जिस के जीवन में
द्वेष पूर्ण धर्म का प्रचार है वो धर्मांध औरंगजेब था..लेकिन उस का भाई दाराशिको
जब हिन्दू धर्म के उपनिषदे पढ़ता है तो नत-मस्तक हो जाता है… मरने
के बाद कबर मेंगाड़दिए जायेंगे, फिर जब क़यामत होगी तब मोहमद शाह जिस की
शिफारिश करेंगे उस को बिश्त मिलेगा..बिश्त में शराब के जशने होंगे और हूरे होंगी—इस
बात से दाराशिको का मन संतुष्ट नहीं हुआ… औरंगजेब का भाई
दाराशिको विचारवान था..एक हूर मिलती अपनी पत्नी के सिवाय तो जीवन खोकला हो जाता
है..1-2 शराब की बोतल मिलती है तो आदमी बांवरा हो जाता है…शराब
के जशने और हूरे मिलेगी ये प्रलोभन देकर संयम सिखाने की बात हो सकती है …वरना
शराब के जशने और हूरे इंसान का क्या भला करेगी? दाराशिको
उपनिषदों और गीता का अध्ययन कर के ऐसे ऊँचे आत्म- अनुभव में पहुंचा की उस ने ठान
लिया की मरने के बाद कोई हमारी सिफारिश करे और हम को बिश्त में भेजे इस का इंतज़ार
न करते हुए जीते जी अपना आत्मा-परमात्मा का वैभव पा लेना चाहिए…ये
हिन्दू धर्म का अमृत-खजाना मुसलमान समाज को भी मिलना चाहिए…इसलिए
उस ने हिन्दू उपनिषदों का अनुवाद किया.. उर्दू फारसी और संस्कृत का मिश्रण कर के
उस ने कई उपनिषदे रची.. दाराशिको का रचा इल्लोह उपनिषद है ..इस इल्लोह उपनिषद का
एक श्लोक :- हेच फिकर मत कर्त्यव्यम कर्त्यव्यम जिकरे खुदा खुदाताला प्रसादेन सर्व
कार्यं फतेह भवेत्… तुम संसार की -इस की – उस
की फिकर न करो, अपने परमात्म स्वरुप का ज्ञान पाओ , उस
का चिंतन करो.. ये बात शुकदेव जी महाराज ने 5240 वर्ष पहेले राजा
परीक्षत को कहा है :- तस्मात् सर्वो आत्मन राजन हरि अभिधीयते श्रोतव्य
किर्तिताव्यस्य स्मृतव्यो भगवत गणम राजा परीक्षित ने शुकदेव जी महाराज को प्रश्न
किया था की मनुष्य को अपने जीवन काल में मनुष्य को क्या सिख लेना चाहिए, क्या
पा लेना चाहिए.. क्यों की संसार का जो कुछ भी पायेंगे तो मृत्यु के झटके से सब छुट
जाएगा…तो मनुष्य का भला करनेवाली ऐसी कौन सी चीज है ? ऐसी
कौन सी विद्या है? तो शुकदेव जी महाराज ने कहा की मनुष्य को अपने
जीवन काल में अपने आत्मा-परमात्मा का ज्ञान पा लेना चाहिए..और भगवान की मधुमय
कीर्ति और भगवान के मधुमय गुणों का स्मरण कर के अपने आत्मा में भगवान के मधुर
स्वभाव का आस्वादन कर लेना चाहिए..दुनिया के बाते सीखोगे तो मित्र-शत्रु की बात
होगी…शत्रु की बात ह्रदय में जेलसी -इर्षा पैदा करेगी..जलन पैदा
करेगी..मित्र की बात ह्रदय में आसक्ति और अँधा राग पैदा करेगी..लेकिन भगवान की बात
ह्रदय में भागवत रस , भगवत-ज्ञान, भगवत
-शांती और भगवत माधुर्य देकर मुक्तात्मा बना देगी..निर्दुख आत्मा बना देगी..
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