गवाहों
की हत्या: विरोधियों का पैशाचिक कदम।
सूरत
केस के सरकारी गवाह पर हमला: विरोधियों का एक और पैशाचिक कदम....! कदाचित, सरकारी
शासन के साथ जुटे विरोधियों के उन प्रयासों में जरा सी भी कमीं नहीं आयी है जिनके
द्वारा पहले ही दिन से इन केसेज को संत श्री आसाराम बापू के विरोध में ढाला जा रहा
हैं और वे इसके लिए दिन-रात एक किये हुए हैं।
शुरुआत
से ही केस गढ़ने के लिए जबरन ऐसे गवाहों को नामजद किया गया है, जिनका
एक तो केसेज की घटना कोई सीधा ताल्लुकात नहीं है (लेकिन हाँ ...इस बुनी हुई घटना
से गवाहों का तालमेल बैठाया गया है) और ऊपर से उन्हें मीडिया की पूरी शह प्राप्त
है तभी हर रोज मीडियाई मंडी में बापूजी के प्रति घृणा की दृष्टि को व्यापक करने के
लिए एक तरफ़ा खबरों को बेच लिया जाता है। जोधपुर केस में भी मीडिया में बयानबाज रहे
‘राहुल सचान,अजय
कुमार, सुधा—‘ ऐसे
गवाह हैं जिन्हें छेड़छाड़ की धारा के ऊपर बलात्कार, धमकी
देने, साजिशन बंधक बनाकर, पोक्सो
आदि एक्ट की धाराओं को मजबूत करने के लिए घुसेडा गया है। साथ मीडिया घरानों समेत ‘सो
कॉल्ड समाज सुधारक एनजीओ’ गैंग इनके पीछे तनकर बैठा है कि कब
मौका मिले और बाबा का निंदा पाठ कर अपने जिम्मेदार होने का ढिंढोरा पीट लिया जाये।
आज सुबह का गुजराती सन्देश देखा, यह अखबार तो अपनी सारी हदें लाँघ चुका
है। 164 के बयानों के दस्तावेज के एक हिस्से को, खबर
को सपोर्ट देने के लिए छपा पाकर दंग हो गया। आखिरकार 164
जैसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेज अखबारी दलालों को मिल कैसे जाते हैं ? जोधपुर
केस में भी 164 के बयान भी मीडिया में लीक हुए थे, जिसके
दम पर मीडिया ने बापू के हलकट से हलकट शब्दों का उपयोग कर अश्लील प्रसारणों को केस
की दिशा तय करने के लिए खूब जोरों से चलाया और जोधपुर पुलिस मीडिया के इन्हीं
मनगढ़ंत दावों को अधिकारिक जामा पहनाकर, जो
अकाट्य हो सके, ऐसे चार्जेज और बयानों को चार्जशीट में
गढ़ लायी। अब ट्रायल भी उन्हीं पर अग्रसर है। इसीलिए मतलब साफ़ है कि सरकारी
व्यवस्था और न्यायिक शक्तियां विरोधियों से मिलीभगत कर बैठी हुई हैं और अपराधी
सिद्ध करने की प्रकिया बाबत औपचारिकता में लगी हुई हैं तो हम, “इस
निकृष्ट, असंवेदनशील और दो-मुँही व्यवस्था के
आगे न्याय के लिए लाचारी भरी उम्मींद आखिरकार कब तक रखी जाये ?”
इस
निकृष्ट, असंवेदनशील और दो-मुँही व्यवस्था के
आगे न्याय के लिए लाचारी भरी उम्मींद आखिरकार कब तक रखी जाये ?
