देवी अहिल्याबाई का गोमाता को न्याय ।

एक माता का न्याय और एक माता की उदारता
देवी अहिल्याबाई होल्कर पुण्यतिथि: २९ अगस्त

            रानी अहिल्याबाई अदम्य नारी-शक्ति, वीरता, पराक्रम, साहस तथा राजतंत्र व न्याय की सुंदर व्यवस्था की एक अनोखी मिसाल हैं ।
            एक बार इंदौर के किसी मार्ग के किनारे एक गाय अपने बछड़े के साथ खड़ी थी तभी देवी अहिल्याबाई के पुत्र मालोजी राव रथ पर सवार होकर वहाँ से गुजरे । बछड़ा उछलकर उनके रथ के सामने आ गया । गाय भी उसके पीछे दौड़ी पर तब तक मालोजी राव का रथ बछड़े को कुचलता हुआ आगे निकल गया । गाय बहुत देर तक बिलखती रही । फिर अहिल्याबाई के दरबार के बाहर टंगे उस घंटे के पास पहुँची जिसे उन्होंने त्वरित न्याय हेतु विशेषरूप से लगवाया था । जिसे भी तत्काल न्याय की आवश्यकता होती, वह उस घंटे को बजा देता था ।
            घंटे की आवाज सुन अहिल्याबाई ने ऊपर से एक विचित्र दृश्य देखा कि गाय न्याय का घंटा बजा रही है ।
            उन्होंने तुरंत गाय के मालिक को दरबार में बुलवाया और पूछा : “आज तुम्हारी गाय ने न्याय की गुहार की है ।
            क्या तुम उसे समय पर चारा-पानी आदि नहीं देते ?”
            वह बोला : “मातोश्री ! गाय अन्याय की शिकार तो हुई है पर उसका कारण मैं नहीं, कोई और है पर उसका नाम बताने में मुझे प्राणों का भय है ।”
      अपराधी जो कोई भी है उसका नाम निडर होकर बताओ, तुम्हें हम अभयदान देते हैं ।” तब उसने सारी बात कह सुनायी । अपराधी मेरा पुत्र है, यह जानकर भी अहिल्याबाई तनिक भी विचलित नहीं हुईं । उन्होंने तुरंत मालोजी की पत्नियों को दरबार में बुलवाकर उनसे पूछा : “यदि कोई व्यक्ति किसी माता के पुत्र की हत्या कर दे तो उसे क्या दंड मिलना चाहिए ?”
            वे बोली : “जैसे हत्या हुई है वैसे उसे भी प्राणदंड मिलना चाहिए ।”
            देवी अहिल्या ने तुरंत मालोजी राव को प्राणदंड सुनाते हुए उनके ऊपर से रथ घुमाने का आदेश दिया । जहाँ गाय का बछड़ा कुचल गया था, मालोजी को उसी स्थान पर हाथ-पैर बाँधकर डाल दिया गया । परंतु रथ के सारथी ने कहा : “मातोश्री ! मालोजी राजकुल के एकमात्र कुलदीपक हैं । आप चाहें तो मुझे प्राणदंड दे दें किंतु मैं उनके प्राण नहीं ले सकता ।”
              तब वे स्वयं रथ पर सवार हुईं और मालोजी की ओर रथ को तेजी से दौड़ाया । तभी अचानक एक अप्रत्याशित घटना हुई । रथ निकट आते ही वही गाय रथ और मालोजी के बीच आड़ी खड़ी हो गयी । उसे हटा के अहिल्याबाई ने पुनः रथ दौड़ाया पर वह फिर से रथ के सामने आडी खड़ी हो गयी । सारा जनसमुदाय गौ माता के ममत्व की जय-जयकार कर उठा । देवी अहिल्या की आँखों से अश्रुधार बह निकली । गाय ने स्वयं का पुत्र खोकर भी पुत्र के हत्यारे के प्राण बचाये । जिस स्थान पर गौमाता आड़ी खड़ी हुई थी वह स्थान आज इंदौर में राजबाड़ा के पास ‘आड़ा बाजार' के नाम से जाना जाता है ।