हिन्दू धर्म के तीन स्तम्भ
                             हर धर्म के तीन पहलू, तीन भाग, तीन रूप या तीन स्तम्भ होने चाहिए। एक है उसका तत्त्वज्ञान या दर्शनशास्त्र। दूसरा है उसका आचार, संस्कार, रीति-रिवाज या कर्मकाँड और साथ ही तीसरा होता है उसका आख्यानात्मक काव्य, दृष्टान्त-शास्त्र या पुराण आदि। दर्शन-शास्त्र या तत्त्वज्ञान होता है ज्ञानियों के लिए, विद्वानों के लिए, कर्मकाँड है चलती फिरती है आम जनता के लिए और पुराण, शास्त्र ये होते हैं चिंतकों के लिए। इन तीनों को भी परस्पर हाथ से हाथ मिलाकर एकताबद्ध होकर चलना है। कोई भी एक यदि किसी भी तरह से पिछड़ जाता है, तब वह धर्म अपने पैरों पर खड़ा ही नहीं रह सकता, टिक ही नहीं सकता। हिन्दू धर्मग्रन्थों में इन तीनों की सही-सही समरूपता होने की वजह से ही तो ऐसा है कि अभी भी हिन्दू धर्म अपने प्रकाश से, सच्चाई से लोगों का शोक, मोह, अज्ञान हरता है। इनमें से एक चीज से भी जो रहित है, वैसा कोई भी धर्म'सच्चा धर्म'नहीं हो सकता। हिन्दू धर्म में ये तीनों के तीनों पूर्ण विकसित अवस्था में हैं। स्वामी रामतीर्थ जी।