गुजरात
में तो इस विरोधी एकतरफा व्यवस्था का आलम ही कुछ ऐसा है कि एक छोटी से छोटी
न्यायिक अधिकार की मांग करने के लिए याचिका दायर करना भी मुश्किल है, या
तो प्रथम दृष्टया न्यायिक शक्ति की मनमानी कर ख़ारिज कर दी जाती है या फिर
तारीख-दर-तारीख देकर हाईकोर्ट तक दौड़ लगवाई जाती है और फिर ऑर्डर रिजर्व रखकर
पांचवे-सातवे दिन ख़ारिज कर दिया जाता है। जोधपुर भी इससे कुछ विशेष भिन्न नहीं है।
बाबा का ‘खाना, सोना, पहनना, सोचना, इलाज’ आदि
को अपराध मान चुकी जोधपुर पुलिस अमानवीय दृष्टि से परिपूर्ण है। बापूजी के सपोर्ट
में दिखने-उठने वाले मुद्दों को इस कदर बिना सुगबुगाहट कर पी जाना और विरोध में
उठे मुद्दे और खबरों को परवान चढ़ाकर असाधारण प्रयासों द्वारा ऐसी उत्साहपूर्ण
कार्यवाही कर दिखाना, राजस्थान की व्यवस्था का ऐसा ढंग है कि
जिसे जो भुगत रहा है वही जाने ! अभी हाल ही की बात लें, शिकायतकर्ता
लड़की के बाप की मांग पर एलआईसी और एडमिशन के दस्तावेजों के फर्जीवाडे का आरोप
लगाकर बनाने वाले को त्वरित कार्यवाही कर गिरफ्तार कर लिया हो, लेकिन
उसी एलआईसी के डिक्लेयरेशन पर इसी पिता ने दस्तखत कर प्रीमियम भर मेच्योरटी का भले
ही पैसा वसूलकर लिया हो। लेकिन महीनों से बापू के चाहने वालों की मांग के बावजूद
भी शिकायत लिखाने में शामिल रही एनजीओ (जिसके तो पोल-खोल दस्तावेज भी उपलब्ध हैं)
की संदिग्धता की कड़ियों पर जाँच करना दिन चौंधाने वाले उजाले में भी दिखाई नहीं
देता है। एक तरफ़ा जाँच,नेगेटिव मेडिकल रिपोर्ट के बावजूद , लड़की
की झूठी उम्र, दिल्ली ऍफ़आईआर की संदेहास्पद प्रकिया
समेत ऐसे तमाम पहलू हैं जिन पर जाँच और न्यायिक व्यवस्था अड़ियल रवैय्या अपनाकर कुछ
करना ही नहीं चाहती। फेसबुक पर एक गलत आयु का उल्लेख समेत आयु संबंधी सही
दस्तावेजों पर, जिनके कवर-अप में लड़की को नाबालिग
बनाया गया है, जाँच के लिए मांग करते हुए कई मर्तबा
सहयोगी संगठन हिन्दू जनजाग्रति समिति द्वारा मुख्यमंत्री तक को पत्र लिखा गया है, लेकिन
इस संवेदनशील मुद्दे पर कोई जबाब नहीं, कोई
रिएक्शन नहीं। लेकिन ये जरूर है कि मुकदमे में बापू के विरोध में पैरवी करने के
लिए एडिशनल एडवोकेट जनरल और एडिशनल सोलिसिटर जनरल सरीखे महंगे भुगतान कर वकील जरूर
खड़े कर रखे हैं। दूसरी तरफ शहर में लॉ एंड ऑर्डर मेन्टेन करने के लिए करोड़ों खर्च
करने का प्रशासन का यह चेहरा आखिर में प्रशासनिक मुलाजमे की उसी लिप्तता को उजागर
करते हैं जहाँ वे सिर्फ सचिवालय की बाध्यता से आदेशित हैं कि अधिकारी बिना किसी
दबाब में आये बापू के खिलाफ कार्यवाही करें। खैर... बापू के भक्तों के भाग में तो
सिर्फ डंडों की प्रताड़ना लिखी हैं, जो
कोर्ट परिसर में शांति से एकत्रित हुए श्रद्धालुओं पर बरसती है, लेकिन
उसी परिसर में पेड़ की छाँव तले ताश खलने वालों पर बड़ी रहमत दिखती है जो शायद लॉ
एंड ऑर्डर के अनुरुप हो ! तो पितातुल्य गुरु के मुख पर बरबस ही एक बेबसी फूट पड़ती
है – “ लॉ एंड ऑर्डर के नाम हिटलरशाही कर लो....इनका
क्या अपराध है....बेचारे दिन भर डंडे डंडे सहते रहते हैं ”.... बापू
इनका अपराध तो बस यह है कि इन्हें राजनीति नहीं आती सो अराजक होकर चढ़ बैठें...इसीलिए
तो श्रद्धालु हैं।
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