पिछले दस वर्षों में नौ अरब डॉलर खर्च किये। हाल ही में ब्रिटेन की एक जवान वृद्धा ने संयमी जीवन की महत्ता का प्रत्यक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया है।ब्रिटेन की 105 वर्षीया कुमारी मीडमोर अपनी दीर्घायु का रहस्य ब्रह्मचर्य बताती हैं।सन् 1903 में ग्लासगो में जन्मी क्लारा मीडमोर कहती हैं कि'मेरा कभी कोई ब्वाय फ्रेंड नहीं रहा। मैंने 12 साल की उम्र में शादी न करने का फैसला किया और अपने इस निर्णय पर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।' भारत के ऋषियों ने तो प्राचीनकाल में ही अपने सदग्रन्थों में ब्रह्मचर्य की भूरि-भूरि प्रशंसा कर रखी है। सफलता, स्वास्थ्य और समृद्धि संयम का फल है। जिसके जीवन में संयम नहीं है वह स्वस्थ, सफल एवं दीर्घायु कैसे हो सकता है? प्राचीन काल में गुरुकुलों के विद्यार्थी बड़े स्वस्थ, तंदरूस्त, तेजस्वी व प्रसन्नमुख रहते थे क्योंकि गुरुकुलों में संयम व ब्रह्मचर्य पर विशेष बल दिया जाता था। आधुनिक भोगवादी सभ्यता युवक-युवतियों को मानसिक व शारीरिक रूप से बिल्कुल अशक्त कर रही है। जरा-जरा सी बात पर आत्म-संतुलन खो देना और आत्महत्या जैसा कदम उठाने की बढ़ रही वृत्ति इसी का दुष्परिणाम है। सिनेमा व टी.वी. चैनलों द्वारा दिखाये जा रहे अश्लील व हिंसात्मक दृश्य विद्यार्थियों के लिए बड़े घातक सिद्ध हो रहे हैं। वैसे तो ये मनोरंजन का साधन कहे जाते हैं पर ये विद्यार्थियों के लिए मनोभंजक का काम कर रहे हैं। इससे उनमें असंयम को बढ़ावा मिल रहा है। यदि किसी पेड़ की जड़ें कुतर दी जायें तो वह कब तक खड़ा रहेगा?वह तो शीघ्र ही धराशायी हो जायेगा। ऐसे ही विद्यार्थी-जीवन का मूल ब्रह्मचर्य, संयम है। यदि इस पर ही कुठाराघात कर दिया जाय तो विनाश अवश्यंभावी है। प्राचीनकाल में गुरुकुलों में इस पर विशेष ध्यान दिया जाता था, तभी तो हमें अनेक मनीषी प्राप्त हो सके। माता-पिता और शिक्षकों का यह कर्तव्य है कि वे विद्यार्थियों को वैदिक संस्कृति से ज्ञान का, संयम-शिक्षा का महत्त्व समझायें और उनमें छुपी हुई दिव्य योग्यताओं का विकास हो सके ऐसे सुसंस्कारों से उनके जीवन को सँवारें।